जनता के पैसे से बैंक मालामाल!

सरकार की ओर से इस बात का जोर शोर से प्रचार है कि पिछले नौ सालों में बैंकों की स्थिति ठीक हुई है। उनकी बैलेंस शीट अच्छी हुई है। एनपीए कम हुआ है। यह दावा सही है लेकिन ऐसा कैसे हुआ है यह नहीं बताया जा रहा है। बैंकों की एनपीए इसलिए कम दिख रहा है क्योंकि बैलेंस शीट साफ-सुथरी रखने के लिए बैंकों के खराब लोन यानी, जो लोन लौटाए नहीं जा रहे थे उनकी वसूली करने की बजाय उन्हें बैलेंस शीट से हटा कर बट्टे खाते में डाल दिया गया। यानी राइट ऑफ कर दिया गया। इसके अलावा सरकार ने एक इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड यानी आईबीसी बनाया, जिसे हिंदी में दिवालिया संहिता कहते हैं। इसके जरिए कंपनियों को औने पौने में अपना कर्ज निपटाने की सुविधा दी गई। एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक आईबीसी के तहत बैंक अपने बैड लोन का सिर्फ 17 फीसदी वसूल कर सके हैं। बैंकों का दावा कोई नौ लाख करोड़ रुपए का था, जिसमें से 1.37 लाख करोड़ रुपए की वसूली हो पाई। लेकिन चूंकि ऐसे सारे लोन पहले ही बट्टे खाते में डाले जा चुके हैं इसलिए बैंकों की आर्थिक सेहत बताने में इनका जिक्र नहीं होता है।

दो घटनाएं एक साथ हुई हैं। जब से दिवालिया संहिता लागू है और बड़े कारोबारियों का लाखों करोड़ रुपए का कर्ज या तो बट्टे खाते में गया है या औने पौने में निपटाया गया है तब से आम आदमी के लिए बैंकिंग महंगी बना दी गई है। इतनी तरह के बैंकिंग चार्ज लगा दिए गए हैं कि सिर्फ उनकी वसूली से बैंक मालामाल हो गए हैं। एक तरफ ब्याज दरों को बहुत कम रखा गया है। पिछले एक साल से ज्यादा समय तो बचत खाते या यहां तक की फिक्स जमा पर भी ब्याज रेट महंगाई दर से कम थी। यानी बैंकों में एफडी किया गया पैसा भी कम हो रहा था। बैंक ग्राहकों को कम ब्याज दे रहे हैं और कर्ज पर ज्यादा ब्याज वसूल रहे हैं। तो दूसरी ओर बैंक हर सेवा के लिए शुल्क वसूल रहे हैं। डिजिटल लेन-देन बढ़ने से बैंकों की कमाई इस तरह के शुल्क के कारण बढ़ती जा रही है।

जनता किस तरह के कंगाल हो रही है और बैंक मालामाल हो रहे हैं, इसे समझने के लिए कुछ आंकड़े देखे जा सकते हैं। ये ताजा आंकड़े हैं। इस अनुसार निजी और सरकारी सभी बैंकों का मुनाफा दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ा है। इस साल जनवरी से मार्च की तिमाही में इंडसइंड बैंक का स्टैंडअलोन नेट प्रॉफिट 50 फीसदी बढ़ कर 2,040 करोड़ रहा, जो पिछले साल इस तिमाही में 1,361 करोड़ रुपए था। इसी तरह जनवरी से मार्च की तिमाही में एचडीएफसी बैंक का शुद्ध लाभ 20 फीसदी बढ़ कर 12,594.47 करोड़ हो गया। सबसे बड़े निजी बैंक आईसीआईसीआई का शुद्ध मुनाफा पहली तिमाही में 30 फीसदी बढ कर 9,852.70 करोड़ रुपए हो गया। सबसे बड़े सरकारी बैंक यानी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को वित्त वर्ष 2022-23 में 50,232 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ। पिछले साल के मुकाबले यह मुनाफा 58.58 फीसदी ज्यादा था। आखिरी तिमाही यानी जनवरी से मार्च में उसका मुनाफा 83 फीसदी रहा।

