हर जगह वही हाल!

हर जगह वही हाल!

खेल में संभवतः खिलाड़ियों की बात कोई मायने नहीं रखती! अगर मामला महिला खिलाड़ियों का हो, तो यह बात और भी ज्यादा सच हो जाती है, भले उन खिलाड़ियों ने कितनी भी ऊंची उपलब्धि हासिल की हो। भारत से स्पेन तक हम यही होते देख रहे हैं।  

स्पेन के फुटबॉल प्रशासन में बढ़ते जा रहे विवाद से सहज ही भारत के कुश्ती प्रशासन की हालिया घटनाएं याद आ जाती हैं। भारत में कुश्ती परिसंघ के शक्तिशाली अध्यक्ष पर यौन शोषण का आरोप लगाने वाली महिला पहलवानों को किस हद तक जाकर संघर्ष करना पड़ा, यह बहुचर्चित है। उतने संघर्ष के बाद भी उन्हें उचित न्याय मिलेगा, यह तय नहीं है। लगभग वैसी ही कहानी स्पेन के फुटबॉल संघ में दोहराई जा रही है। स्पेन की महिला फुटबॉल टीम वर्ल्ड कप के फाइनल में बीते 20 अगस्त इंग्लैंड को हरा कर पहली बार विश्व चैंपियन बनी। उस मौके पर वहां के फुटबॉल संघ के अध्यक्ष ने एक महिला खिलाड़ी को उनके मना करने के बावजूद सबके सामने चूम लिया। इससे भड़के विवाद में चैंपियन खिलाड़ियों ने जीत के जश्न में भाग नहीं लिया है और अब हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि उन्होंने आगे किसी मैच में हिस्सा ना लेने की भी घोषणा की है। कारण यह है कि देश का पूरा फुटबॉल प्रशासन स्पैनिश फुटबॉल संघ के अध्यक्ष लुइस रुबिआलेस के समर्थन में लामबंद है, जिन्हें एक अति धनी और रसूखदार शख्स बताया जाता है। 

चूंकि देश के अंदर कोई कार्रवाई नहीं हो रही थी, तो शनिवार को फीफा ने रुबिआलेस को निलंबित कर दिया है। इससे नाराज फुटबॉल संघ ने पीड़िता खिलाड़ी पर ही मुकदमा करने की धमकी दे दी है। फीफा की कार्रवाई का फिलहाल मतलब है कि रुबिआलेस फीफा से जुड़े किसी भी इवेंट का हिस्सा नहीं बन सकेंगे। गौरतलब है कि चुंबन विवाद को लेकर फीफा पर भी नजीर पेश करने का खूब दबाव था। इसके ठीक पहले स्पैनिश फुटबॉल संघ ने कहा था कि खिलाड़ियों के लिए टीम में हिस्सा लेना अनिवार्य है। जबकि स्पेन की टीम की दर्जन भर से ज्यादा खिलाड़ियों महिला खिलाड़ियों से साफ कहा है कि जब तक बिना अनुमति के चूमने वाले रुबिआलेस को पद से नहीं हटाया जाएगा, तब तक वे स्पेन की टीम का हिस्सा नहीं बनेंगी। लेकिन खेल में खिलाड़ियों की बात कोई मायने नहीं रखती! भारत से स्पेन तक हम यही होते देख रहे हैं।

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