कर्नाटक में वोट से पहले भाजपा क्या-क्या नहीं कर रही!

कर्नाटक में वोट से पहले भाजपा क्या-क्या नहीं कर रही!

कर्नाटक में आज (बुधवार, 10 मई को) मतदान हो रहा है। भाजपा घबराई हुई है।भाजपा एक-एक चुनाव का मतलब समझती है। आखिरी आखिरी तक लड़ती है। कर्नाटकमें जब नहींकुछ हो  पा रहा है तो मतदान से एक दिन पहले राजस्थान से कांग्रेसएक नहीं है का नया विवाद पैदा किया।सचिन पायलट कर्नाटक के रिजल्ट तक रूक सकते थे। मगर मतदान से एक दिन पहलेउनके बगावत का एलान करवाकर दस मई वोटिंग डे की सुबह की हेडलाइन और उससेएक दिन पहले 9 मई की शाम की कांग्रेस विरोधी डिबेटों का इंतजाम कर दिया।

कांग्रेस की समझ में आ गया होगा कि कुछ नहीं चल रहा है। और जो चल रहा हैवह “उनके” चलाए ही चल रहा है। जैसे राजस्थान में कर्नाटक चुनाव के मतदानसे ठीक एक दिन पहले बगावत!भाजपा का आखिरी दांव! राजस्थान से कर्नाटक में मैसेज कि कांग्रेस मेंभारी गुटबाजी है। यहां कर्नाटक में भी ऐसे ही लडेंगे।

इससे पहले महिला पहलवानों के आंसू, अडानी की कंपनियों में बीस हजार करोड़रुपया किसका है का बड़ा सवाल, नोटबंदी की लाइनें, करोना की बिना इलाज कीमौतें, मजदूर का पैदल जाना, किसान का आंदोलन, कमरतोड़ महंगाई, बेरोजगारी,अग्निवीर जैसी युवाओं की जवानी बर्बाद करने वाली योजनाएं, चीन की घुसपैठ,मणिपुर जैसे सीमावर्ती राज्य का नस्लीय टकराव। इनमें से कुछ भी तो नहीं चला।

जब कुछ चलता नहीं है तो वे डरते नहीं हैं। मगर बस डरते हैं तो एक हार से।और जनता पर भी इसका ही असर पड़ता है। सीधा धमाका। नशे में चूर जनताहड़बड़ा कर जाग जाती है। झटके से उठ बैठती है।

कर्नाटक में आज (बुधवार, 10 मई को) मतदान हो रहा है। भाजपा घबराई हुई है।वह बस इसी एक चीज से घबराती है। बाकी तो जैसा ऊपर लिखा कुछ उदाहरणों केजरिए जिनमें कई और भी जोड़े जा सकते हैं जैसे कहां है भाजपा?  जो है वहमोदी मोदी है। मगर आदतन हम लोग भाजपा कह देते हैं। भाजपा है कहां? क्याकर्नाटक के चुनाव में किसी ने दो बार भाजपा के अध्यक्ष रहे सबसे वरिष्ठनेता रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को कहीं देखा?  दूसरे पूर्व अध्यक्ष गडकरीका कहीं नाम सुना? भाजपा का कोई पूर्व अध्यक्ष चुनाव में नहीं है। मगरसवाल वे उठाते हैं कि सोनिया क्यों?

कांग्रेस अगर अपने पूर्व अध्यक्षों का सम्मान करती है तो यह तो अच्छी बातहै। अपने वरिष्ठों, पूर्वजों का सम्मान सबको करना चाहिए। यह तो भारतीयपरंपरा है। खाली खुद को विश्व गुरु कहने से तो नहीं हो जाता। विश्व देखताहै कि हमारा गुरु बनने का दावा करने वाले अपने बड़े लोगों का, वरिष्ठोंका कैसे सम्मान करते हैं। कांग्रेस यह परंपरा निभाती रहती है। आडवानी काहाथ थामकर उन्हें सहारा देने के राहुल, सोनिया के फोटो विडियो सब ने देखेहोंगे। राजीव गांधी द्वारा भाजपा नेता वाजपेयी का हार्ट का आपरेशन करवानेके लिए अमेरिका भेजा जाना तो कभी किसी को मालूम ही नहीं पड़ता। मगर राजीवकी नृशंस हत्या पर अपना दर्द नहीं संभाल पाए वाजपेयी के खुद मुंह से वहसारी कहानी निकल गई कि कैसे राजीव गांधी को जब मालूम पड़ा कि वाजपेयी जीकी हार्ट सर्जरी तत्काल करने की जरूरत है तो उन्होंने कैसे अमेरिका भेजाऔर सारे इंतजाम किए। आज राजीव, सोनिया पर जो भी भाजपा नेता व्यक्तिगतहमला करता है उसे वाजपेयी जी के वीडियो के वह शब्द सुनना चाहिए जिसमें वेकह रहे हैं कि मेरी यह जो जिन्दगी है वह राजीव गांधी की दी हुई है।

तो कांग्रेस तो इऩ भारतीय परंपराओं पर कायम है। केवल अपनी पार्टी के हीनहीं दूसरी पार्टी, प्रतिस्पर्धी पार्टी के नेताओं को भी पूरा सम्मानदेती है। अभी कांग्रेस में शामिल हुए मध्य प्रदेश के पहले भाजपामुख्यमंत्री रहे कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी ने बताया कि जब कैलाशजोशी जैसे बड़े नेता नहीं रहे तो उस समय सीएम कमलनाथ ने उनसे पूछा किअन्त्येष्टी कहां करेंगे? हमने सामान्य श्मशान बता दिया। कमलनाथ ने कहानहीं बड़े नेता थे। उनका स्मारक बनना चाहिए। मैं जगह की व्यवस्था करवाताहूं। और उन्होंने तत्काल सारी व्यवस्थाएं करवाईं।

