न्यायिक रुतबा बना रहे

न्यायिक रुतबा बना रहे

कानून के राज की रक्षा के लिए ही न्यायपालिका को अपनी अवमानना के खिलाफ कार्रवाई का अधिकार मिला होता है। जहां न्यायिक मानहानि का मामला स्पष्ट हो, उसमें न्यायपालिका को निश्चित रूप से अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए।

कानून के राज की व्यवस्था कायम रहने के लिए अनिवार्य होता है कि न्यायपालिका का रुतबा बना रहे। संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था में कानून की व्याख्या और उस पर अमल को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी न्यायपालिका पर ही होती है। इसीलिए न्यायपालिका को अपनी अवमानना के खिलाफ कार्रवाई का अधिकार मिला होता है। जहां न्यायिक मानहानि का मामला स्पष्ट हो, उसमें न्यायपालिका निश्चित रूप से अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने आर्युवैदिक कंपनी पतंजलि के मामले में ऐसी ही कार्रवाई की है।

कोर्ट ने अवमानना के मामले में पतंजलि के सह-संस्थापक बाबा रामदेव और प्रबंधक निदेशक आचार्य बालकृष्ण की क्षमा प्रार्थना को ठुकरा दिया। पतंजलि और इन दोनों व्यक्तियों पर भ्रामक प्रचार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के उल्लंघन के आरोप हैं। यह मामला इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने दायर किया था। आईएमए का आरोप है कि पतंजलि और रामदेव ने कोविड-19 टीकाकरण अभियान और आधुनिक चिकित्सा पद्धति के खिलाफ विज्ञापन अभियान चलाया। नवंबर 2023 में कोर्ट ने बीमारियों का इलाज करने वाली दवाओं के झूठे दावों से संबंधित प्रति शिकायत पर पतंजलि पर एक करोड़ रुपए का जुर्माना लगाने की चेतावनी दी थी।

यह आदेश भी दिया था कि कंपनी भविष्य में झूठे विज्ञापन ना निकाले। इस आदेश के बावजूद पतंजलि ने ऐसे विज्ञापन निकाले। तब पतंजलि और बालकृष्ण के नाम कोर्ट ने अवमानना के नोटिस जारी किए थे। अवमानना के मामले में कंपनी ने जवाब अदालत में पेश नहीं किया। तब बीते 19 मार्च को कोर्ट ने रामदेव और बालकृष्ण को अगली सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद रहने का आदेश दिया।

इसके बाद जाकर 21 मार्च को बालकृष्ण ने इन विज्ञापनों के लिए अदालत में हलफनामा दाखिल कर बिना शर्त माफी मांगी। लेकिन कोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया है।.उसने बालकृष्ण की इस दलील को नहीं माना कि पतंजलि के मीडिया विभाग को विज्ञापन रोकने के अदालती आदेश की जानकारी नहीं थी। यानी अवमानना का मुकदमा चलेगा। संदेश यह है कि कोई चाहे कितना ही बड़ा हो, वह न्याय प्रक्रिया से ऊपर नहीं है। कोर्ट के इस रुख से न्यायपालिका में लोगों का भरोसा बढ़ेगा।

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