जो लोग क्रोनी कैपिटलिज्म को सिर्फ भारत की परिघटना मानते हैं, उन्हें अपनी इस राय पर पुनर्विचार करना चाहिए। उन्हें वित्तीय पूंजीवाद के वर्तमान रूप को समझना चाहिए, जिसने राजसत्ताओं पर कब्जा जमा लिया है।
एयर इंडिया, बोइंग और एयरबस तीनों प्राइवेट कंपनियां हैं। एयर इंडिया ने विमान खरीदने का सौदा अमेरिका की बोइंग और फ्रांस की एयरबस से किया है। ध्यान देने की बात है कि इस सौदे का एलान तीनों देशों के सरकार प्रमुखों ने किया। उधर इस अवसर पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक का भी उल्लास झलका। इसलिए कि इस सौदे से जुड़े कई पाट-पुर्जों की सप्लाई ब्रिटिश कंपनियां करेंगी। यह घटना मौजूदा दौर में राजसत्ता के बदले चरित्र की बेहतरीन मिसाल है। इसलिए जो लोग क्रोनी कैपिटलिज्म को सिर्फ भारत की परिघटना मानते हैं, उन्हें अपनी इस राय पर पुनर्विचार करना चाहिए। उन्हें वित्तीय पूंजीवाद के वर्तमान रूप को समझना चाहिए, जिसने राजसत्ताओं पर कब्जा जमा लिया है। उसके बीच सरकारें सिर्फ उसका हित साधने की एजेंसी बन गई हैँ। वे कारोबारी घरानों के हित साधती हैं। कुछ धनी-मानी घराने अपने धन और प्रचार तंत्र से चुनावों का निर्णायक नैरेटिव तैयार करते हैं। ऐसे में उनका समर्थन काफी हद तक एक निर्णायक पहलू बन जाता है। यह बात इसलिए आज अधिक विचारणीय है, क्योंकि भारत में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो सोचते हैं कि अगर नरेंद्र मोदी सरकार ने बीबीसी पर छापा डलवाया है, तो उससे पश्चिमी दुनिया में उसकी हैसियत बिगड़ जाएगी। यह संयोग है या नहीं, हम नहीं जानते, लेकिन इस विडंबना पर जरूर गौर करना चाहिए कि बीबीसी पर छापा जिस दिन पड़ा, उसी शाम नरेंद्र मोदी, जो बाइडेन, इमैनुएल मैक्रों और ऋषि सुनक ने उद्देश्य के साझेपन का अद्भुत संदेश सार्वजनिक रूप से दिया।
इसके तीन दिन पहले न्यूयॉर्ट टाइम्स अपने एक संपादकीय में इस बात पर अफसोस जता चुका था कि अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य पश्चिमी देशों की सरकारें अपनी चीन विरोधी रणनीति में भारत की उपयोगिता के कारण दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की खत्म हो रही आजादी की चिंता नहीं कर रही हैं। मंगलवार की घटनाओं से इस अखबार और उसकी जैसी सोच रखने वाले लोगों का अफसोस गहरा हुआ होगा। बहरहाल, कहने का सार और संदेश यह है कि भारत के लोगों को अपनी नागरिक आजादियों को बचाना है, तो उसके लिए उन्हें खुद और अपने बूते पर संघर्ष करना होगा।