तीन पहलुओं के अलावा कोई बड़ी कामयाबी बाइडेन-शी वार्ता में हासिल नहीं हुई। इसलिए इस बात की संभावना नहीं है कि दोनों देशों के संबंधों में गिरावट और तनाव का जो दौर है, उस पर कोई प्रभावी लगाम लग पाएगी।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की शिखर वार्ता से दोनों देशों के संबंधों में कोई नाटकीय सुधार होने की अपेक्षा नहीं थी। और ऐसा हुआ भी नहीं। अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में दोनों राष्ट्रपतियों की हुई शिखर वार्ता में जो सहमतियां बनीं, उनका सार सिर्फ यह है कि दोनों देश यह सुनिश्चित करेंगे कि बिगड़ते संबंध युद्ध भड़कने के हालात तक ना पहुंच जाएं। इस लिहाज से दोनों देशों के बीच हर स्तर पर सैन्य संवाद बहाल करने पर बनी सहमति सबसे अहम है। पिछले साल जब अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव की तत्कालीन स्पीकर नैंसी पेलोसी ने ताइवान की यात्रा की थी, तो उसके विरोध में चीन ने यह संवाद तोड़ लिया था। इसके अलावा चीन नशीले पदार्थ फेंटानाइल बनाने में इस्तेमाल होने वाले तत्वों का निर्यात रोकने के उपाय करने पर सहमत हुआ। अमेरिका की घरेलू राजनीति में जो बाइडेन इसे अपनी सफलता के रूप में पेश करेंगे।
वैसे दोनों देशों में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) से संबंधित जोखिम और सुरक्षा के प्रश्न पर संवाद के लिए साझा कार्यदल बनाने का फैसला भी अहम है। एआई में ये दोनों देश अग्रणी हैं और जाहिर है, वे जो मानदंड तय करेंगे, उसका असर दुनिया पर पड़ेगा। मगर इन तीन पहलुओं के अलावा कोई बड़ी कामयाबी बाइडेन-शी वार्ता में हासिल नहीं हुई। बाकी मुद्दों पर उन्होंने अपने-अपने देशों के रुख को दोहराया। इसलिए इस बात की संभावना नहीं है कि दोनों देशों के संबंधों में गिरावट और तनाव का जो दौर है, उस पर कोई प्रभावी लगाम लग पाएगी। शी जिनपिंग ने एशिया पैसिफिक इकॉनमिक को-ऑपरेशन (एपेक) शिखर सम्मेलन के दौरान हुई इस मुलाकात को यह जताने का मौका बनाया कि चीन अब एक महाशक्ति है और अमेरिका को उससे उसी रूप में पेश आना चाहिए। जो बाइडेन प्रशासन ने इस मुलाकात को संभव बनाने के लिए जितना परिश्रम किया, उससे शी को अपना यह संदेश प्रसारित करने में एक हद तक सफलता भी मिल गई है। अब देखने की बात है कि क्या ये दोनों बड़ी ताकतें भविष्य में अपने आपसी संबंधों को क्या दिशा देती हैं।