मप्र में बाघों की संख्या दोगुनी होने के बावजूद उच्च मृत्यु दर से विशेषज्ञ चिंतित

मप्र में बाघों की संख्या दोगुनी होने के बावजूद उच्च मृत्यु दर से विशेषज्ञ चिंतित

भोपाल। घने वन क्षेत्रों के साथ संभावित आवास और दूर स्थित बाघ अभयारण्यों (Tiger Reserve) के बीच उचित गलियारों को बाघों के दीर्घकालिक संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण पहलू माना जाता है। यह बात पूर्व वन अधिकारी व मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के वनों के प्रमुख मुख्य संरक्षय वन आलोक कुमार (Alok Kumar) ने कही। वह अब कूनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) में चीता प्रोजेक्ट के प्रमुख सदस्यों में से एक है। सन 2000 में जब मध्य प्रदेश को दो भागों में बांटा गया था, तब यहां लगभग 250-300 बाघ थे, जो अब 700 तक पहुंच चुके हैं। अब, नई तकनीकों जैसे रेडियो कॉलर सिस्टम और नजदीकी निगरानी के साथ-साथ उच्च दृश्यता ने और अधिक प्रामाणिकता ला दी है। कुमार ने कहा कि यद्यपि पूरे मध्य भारतीय परिदृश्य को अपने घने वन क्षेत्रों के कारण जंगली जानवरों के लिए एक संभावित आवास माना जाता है।

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मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में राज्य के भीतर स्थित वन क्षेत्रों और पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के बीच कनेक्टिविटी के कारण अधिक क्षमता है। जबकि भारतीय बाघों (Indian Tiger) में दुनिया भर में उनकी उप-प्रजातियों की तुलना में सबसे अधिक आनुवंशिक भिन्नता है, अंत:प्रजनन और संभावित आवासों के नुकसान से बाघों की हानि हो रही है। कुमार ने बताया, बाघों की सुरक्षा के लिहाज से अंत:प्रजनन अच्छा हो सकता है, लेकिन बाघों के दीर्घकालिक संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए पुनर्वास एक बहुत महत्वपूर्ण कदम है। मध्य प्रदेश में, बाघों की उपस्थिति अब प्रत्येक राष्ट्रीय उद्यान में सात बाघ अभयारण्यों के अलावा है। क्योंकि सभी वन क्षेत्र या पशु आवास अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं, उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित किया जा रहा है।

उन्होंने दावा किया कि मध्य प्रदेश ने पिछले कुछ दशकों में बाघों की संख्या में 100 फीसदी वृद्धि हासिल की है, लेकिन दूसरी तरफ चुनौतियां भी बढ़ी हैं और जंगली जानवरों और इंसानों के बीच संघर्ष उसी का नतीजा है। कुमार ने कहा, जंगली जानवरों की रक्षा के लिए मजबूत बल समय की जरूरत है। इसके अलावा, वन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के बीच उचित निगरानी और जागरूकता पशु-मानव संघर्ष को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। भोपाल स्थित वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दूबे ने कहा कि मध्य प्रदेश में बाघों की संख्या सबसे अधिक है और बाघों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दूसरी ओर, राज्य में बाघों का अवैध शिकार भी बढ़ रहा है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) एक बाघ राज्य है और राज्य में पहले किए गए प्रयासों के कारण इसे ‘टाइगर स्टेट’ (Tiger State) का खिताब दिया गया है। दुर्भाग्य से पिछले कुछ वर्षों में बाघों की मौत बढ़ रही है और बहुत अधिक दर से हो रही है। 2012 से 2022 के बीच 270 बाघों की मौत हुई है। स्पष्ट है कि पूरे विश्व के प्रति मध्यप्रदेश का कर्तव्य है, क्योंकि बाघ ही वह प्रमुख पशु है, जिसके द्वारा जंगल की वनस्पतियों और जीव-जन्तुओं का पालन-पोषण होता है। दुबे ने कहा कि अगर बाघों की आबादी घटती है, तो अन्य जानवरों के साथ-साथ पर्यावरण को भी अपूरणीय क्षति होती है। (आईएएनएस)

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