विडबंना है कि श्मशान-कब्रिस्तान पर राजनीति करने वाली पार्टी ने कभी इसकी चितां नहीं की उसेखड़ा करने में अपना जीवन खपा देने वाले नेता और उनका परिवार आज “ अच्छेदिनों “ में कैसे रह रहा है। दीपक दूसरी ह्रदय विदारक बात बताते हैं। जबकरोना में उनकी पत्नी को एम्बूलेंस की जरूरत पड़ी तो शिवराज सरकार थी।

उनकी अपनी पार्टी की। मगर पत्नी को एंबूलेंस नहीं दी गई। और वे नहींरहीं। यहां यह बताना थोड़ा अच्छा नहीं लगता है मगर लोगों की याददाश्त कमभी होती है और वे जानबुझकर भूल भी जाते हैं। इसलिए बताना पड़ रहा है किजब दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे और शिवराज सिंह चौहान का गंभीरएक्सिडेंट हो गया था तो दिग्विजय ने तत्काल हैलिकाप्टर से उन्हें इलाज केलिए भिजवाया।

तो बात हो रही थी कि उस कांग्रेस ने अपनी पूर्व अध्यक्ष सोनिया कोकर्नाटक में जहां से वे 1999 में अपना पहला चुनाव जीती थीं सम्मान पूर्वकएक रैली करने के लिए बुलाया तो मोदी जी कहते हैं कि उन्हें क्यों लाए? देना तो भाजपा को भी यह सम्मान अपने पूर्व अध्यक्षों राजनाथ सिंह औरगडकरी को चाहिए था मगर उन्होंने तो दिया नहीं बल्कि उल्टा सम्मान देनेवाले से पूछ रहे हैं कि क्यों दिया?

यह वही हार का अंदेशा है। और जैसा कि हमने ऊपर लिखा कि चाहे जितनी उथल-पुथल मच जाए। मगर मोदी जी पर कोई असर नहीं होता है। पिछले 9 साल मेंकितने ही तूफान आए और चले गए। मगर न मीडिया उनके बारे में जनता को बताताहै और न ही जनता अपने धर्म के नशे से बाहर आती है। लेकिन चुनाव और उसमेंजीत एक ऐसी चीज है जिसे न मीडिया छुपा सकती है और न ही जनता उसकी धमक केबाद नशे में पड़ी रह सकती है।

कांग्रेस को यही एक बात अच्छी तरह समझना है। कर्नाटक में वह 9 साल मेंपहली बार पूरी ताकत से लड़ती हुई दिखी। और इस ताकत लगाने के परिणाम भीनजर आ रहे हैं। यहां की जीत उसे अगले चार महत्वपूर्ण राज्यों के चुनावमें ताकत देगी। भाजपा एक-एक चुनाव का मतलब समझती है। आखिरी आखिरी तक लड़ती है। कर्नाटकमें जब नहींकुछ हो  पा रहा है तो मतदान से एक दिन पहले राजस्थान से कांग्रेसएक नहीं है का नया विवाद पैदा किया।

सचिन पायलट कर्नाटक के रिजल्ट तक रूक सकते थे। मगर मतदान से एक दिन पहलेउनके बगावत का एलान करवाकर दस मई वोटिंग डे की सुबह की हेडलाइन और उससेएक दिन पहले 9 मई की शाम की कांग्रेस विरोधी डिबेटों का इंतजाम कर दिया।

कांग्रेस को बस यही समझना है। इस व्यवस्था में चुनाव सबसे मह्तवपूर्ण बनगए हैं। जब वह या विपक्ष जीतता है तो मोदी जी डिफेंसिव में चले जाते हैं।मगर जैसे ही वे जीतते हैं कांग्रेस और विपक्ष पर इतने आरोप लगा देते हैंकि वे लंबे समय तक मुर्छा में ही पड़े रहते हैं। अभी लास्ट गुजरात चुनावजीतने के बाद कर्नाटक तक वे कांग्रेस को आतंकवादी पार्टी कहने से लेकरइसके चुनाव लड़ने पर रोक लगाने जैसी बात तक करने लगे। राहुल को लोकसभा सेनिकालने और उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगने के बाद पूरी पार्टी पर भी यहगाज कभी भी गिर सकती है। चुनाव आयोग से इसकी मांग तो कर ही दी गई है।

कांग्रेस को और पूरे विपक्ष को 2024 लोकसभा सामने रखना है। अर्जुन की आंखकी तरह। नीतीश कुमार पर शक करना बंद करना चाहिए। शक से कुछ होगा नहीं। वेही हैं जो उड़ीसा के मुख्यमंत्री पटनायक से मिले। नीतीश कीमहत्वाकांक्षाएं हो सकती हैं। सबकी हैं। कांग्रेस में भी दस नेताओं कीहैं। जो सोचते हैं कि अगर मौका आया तो राहुल, सोनिया की तरह बनेंगे नहीं।और मनमोहन सिंह की तरह उनकी किस्मत खुल सकती है।

यह सब बाद की बातें हैं। मुख्य बात यह है कि अगर 2024 में मोदी जी कीहैटट्रिक हो गई तो यह बातें भी फिर कभी नहीं होंगी। मोदी जी के तीसरी बारजीतने का मतलब है कि कई नेता और दल फिर चुनाव लड़ने काबिल भी नहींरहेंगे। राहुल के बाद कांग्रेस को भी चुनाव ही लड़ने से वंचित किया जासकता है। पार्टी का रजिस्ट्रेशन केसिंल करना कौन सा बड़ा काम है? चुनावआयोग को ही तो करना है। रजिस्ट्रेशन रद्द। चुनाव चिन्ह जप्त!

Published by शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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