बिहार में वज्रपात से 7 सालों में 1800 से अधिक हुई मौतें

बिहार में वज्रपात से 7 सालों में 1800 से अधिक हुई मौतें

पटना। बिहार में प्रत्येक साल वज्रपात (Thunderstroke) की घटनाएं यहां के लोगों के लिए कहर बन कर टूटती हैं। हर साल यहां वज्रपात से कई लोगों की मौत हो रही है। इस साल अब तक 70 से अधिक लोगों की मौत हो गई है। बताया जाता है कि वज्रपात की ज्यादा घटनाएं ग्रामीण क्षेत्रों में होती हैं। इनमें कई ऐसे होते हैं जो खेत मे काम करने के दौरान वज्रपात की चपेट में आ जाते हैं। यही कारण है कि आपदा प्रबंधन प्राधिकरण बारिश (Disaster Management Authority Rain) के समय सुरक्षित स्थान पर घर के अंदर चले जाने की सलाह देते हुए जागरूक कर रहा है। बिहार में पिछले सात वर्षों यानी 2018 से अब तक वज्रपात से होने वाले हादसे की बात करें तो 1800 से अधिक लोगों की इससे मौत हो चुकी हैं। इसमें इस साल 70 से अधिक मौतें हो गयी है।

आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2016 में 114 लोगों की मौत वज्रपात की चपेट में आने से हो गयी थी तो 2017 में 180, 2018 में 139, 2019 में 253, 2020 में 459 और 2021 में 280 लोगों की मौत हो गई। इसके बाद 2022 में 400 तथा 2023 में 242 लोगों की मौत हो चुकी है। जिलेवार आंकड़ों को देखें तो राज्य के जिन जिलों में वज्रपात (Thunderstroke) का कहर ज्यादा बरपता रहा है उनमें जमुई, गया, बांका, औरंगाबाद, नवादा, पूर्वी चंपारण, छपरा, कटिहार, रोहतास, भागलपुर और बक्सर जिले हैं। पिछले सात सालों में गया में 142 लोगों की मौत वज्रपात से हुई तो औरंगाबाद में 110 लोगों की मौत हुई। बताया जाता है कि वज्रपात गिरने का समय मुख्य रूप से मई से लेकर सितंबर तक का महीना होता है।

इसलिए इस समय ज्यादा अलर्ट (Alert) रहने की जरुरत होती है। बिहार सरकार वज्रपात से होने वाली हर मौत पर 4 लाख रुपए का अनुग्रह अनुदान देती है। आकाश में अपोजिट एनर्जी के बादल हवा से विपरीत दिशा में जाते हुए टकराते हैं। इससे घर्षण होती है और बिजली पैदा होती है। यही बिजली जमीन पर गिरती है। इस बिजली को किसी तरह के कंडक्टर की जरूरत पड़ती है। नमी एक कंडक्टर की भूमिका निभाती है, जिसके कारण आकाशीय बिजली (Lightning) जमीन पर गिरती है और इसकी चपेट में आने से लोगों की मौत हो जाती है। दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया में पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर प्रधान पार्थ सारथी कहते हैं कि अधिकतर मौतें ग्रामीण इलाकों में मानसून के आगमन पर होती हैं जब किसान अपने गीले खेतों में खरीफ फसल की बुआई करते हैं।

राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय (Rajendra Agricultural University), पूसा के मौसम वैज्ञानिक डॉ गुलाब सिंह कहते हैं कि बिहार का टोपोग्राफी (स्थलाकृति) अन्य प्रदेशों से अलग है। बिहार में मानसून धाराएं बंगाल की खाड़ी से बहुत अधिक नमी लाती है। अस्थिरता और नमी के संयोजन के कारण आवेशित कणों के साथ गरज के साथ बारिश होती है। इसी कारण वज्रपात की घटनाएं होती हैं। उन्होंने बताया कि वज्रपात का बड़ा कारण बिहार के हिमालय की तलहटी के तराई क्षेत्र में होना है। यहां सतह ताप और आद्रता के अलावा इस क्षेत्र की भौगोलिक बनावट (Geographic Texture) भी उच्च बिजली हमलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। सरकार हालांकि वज्रपात के पहले सूचना मिलने को लेकर कई उपाय किए हैं लेकिन अब तक इसमें आशातीत सफलता नहीं मिली है।

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