बचपन में माता-पिता को पता ही नहीं चलता लेकिन उम्र बढ़ने के साथ समझ में आता है कि बच्चा झूठ बोल रहा है। अगर बच्चे को इससे बचाना हैं तो उसकी उम्र, वो क्या झूठ बोल रहा है, क्यों झूठ बोल रहा है और कितनी स्पीड में झूठ बोलना सीख रहा है इस पर ध्यान देना होगा। अगर झूठ बोलने का कारण चोरी या चीटिंग है तो यह गंभीर समस्या है।…अगर बच्चा बात-बात पर झूठ बोल रहा है तो काउंसलर या मनौविज्ञानी के पास जायें। वह आपको बतायेगा कि इतना झूठ बोलने का कारण क्या है और ये आदत कैसे छूटेगी।
झूठ बोलना बच्चों का आम व्यवहार है, सभी बच्चे कभी न कभी तो झूठ बोलते ही हैं। समस्या तब होती है जब इसकी आदत पड़ जाये। झूठ बोलने की शुरूआत होती है बचपन से लेकिन लक्षण दिखाई देते हैं लडकपन में (टीनेज उम्र)। बचपन में माता-पिता को पता ही नहीं चलता लेकिन उम्र बढ़ने के साथ समझ में आता है कि बच्चा झूठ बोल रहा है। अगर बच्चे को इससे बचाना हैं तो उसकी उम्र, वो क्या झूठ बोल रहा है, क्यों झूठ बोल रहा है और कितनी स्पीड में झूठ बोलना सीख रहा है इस पर ध्यान देना होगा। अगर झूठ बोलने का कारण चोरी या चीटिंग है तो यह गंभीर समस्या है।
मनोविज्ञान के मुताबिक बच्चा जब तक सच और फिक्शन में अन्तर नहीं समझता तब तक कोई दिक्कत नहीं। समस्या तब होती है जब वह समझने लगे कि झूठ बोलना गलत है। अमेरिका की यूनीवर्सिटी ऑफ एरीजोना में हुई एक रिसर्च में बच्चों के झूठ बोलने के कई टाइप सामने आए है। जिनमें एक है प्रो-सोशल लाइंग यानी किसी की हैल्प या प्रोटेक्ट करने के लिये झूठ बोलना। अक्सर बच्चे अपने भाई-बहनों या दोस्तों को प्रोटेक्ट करने के लिये झूठ बोल जाते हैं। कुछ शर्मिन्दगी, रिजेक्शन या फटकार से बचने के लिये झूठ बोलते हैं। इसे कहते हैं सेल्फ इन्हेंसमेंट लाइंग।
अगला टाइप है सेल्फिश लाइंग यानी सेल्फ प्रोटेक्शन के लिये झूठ बोलना। इसमें बच्चे अपनी गलती दूसरों के सिर मढ़ देते हैं और बात को इस तरह घुमाकर बताते हैं कि उसका अर्थ ही बदल जाता है। कुछ बच्चे जानबूझकर दूसरों को हर्ट करने के लिये झूठ बोलते हैं। इसे कहते हैं एंटी सोशल लाइंग।
ऐसे में वे कारण जानने होंगे जिनकी वजह से बच्चे झूठ बोलते हैं और इसके लिये समझनी होगी चाइल्ड साइकोलजी। तीन साल तक तो बच्चों को पता ही नहीं होता कि झूठ क्या है। वे केवल बोलना सीखते हैं। तीन से सात की उम्र तक रियल्टी और फैंटसी में अन्तर नहीं कर पाते और अपनी इमेजनरी दुनिया में बिना सोचे-समझे सच या झूठ कुछ भी बोलते हैं।
लेकिन सात साल की उम्र में ज्यादातर बच्चे समझने लगते हैं कि झूठ क्या है? और ऐसे में जरूरत होती है उन्हें बताने की कि झूठ बोलना गलत है। उम्र के इस दौर में बच्चे अक्सर कन्फ्यूज हो जाते हैं क्योंकि उनके सामने पैरेन्ट्स खुद झूठ बोलते हैं लेकिन उन्हें मना करते हैं। जिससे बच्चों को लगता है कि इनके तो डबल स्टैंडर्ड है। इस वजह से वे पैरेन्ट से बातें छुपाने लगते हैं जैसे पढ़ाई में कितने नंबर आये बगैरा-बगैरा।
पैरेन्ट्स के आगे खुद को इस तरह प्रजेन्ट करते हैं जैसे वे पढ़ाई या किसी अन्य एक्टीविटी में बहुत आगे हैं, लेकिन ऐसा तब होता है जब वे जानते हैं कि पैरेन्टस उनका फेलियर एसेप्ट नहीं करेंगे। कई बच्चे पैरेन्ट्स से अपनी तारीफ सुनने के लिये तो कई बच्चे जिम्मेदारी से बचने के लिये झूठ बोलते हैं। जैसे काम करने की इच्छा नहीं है तो कह देंगे कि पेट दर्द है। कुछ अपनी प्राइवेसी प्रोटेक्ट करने तो कुछ खुद को इन्डिपेन्डटडेंट शो करने के लिये झूठ बोलते हैं। हां ये आदत लड़कों में ज्यादा, लड़कियों में कम होती है।
