भोपाल। जिस तरह से प्रदेश के दोनों ही प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस के साथ-साथ तीसरी ताकत के रूप में भीम आर्मी, आप, जयस, बसपा और सपा अभी से जोर लगा रहे हैं उससे इतना तो तय है कि पहली बार प्रदेश में मतदाता दुविधा में रहेगा कि कौन किसको हरायेगा।
दरअसल 2023 विधानसभा चुनाव के लिए जहां भाजपा और कांग्रेस कमर कस चुकी है और ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं छोड़ रही हैं जहां कमजोर कड़ी के कारण चुनावी पराजय हो बूथ मैनेजमेंट भाजपा का चुनाव जीतने का आजमाया हुआ अस्त्र है। उसी को और माइक्रो मैनेजमेंट की ओर भाजपा ले जा रही है अब तो प्रत्येक वोटर तक कार्यकर्ताओं को पहुंचाने का सिलसिला शुरू कर रही है। साथ ही यह भी जानकारी जुटा रही है कि बूथ क्षेत्र में स्मार्टफोन का उपयोग करने वाले कितने मतदाता हैं ताकि इनकी जानकारी संगठन को भेजी जा सके। क्षेत्र में बाइक स्कूटर और फोर व्हीलर वाले कार्यकर्ता कौन-कौन से हैं। सभी 65000 बूथों पर मठ और मंदिरों की जानकारी भी एकत्रित की जा रही है।
मतलब पार्टी पूरी जानकारी से अपडेट होकर चुनावी रणनीति बना रही है। लगभग 22 लाख कार्यकर्ताओं को टारगेट दिया गया है कि वे महीने में कम से कम एक बार अपने मतदाता से जरूर मिले साथी बूथ क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय कर्मचारी मसलन कोटवार पटवारी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता आशा कार्यकर्ता ग्रामसेवक स्वास्थ्य कर्मी स्कूल शिक्षक पंचायत सचिव रोजगार सहायक जैसे कर्मचारियों के संपर्क में भी स्थानी कार्यकर्ता रहे। यही नहीं बेहतर प्रत्याशियों की तलाश कितना भी दिग्गज नेता हो यदि सर्वे रिपोर्ट सही नहीं आएगी तो उसका टिकट काटा जाएगा और चुनावी मैनेजमेंट गुजरात की तर्ज पर किया जाएगा। मतलब साफ है सत्ताधारी दल भाजपा किसी भी प्रकार की कसर नहीं छोड़ रही है।
भाजपा से प्रतिस्पर्धा कर रही कांग्रेस भी भाजपा की तर्ज पर मंडलम सेक्टर और बूथ को मजबूत करने में जुटी है। जातीय समीकरण एकत्रित किए जा रहे हैं और लगातार बेहतर प्रत्याशी के लिए सर्वे किए जा रहे हैं और पार्टी के दिग्गज नेताओं ने मैदान में मोर्चा संभाल लिया है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जहां भाजपा की उन मजबूत सीटों पर जा रहे हैं जहां कांग्रेस लगातार चुनाव हार रही है। पिछले 3 दिन से विदिशा और सागर जिले की सीटों पर दिग्विजय सिंह कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उत्साहित किया और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ एक तरफ जहां दौरे कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर समीक्षा बैठकें करके एक-एक सीट को जीतने की रणनीति बना रहे हैं और नगरीय निकाय के चुनाव की तर्ज पर बेहतर प्रत्याशी जनता के बीच उतारने के लिए विभिन्न स्तर पर सर्वे करवा रहे हैं।
पार्टी के प्रदेश पदाधिकारियों और जिला प्रभारियों को लगातार प्रवास कराया जा रहा है और फीडबैक के आधार पर निर्णय लिए जा रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस के अलावा भीम आर्मी और ‘आप’ पार्टी अपना प्रदर्शन राजधानी भोपाल में कर चुकी है। जयस, बसपा और सपा भी समीकरण साधने में जुटी है। इन दलों की उम्मीदें भाजपा और कांग्रेस के उन बागी नेताओं से भी है जो टिकट ना मिलने पर इन के बैनर तले चुनाव मैदान में उतरेंगे। कुल मिलाकर अभी तक भले ही मध्य प्रदेश की राजनीति में दो दलीय व्यवस्था चलती रही है और मतदाताओं के सामने दो चेहरों और दो चिन्हों के बीच चैन करने में सुविधा होती थी जो भी बेहतर हुआ उसको वोट दे आए और इन दोनों ने भी समय-समय पर ऐसे प्रत्याशी मैदान में उतारे जिसके कारण मतदाताओं को कम दुविधा हुई लेकिन इस बार जिस तरह से सर्वे के आधार पर सबसे बेहतर प्रत्याशी उतारने की कवायद भाजपा और कांग्रेस कर रही है और इनसे नाराज तीसरी ताकत के उम्मीदवार मैदान में होने से माना जा रहा है कि इस बार वोट देने के पहले मतदाता को मशक्कत करनी पड़ेगी कि आखिर हम किसे वोट दें क्योंकि माहौल और मैनेजमेंट का बड़ा मुकाबला भी इस चुनाव में होने जा रहा है।