नई दिल्ली। देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार एक बार फिर धीमी पड़ गई है। चालू वित्त वर्ष यानी 2022-23 की तीसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की विकास दर गिर कर सिर्फ 4.4 फीसदी रह गई है। माना जा रहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा महंगाई पर काबू पाने के लिए ब्याज दरों में लगातार की गई बढ़ोतरी का असर विकास की दर पर पड़ा है। इससे उपभोक्ता मांग घटी है, जिसकी वजह से विकास दर कम हुई।
केंद्र सरकार की ओर से मंगलवार शाम को जीडीपी के आंकड़े जारी किए। इसके मुताबिक अक्टूबर से दिसंबर की तिमाही में विकास दर 4.4 फीसदी रही। त्योहारी सीजन में ही विकास दर घट गई। इससे पहले वित्त वर्ष की पहली यानी अप्रैल सेजून की तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी 13.5 फीसदी की दर से बढ़ी थी। दूसरी तिमाही यानी जुलाई से सितंबर के बीच विकास दर 6.3 फीसदी दर्ज की गई थी।
अगर साल दर साल के हिसाब से देखें तो पिछले साल यानी वित्त वर्ष 2021-22 के अक्टूबर से दिसंबर की तिमाही में विकास दर 5.4 फीसदी थी। यानी साल दर साल के हिसाब से भी इस साल की तीसरी तिमाही में विकास दर एक फीसदी कम है। हालांकि सरकार ने पूरे साल के लिए जीडीपी की विकास दर के अनुमान को सात फीसदी पर बरकरार रखा है। बहरहाल, सरकार ने कहा- वित्त वर्ष 2022-23 की तीसरी तिमाही में रियल जीडीपी 40.19 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गई, जो पिछले साल की समान तिमाही में 38.51 लाख करोड़ रुपए पर रही थी।
माना जा रहा है कि महंगाई कम करने के लिए बढ़ाई ब्याज दरें जीडीपी की रफ्तार कम होने के लिए जिम्मेदार हैं। कुछ जानकार इसे बेस इफेक्ट भी मान रहे हैं। उनका कहना है कि पहली दो तिमाहियों की जीडीपी का बेस छोटा था इसलिए इस विकास दर ज्यादा रही, जबकि तीसरी तिमाही का बेस ऊंचा था। इसके अलावा एक कारण निर्यात और उपभोक्ता मांग में कमी को भी बताया जा रहा है।