अतीक अहमद की पुलिस हिरासत में हत्या के बाद उचित ही है कि उप्र में अपराधियों और राजनीति के रिश्ते पर चर्चा तेज हो गई है। इस सिलसिले में यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि राज्य विधानसभा में 51 प्रतिशत विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं।
उत्तर प्रदेश में राजनीति का अपराधीकरण और एनकाउंटर राज अब भले अपने चरम बिंदु पर दिख रहा हो, लेकिन इसकी जड़ें बहुत पहले डाली गई थीं। राज्य में बड़ी संख्या में फर्जी मुठभेड़ों में कथित अपराधियों को मारे जाने के इल्जाम सबसे पहले 1980 के दशक में लगे थे, जब विश्व प्रताप सिंह मुख्यमंत्री थे। उसके बाद से ये सिलसिला बढ़ता ही गया है। विधायक और सांसद रहे गैंगस्टर अतीक अहमद की पुलिस हिरासत में हत्या के बाद उचित ही है कि उत्तर प्रदेश में अपराधियों और राजनीति के रिश्ते पर चर्चा तेज हो गई है। इस सिलसिले में यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि राज्य विधानसभा में 51 प्रतिशत विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। चुनावी सुधारों के लिए काम करने वाली निजी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने 2022 में हुए उप्र विधान सभा चुनावों में जीतने वाले उम्मीदवारों के हलफनामों के आधार पर ये आंकड़े पेश किए थे। उसकी रिपोर्ट के मुताबिक 403 विधायकों में से 205 यानी 51 प्रतिशत ने अपने खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज होने की जानकारी दी थी।
उनमें से 158 यानी 39 प्रतिशत विधायकों के खिलाफ हत्या, हत्या की कोशिश, बलात्कार, अपहरण आदि जैसे गंभीर आपराधिक मामले भी दर्ज हैं। यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि गंभीर आपराधिक मामलों का सामना कर रहे विधायकों की संख्या सबसे ज्यादा भारतीय जनता पार्टी में पाई गई। इसलिए एनकाउंटर के जरिए अपराध का खात्मा करने के राज्य सरकार की नीति को लेकर सवाल भरी निगाहों से देखते हैं। इस शिकायत में दम है कि जिन लोगों पर वर्तमान सत्ताधारी दल की क़ृपा है, वे इस नीति के खौफ से बचे हुए हैँ। जबकि दूसरे लोगों- उनमें भी खास कर मुसलमानों के लिए ये खौफ बढ़ता चला गया है। अतीक अहमद पर भी अपराधी होने का आरोप था। लेकिन जिस तरह पुलिस के पहरे में हत्या उसकी और उसके भाई की हत्या हुई, उसने सारी प्रशासनिक व्यवस्था और कानून के राज की धारणा की धज्जियां बिखेर दी हैँ। क्या इसके बाद भी अब लोग बबूल के उस पेड़ की जड़ तक पहुंचेंगे, जिसका ज़हर अब पूरे समाज में फैल गया है?