कोरोना से बदली आर्थिक व्यवस्था

कोरोना से बदली आर्थिक व्यवस्था

महामारी खत्म हो गई है लेकिन कोरोना अभी खत्म नहीं हुआ है। करीब चार महीने बाद फिर एक दिन में सात सौ केस आए और एक्टिव केसेज की संख्या साढ़े चार हजार से ज्यादा बताई गई। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने छह राज्यों को चिट्ठी लिख कर हिदायत दी है कि उनके यहां कोरोना बढ़ रहा है और ऐहतियात बरतनी चाहिए। भारत में कोरोना महामारी को आए तीन साल हो गए है। मार्च 2020 के आखिरी हफ्ते में पहले संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा हुई थी। चार घंटे की नोटिस पर देश बंद किया गया था। उसके बाद के तीन सालों में समाज और अर्थव्यवस्था दोनों बहुत बदले है। आमतौर पर लोग इस बदलाव को देख नहीं रहे हैं या देखने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं कि आज जो परेशानी और बदलाव हैं उसका कारण कोरोना महामारी है।

जैसे मीडिया में हाल में शोर था कि चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में विकास दर कम होकर 4.4 प्रतिशत रह गई, जबकि पहली तिमाही में वह 13 प्रतिशत से ऊपर थी। दूसरी तिमाही में छह प्रतिशत से ऊपर थी। जाहिर है लोग जानते ही नहीं हैं कि कोरोना का असर था जो पहली तिमाही में विकास दर दो अंकों में हुई और उसके बाद कम होने लगी। क्या मतलब? असल में कोरोना के पहले और दूसरे संपूर्ण लॉकडाउन और तीसरे आंशिक लॉकडाउन का असर था जो वित्त वर्ष 2020-21 के अप्रैल से जून की तिमाही में विकास दर माइनस 24 प्रतिशत थी। इस भारी गिरावट के बाद जो आधार था उससे फिर अगली तिमाही में विकास होने का हिसाब बना। क्योंकि बेस माइनस में था इसलिए जरा सा भी सुधार पहली तिमाही की विकास रेटदो अंकों की हो गई।फिर हर तिमाही की विकास दर का हिसाब कोरोना के पहले साल के विकास दर के आधार पर हुआ इसलिए जीडीपी रेट में इतना वैरिएशन है।

ऐसे ही लोगों को अंदाजा नहीं हो रहा है कि महंगाई इतनी क्यों बढ़ी हुई है। खुदरा महंगाई की दर लगातार रिजर्व बैंक की ओर से तय की गई सुविधाजनक सीमा से ऊपर है। इसका कारण भी कोरोना महामारी है। आमतौर पर महंगाई तब होती है, जब मांग ज्यादा हो और सप्लाई कम। लेकिन अगर सप्लाई पर्याप्त से ज्यादा हो और तब भी महंगाई बढ़ी हुई हो तो उसका कारण दूसरा होता है। भारत में यही हो रहा है। भारत में खाने पीने की चीजों का रिकॉर्ड उत्पादन है।

भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक सन् 2022-23 में भारत में अनाज का उत्पादन 33 करोड़ टन रहा। फल, सब्जियों के पैदावार में भी कमी नहीं है लेकिन फिर महंगाई ऊंची बनी हुई है। हैरानी की बात है कि खुदरा महंगाई दर बुनियादी रूप से खाने पीने की चीजों की महंगाई की वजह से है। इसके बाद ईंधन का नंबर आता है। जाहिर है कि महंगाई बढ़ने का कारण स्वाभाविक नहीं है। मांग और आपूर्ति में अंतर नहीं होने पर भी महंगाई ज्यादा होने का कारण यह है कि अर्थव्यवस्था की दर ऊंची रखने या दिखाने के लिए सरकार कृत्रिम रूप से महंगाई दर बढ़ाए हुए है। ऐसा लग रहा है कि कोरोना की मार से प्रभावित अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए ऊंची महंगाई दर रखी गई है। इसी से सरकार का हर महीने का जीएसटी कलेक्शन एक लाख 40 हजार करोड़ रुपए तक रह रहा है।

ऐसे ही बेरोजगारी दर के सात प्रतिशत से ऊपर होने का सस्पेंस है। इसके लिए तरह तरह के कारण बताए जा रहे हैं लेकिन कोरोना को एक कारण के तौर पर नहीं देखा जा रहा है। ऊंची बेरोजगारी दर का एक कारण लघु, सूक्ष्म और मझोले उद्योग यानी एमएसएमई सेक्टर का कमजोर होना है। यह सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला क्षेत्र है। नवंबर 2016 में हुई नोटबंदी की वजह से यह सेक्टर पहले से दबाव में था लेकिन कोरोना महामारी और उसके बाद हुए पूर्ण व आंशिक लॉकडाउन ने इसकी कमर तोड़ दी। केंद्र सरकार ने इस सेक्टर को बचाने के लिए सिर्फ क्रेडिट का बंदोबस्त किया, कोई आर्थिक मदद नहीं की। कोरोना के पहले साल यानी 2020 में एमएसएमई सेक्टर का उत्पादन 46 प्रतिशत कम हुआ था। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में एमएसएमई सेक्टर का कुल बकाया 8.73 लाख करोड़ रुपए पहुंच गया। नतीजा यह हुआ कि लाखों की संख्या में छोटी व मझोली कंपनियां बंद हुईं। महामारी का बड़ा असर विनिर्माण सेक्टर पर भी हुआ और वहां भी लाखों लोगों की नौकरी गई।

सो, चाहे विकास दर हो, महंगाई हो या बेरोजगारी सभी की बुनियाद में कहीं न कहीं कोरोना महामारी है। दुनिया के दूसरे देशों में खासतौर से विकसित देशों में सरकार की ओर से लोगों को आर्थिक मदद दी गई लेकिन भारत में सरकार ने किसी नागरिक को आर्थिक मदद नहीं दी। अलग अलग सेक्टर के लिए कर्ज लेने की व्यवस्था जरूर की गई और उसके लिए कर्ज की राशि बढ़ाई गई लेकिन तब संकट ऐसा था कि कोई भी समझदार और असली कारोबारी कर्ज लेकर बिजनेस नहीं करना चाहता था। सो, छोटी कंपनियां, फैक्टरियां बंद हुईं और लोगों की बचत समाप्त हुई। आज जो महंगाई रोकने के नाम पर हर दिन ब्याज दरों में बढ़ोतरी की जा रही है उसका भी एक मकसद लोगों के पैसे बैंक में जमा कराना है ताकि सिस्टम को चलाए रखा जा सके।

Published by हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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