जीएसटी की जटिल प्रक्रियाओं ने छोटे व्यापार को पंगु बनाने में अहम रोल निभाया है। देश का एमएसएमई सेक्टर आज संकट में है और उस कारण बेरोजगारी की समस्या विकराल हुई है, तो उसमें टैक्स नोटिसों के आतंक का भी बड़ा योगदान है।
यह तो इंफोसिस कंपनी का रुतबा और सत्ता के ऊंचे हलकों तक पहुंच है, जिससे उसे भेजे गए जीएसटी नोटिस से राहत मिलती दिख रही है। कर्नाटक सरकार ने एक नोटिस वापस ले लिया है। खबरों के मुताबिक केंद्रीय परोक्ष कर बोर्ड एवं कस्टम विभाग ने भी अपने फील्ड अफसरों से 26 जून को भेजे गए सर्कुलर पर पुनर्विचार करने को कहा है। मगर इंफोसिस कंपनी को जिस तेजी से राहत मिली, वही सहूलियत छोटे कारोबारियों को नहीं है, जिनके सिर पर जीएसटी नोटिस की तलवार हमेशा ही लटकती रहती है। इस बात की चर्चा जीएसटी लागू होने के बाद से है, लेकिन सरकार ने उस ओर ध्यान देने की जरूरत महसूस नहीं की है। जीएसटी की जटिल प्रक्रियाओं और इसको लेकर बरती जाने वाली सरकारी सख्ती ने भारत में छोटे व्यापार को पंगु बनाने में अहम रोल निभाया है।
देश का एमएसएमई सेक्टर आज संकट में है और उसकी वजह से बेरोजगारी की समस्या विकराल हुई है, तो उसमें टैक्स नोटिसों के आतंक का भी एक बड़ा योगदान है। इंफोसिस को 32,403 करोड़ रुपए का नोटिस भेजा गया था। नोटिस के मुताबिक उसे उन सेवाओं के लिए भेजा गया, जो कंपनी ने पांच साल तक (2017-22) अपनी विदेशी शाखा से ली थी। कई भारतीय आईटी कंपनियों की विदेशी शाखाएं हैं, जो उनके प्रोजेक्ट पर काम करती हैं और उनके अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों को भी सेवाएं देती हैं। इंफोसिस ने स्टॉक एक्सचेंज को दी गई जानकारी में कहा कि इन खर्चों पर जीएसटी नहीं लगना चाहिए। आईटी कंपनियों के संगठन नैस्कॉम ने भी इंफोसिस का समर्थन किया और कहा कि यह नोटिस इस उद्योग के ऑपरेटिंग मॉडल के बारे में समझ की कमी को दिखाता है। ऐसा नहीं है कि सरकार ने इस तर्क को स्वीकार कर लिया हो। खुद नैस्कॉम ने कहा है कि लंबे समय से कई कंपनियां इस तरह के नोटिस का सामना कर रही हैं। इस वजह से उनका समय और संसाधन मुकदमों में ज़ाया हो रहे हैं, अनिश्चितताएं पैदा हुई हैं और निवेशक चिंता में हैं। सवाल है कि क्या इन सभी कंपनियों को इंफोसिस जैसी राहत मिल पाएगी?