ये घटनाक्रम इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि नरेंद्र मोदी सरकार ने अमेरिका से करीबी संबंध बनाने को अपनी विदेश नीति में केंद्रीय स्थान दे रखा है। आरंभिक सफलताओं के बाद अब ऐसा लगता है कि उसकी विदेश नीति का यह केंद्रीय स्थल दरकने लगा है।
खालिस्तानी उग्रवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू के माले में नई दिल्ली स्थित अमेरिकी राजदूत एरिक गारसेटी का ताजा बयान भारत- अमेरिका संबंधों में पड़ रही गांठों का संकेत है। गारसेटी ने इस बार जैसी सख्त भाषा का इस्तेमाल किया, वैसा इस प्रकरण में अब तक सुनने को नहीं मिला था। गारसेटी ने आपसी संबंधों के बीच ‘लक्ष्मण रेखा’ का जिक्र किया और बिना साफ कहे यह कह दिया कि भारत ने इसका उल्लंघन किया है।
यह बयान ये खबर आने के ठीक बाद आया है, जिसमें पन्नू मामले में भारतीय जांच के निष्कर्ष का उल्लेख किया गया था। भारत में हुई जांच के हवाले से इसमें बताया गया कि पन्नू की हत्या कराने की कोशिश में एक भारतीय खुफिया एजेंसी का एक उच्छृंखल अधिकारी शामिल हुआ। ऐसा उसने निजी हैसियत में किया- यानी ऐसी कार्रवाई को भारत सरकार का समर्थन हासिल नहीं था। गारसेटी का बयान संभवतः इस बात का संकेत है कि अमेरिका ने इस निष्कर्ष को स्वीकार नहीं किया है।
इससे सवाल उठा है कि क्या इसे दोनों देशों के बीच भरोसे के कमजोर पड़ने की निशानी समझा जाना चाहिए? यह भी ध्यान देने योग्य है कि अमेरिका ने भारत के दो घरेलू राजनीतिक मुद्दों पर सार्वजनिक टिप्पणी की है। इनमें एक नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर अमल और दूसरा आम चुनाव से ठीक पहले विपक्षी दलों पर हो रही सरकारी कार्रवाइयां हैं।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी और कांग्रेस के खाते फ्रीज करने के मुद्दे पर अमेरिका ने जो कहा, उसे भारतीय लोकतंत्र और देश में कानून के राज की स्थिति पर प्रतिकूल टिप्पणी ही माना जाएगा।
केजरीवाल की गिरफ्तारी पर दिए अमेरिकी बयान पर भारत सरकार ने कड़ा विरोध जताया, लेकिन उससे अप्रभावित रहते हुए अमेरिका ने फिर से अपनी बात दोहरा दी। ये सारा घटनाक्रम इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि नरेंद्र मोदी सरकार ने अमेरिका से करीबी संबंध बनाने को अपनी विदेश नीति में केंद्रीय स्थान दे रखा है।
इस दिशा में मिली आरंभिक सफलताओं को उसकी उपलब्धि के रूप में देखा गया। लेकिन अब ऐसा लगता है कि उसकी विदेश नीति का यह केंद्रीय स्थल दरकने लगा है।
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