ऐसा होने के कई कारण हैं। सभी बैंकों की बैलेंस शीट साफ हो गई है। पुराना कर्ज सब भूल चुके हैं। दूसरे, अब ब्याज पर कमाई बढ़ी है। तीसरे ग्राहकों से अलग अलग शुल्क लगा कर हजारों करोड़ रुपए वसूले जा रहे हैं। मिसाल के तौर पर बचत खाते में न्यूनतम बैलेंस मेंटेन नहीं कर पाने की वजह से बैंकों को हजारों करोड़ रुपए मिलते हैं। इसका ताजा आंकड़ा उपलब्ध नहीं है लेकिन जुलाई 2019 के आंकड़ों के मुताबिक उससे पहले के पांच साल में बैंकों ने न्यूनतम बैलेंस नहीं रखने पर 10 हजार करोड़ रुपए का जुर्माना वसूला था। बैंकों ने न्यूनतम बैलेंस की सीमा बढ़ा दी है और उसे मेंटेन नहीं करने पर एक सौ से लेकर छह सौ रुपए तक का जुर्माना लगाया जाता है। बैंकों में ग्राहकों के जमा पैसे से बैंक जो कमाई कर रहे हैं वह अलग है, बैंकिंग की हर सेवा पर शुल्क लगा कर अलग कमाई की जा रही है और उसके बाद भी सरकार का अहसान होता है कि वह बैंकिंग सेवा ज्यादा लोगों तक पहुंचा रही है! बैंक के लगभग हर ग्राहक के पेड सर्विस मिल रही है फिर भी बैंक कर्मचारियों का बरताव अहसान करने वाला ही होता है।

कुछ सेवाओं पर लगने वाले चार्जेज के बारे में लोग जानते हैं लेकिन कुछ की तो जानकारी भी नहीं मिलती है। जैसे कुछ बैंक ग्राहकों को लुभाने के लिए दावा करते हैं कि वे खाता खोलने पर ग्राहक का बीमा करते हैं लेकिन यह नहीं बताते हैं कि वे उसका प्रीमियम खाते से ही लेते हैं। मोबाइल सेवा देने वाली सारी कंपनियों ने एसएमएस लगभग मुफ्त कर दिए हैं लेकिन बैंक एसएमएस के जरिए अलर्ट भेजने का हर तीन महीने पर 15 रुपया लेते हैं, जो जीएसटी जोड़ कर 17.70 रुपया हो जाता है। डेबिट कार्ड के पिन नंबर को रीसेट करने का भी बैंक शुल्क लेते हैं। एकाध बैंक तो इसके लिए 50 रुपए का शुल्क और टैक्स अलग लेते हैं। चेक बाउंस होने पर लगने वाला शुल्क दो सौ से आठ सौ रुपए तक हो गया है। इतना ही नहीं अगर कोई व्यक्ति अपना डेबिट कार्ड इस्तेमाल करता है और पर्याप्त पैसे नहीं होने की वजह से पेमेंट नहीं हो पाता है तो उसके खाते से जुर्माना कट जाता है।

साधारण बैंकिंग लेन-देन भी अब फ्री नहीं है। चार मुफ्त लेन-देन के बाद हर लेन-देन पर पांच रुपए प्रति हजार के हिसाब से शुल्क लगता है। एटीएम से निकासी पर भी यह सीमा है। वहां भी पांच लेन-देन के बाद हर ट्रांजेक्शन पर पैसा देना होता है। लेन-देन का मतलब जमा और निकासी दोनों है। यानी दो बार जमा और दो बार निकासी ही मुफ्त है। इंटरनेट बैंकिंग के चार्ज लगते हैं। आईएमपीएस से पैसा भेजने पर पांच से 25 रुपए और आरटीजीएस करने पर 30 से 55 रुपए का शुल्क लगता है। डेबिट कार्ड जारी करने और हर साल उसे मेंटेन करने का एक सौ से आठ सौ रुपए तक का चार्ज लगता है। इस तरह के और भी कई शुल्क हैं, जो लोगों को जाने अनजाने चुकाने होते हैं और उनसे बैंकों को हजारों करोड़ रुपए की कमाई होती है।

Published by हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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