चुनाव आयोग को चुनौती

चुनाव आयोग को चुनौती

यह याद रखना चाहिए कि आदर्श आचार संहिता का कोई कानूनी आधार नहीं है। यह पार्टियों की सहमति से तैयार संहिता है, जिस पर अमल के लिए उनका सहयोग जरूरी है। सहयोग सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि आयोग सबके प्रति समान नजरिया अपनाए। 

शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट ने खुलेआम निर्वाचन आयोग की नाफरमानी करने का एलान किया है। आयोग ने चुनाव के लिए पार्टी के थीम सॉन्ग से दो शब्दों- भवानी और हिंदू को हटाने का निर्देश दिया था। आयोग के मुताबिक थीम सॉन्ग में इन शब्दों के होने का मतलब है कि शिवसेना धर्म के नाम पर वोट मांग रही है, जो आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है। मगर पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने दो-टूक कहा है कि शिवसेना ऐसा नहीं करेगी। उलटे ठाकरे ने आयोग को चुनौती दे डाली है। उन्होंने कहा है कि आयोग पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पर कार्रवाई करे। ठाकरे ने दोनों भाजपा नेताओं के भाषणों के कुछ वीडियो दिखाए हैं, जिनके बारे में शिवसेना प्रमुख कहना है कि इनमें कही गईं बातें धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाली हैँ। इस तरह उद्धव ठाकरे ने निर्वाचन आयोग को ही कठघरे में खड़ा दिया है। उन्हें ऐसा करने का अवसर इसलिए मिला है, क्योंकि आयोग के रुख पर पहले से सवाल मौजूद हैं।

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ये धारणा बन गई है कि आयोग को आदर्श आचार संहिता की याद सिर्फ विपक्षी नेताओं के मामले में आती हैँ। ठाकरे ने जिस रोज अपनी पार्टी के थीम सॉन्ग के बारे में आक्रामक रुख अपनाया, उसी रोज प्रधानमंत्री मोदी ने एक ऐसा भाषण दिया, जिससे समाज के एक बड़े हिस्से में उद्विग्नता फैली है। इस बयान में मोदी ने ना सिर्फ पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक बयान को गलत ढंग से और तोड़-मरोड़ कर पेश किया, बल्कि सीधे मुस्लिम समुदाय के प्रति अपमानजनक टिप्पणी करते हुए कांग्रेस पर निशाना साधा। उनके इस भाषण ने एक बार फिर से निर्वाचन आयोग के लिए अग्निपरीक्षा की स्थिति पैदा कर दी है। यह अवश्य याद रखना चाहिए कि आदर्श आचार संहिता का कोई कानूनी आधार नहीं है। यह पार्टियों की सहमति से तैयार संहिता है, जिस पर अमल के लिए उनका सहयोग जरूरी है। यह सहयोग सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि आयोग सबके प्रति समान नजरिया अपनाए। अन्यथा, कुछ पार्टियों को उसे चुनौती देने का मौका मिलेगा, जिससे सारी चुनाव प्रक्रिया दूषित हो सकती है।

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