कभी-कभी झूठ बोलना तो बच्चों में कॉमन है, लेकिन झूठ बोलने की आदत – उन्हें पड़ती है जो किसी गोल को एचीव करने के स्ट्रेस में रहते हैं। गोल एचीव न कर पाने की स्थिति में पैरेन्ट्स का ओवर या एक्सट्रीमली निगेटिव रियेक्शन बच्चे को झूठ की तरफ धकेलता है। ऐसे में अगर बच्चा ADHD य़ानी अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिस्आर्डर का शिकार है तो झूठ बोलने की आदत पड़ जाती है। इसके अलावा ड्रग्स या एल्कोहल में पड़े बच्चे भी इस आदत का शिकार हो जाते हैं।
अब सवाल ये कि पता कैसे चले बच्चा झूठ बोल रहा है? वैसे तो इसका कोई पक्का तरीका नहीं लेकिन कुछ कॉमन क्लूज है जिनसे पता लगाया जा सकता है। इनमें एक है बच्चों द्वारा बतायी बात में अविश्वसनीय कंटेंट होना, जो रिपीट करने पर बदल जाता है। बोलते समय लुक्स में गिल्ट और फियर नजर आना। जोर देकर अपनी बात बताना। अगर कोई इमोशनल बात है तो बहुत ज्यादा दुखी होकर बताना।
यह कन्फर्म करने के लिये कि बच्चे को झूठ बोलने की आदत पड़ गयी है सबसे पहले इस बात पर ध्यान दें कि उसके झूठ से लोगों को प्रॉब्लम तो नहीं हो रही। क्या वह रोज-मर्रा की परेशानियों को झूठ बोलकर डील करता है और जब झूठ पकड़ा जाता है तो क्या उसे गिल्ट होता है? क्या वह हाइपर या एंटी-सोशल एक्टीविटीज जैसे चोरी, लड़ाई-झगड़ा, चीटिंग या ड्रग्स और एल्कोहल को छुपाने के लिये झूठ का सहारा लेता है? अगर इन प्रश्नों के उत्तर हां में है तो समझिये बच्चे को झूठ बोलने की आदत पड़ गयी है। लगातार झूठ बोलने का मतलब है लर्निंग डिसेबिल्टी या एंटी-सोशल पर्सनॉल्टी डिस्आर्डर। अगर बच्चा झूठ बोलता है और उसके ज्यादा दोस्त नहीं है तो यह संकेत है आत्म-विश्वास में कमी और डिप्रेशन का।
अब बात इलाज यानी ये जानने की कि झूठ बोलने की आदत छूटेगी कैसे? तो इसकी शुरूआत करें घर से। पैरेन्ट्स, बच्चे को बतायें कि झूठ बोलना गलत है और सच बोलने की क्या इम्पार्टेंस हैं। इस विषय में बात करते समय उसे फैंटसी और रियल्टी में अंतर समझायें। उन बातों या व्यवहार के बारे में बतायें जिन्हें वह झूठ के विकल्प के रूप में इस्तेमाल करता है। यह भी बतायें कि वे उससे हमेशा सच बोलने की उम्मीद करते हैं और वह अपने पैरेन्ट्स को कभी निराश नहीं करेगा। खुद भी बच्चे के सामने झूठ बोलने से बचें। घर में ऐसा माहौल बनायें कि बच्चा आसानी से सच बोले। बच्चे को कन्फ्यूज करने वाले झूठ न बोलें जैसे उसके सामने किसी को अपनी उम्र कम बताना। कभी भी बच्चों से झूठ बोलने को न कहें। जैसे कुछ लोग घर में होने पर भी बच्चे से कहलवा देते हैं कि वे घर में नहीं हैं।
सच बोलने पर बच्चे को प्रेज करें, विशेषरूप से तब, जब वह आसानी से झूठ का सहारा ले सकता था। कभी भी बच्चों पर जबरजस्ती के रूल्स और अपेक्षायें न थोपें। जिसमें फेल होने के डर से झूठ बोलें। झूठ बोलने पर सजा न दें अन्यथा बच्चा सजा के डर से और झूठ बोलेगा। बच्चों को जरूरी प्राइवेसी उपलब्ध करायें, ताकि वह अपनी प्राइवेसी प्रोटेक्ट करने के लिये झूठ न बोले।
अगर बच्चा फिर भी बात-बात पर झूठ बोल रहा है तो काउंसलर या मनौविज्ञानी के पास जायें। वह आपको बतायेगा कि इतना झूठ बोलने का कारण क्या है और ये आदत कैसे छूटेगी। याद रखें बच्चों का झूठ बोलना कोई लाइफटाइम प्रॉब्लम नहीं है। अगर आप उनसे सच्चाई डिस्कस करेंगे तो वे झूठ बोलने से बचेंगे।