भारत ने टोक्यो ओलिंपिक के बराबर सात मेडल जरूर जीते, लेकिन तब एक स्वर्ण पदक था, जो इस बार सपना बना रहा। इस कारण कुल पदक तालिका में भारत का दर्जा गिर गया, जबकि लक्ष्य टॉप 30 देशों में आने का रखा गया था।
पेरिस ओलिंपिक भारत के लिए विवाद, अपमान और अपेक्षाओं से कम सफलता की कहानी रहा। पहलवान विनेश फोगट को 100 ग्राम अधिक वजन के आधार पर अयोग्य ठहराए जाने को लेकर उठे विवाद के जल्द थमने की संभावना नहीं है। इस मामले को लेकर लोगों के मन में गहरा संदेह है। मामला राजनीतिक रूप भी ले चुका है। अगर बहुत से लोगों के मन में इस तरह का शक हो कि विनेश को पदक से वंचित करने में भारतीय खेल प्रशासन की मिलीभगत रही है, तो उससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति क्या हो सकती है? दूसरी तरफ अंतिम पंघल के साथ पेरिस में एंट्री पास विवाद में जिस तरह देश को असहज करने वाली स्थिति बनी, वह कम अफसोसनाक नहीं है। जहां तक खेलों की बात है, तो भारत ने 2021 में हुए टोक्यो ओलिंपिक के बराबर सात मेडल जरूर जीते, लेकिन तब एक स्वर्ण पदक था, जो इस बार सपना बना रहा।
इस कारण कुल पदक तालिका में भारत का दर्जा गिर गया, जबकि इस बार लक्ष्य टॉप 30 देशों में आने का रखा गया था। वैसे भारत सरकार ने तो 2016 में 2024 के ओलिपिंक के लिए 50 पदकों का लक्ष्य घोषित किया था। स्वाभाविक है कि वह ऊंची बात अब सिर्फ जुमला ही मालूम पड़ेगी। नरेंद्र मोदी सरकार ने इस लक्ष्य को पाने के लिए टारगेट ओलिंपिक पॉडियम स्कीम (टॉप्स) शुरू की थी। इसमें कोई हैरत नहीं है कि इस बारे पूरे ओलिंपिक के दौरान उस योजना की कहीं चर्चा सुनाई नहीं पड़ी। भारत के सामने आज बदकिस्मत हकीकत यह है कि टॉप की तरफ जाने के बजाय उसकी यात्रा दिशा बॉटम (नीचे) की तरफ जाती दिखी है। सफर नकारात्मक दिशा में जाता हुआ दिखे, तो फिर नौ दिन चले ढाई कोस का मुहावरा भी उस संदर्भ में लागू नहीं होगा। बहरहाल, सबक यह है कि ऊंची बातों के बजाय देश बुनियादी बातों पर ध्यान दे। देश में स्वस्थ युवा आबादी का अभाव होगा और स्कूलों के जरिए खेल ढांचे और संस्कृति का प्रसार नहीं होगा, तो टॉप्स या नीति आयोग की 50 मेडल की कार्ययोजना जैसी बातें जुमला ही बनी रहेंगी।