रूस का खजाना भारत के अरबों-खरबों रुपयों से भरा पड़ा है।और रूस रुपयों के पहाड़ से छुटकारा चाहता है।उसे अब और नहीं चाहिए भारत की लचर-सस्ती करेंसी। उसे भारत से ऐसी दूसरी करेंसीचाहिए जो मज़बूत हो। जिसे लेने में दुनिया के बाज़ार में कोई मना नहीं करें। जो उसके लड़ाई जीतने में काम आए। रूस ने साफ़ बता दिया है कि वह भारत को रुपए की जगह दूसरी करेंसी देनी होगी नहीं तो तेल नहीं मिलेगा।
इसका खुलासा गोवा में शंघाई कोऑपरेशन आर्गेनाइजेशन (एससीओ) के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों कीबैठक के दौरान हुआ। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने साफ़ शब्दों में कहा है रूस के लिए रुपयों से भरा खज़ाना मुसीबत है। इसका उपयोग नहीं हो पा रहा है।(this is a problem…we need to use this money.)
क्या मतलब है? मोटा मोटी यह कि भारत झूठ के अपने ही बुने जाल में फँसा है।
दिसंबर 2022 में भारत और रूस ने अपने व्यापारिक लेनदेन को रुपयों में निपटाया। यह अंतर्राष्ट्रीय ट्रेड सेटलमेंट का भाग था। रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद था। इस पर भारत ने बढ़-चढ़ कर हल्ला बनाया। दावा किया गया कि रूपया ‘ग्लोबल करेंसी’ (2023 की शुरुआत में ऐसे दावे)बनने की राह पर है।जैसे संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद् में स्थाई सीट का हल्ला स्थाई है वैसे रुपये को इंटरनेशनल करेंसी बनाना भी लम्बे समय से भारत की सरकारों का एजेंडा रहा है।यह अलग बात है कि भारत की राजनीति व आर्थिक अस्थिरता और भू-राजनैतिक तनावों के चलते ये दोनों ही लक्ष्य हवाबाजी में अटके रहे है।
मगर2023 की शुरुआत में भारत में खूब हल्ला हुआ करेंसी के सपने के पूरे होने का। तब जारी आधिकारिक आंकडे में कहा गया कि देश में विदेशी पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट जो 2008 में 12 अरब डॉलर था, 2020 में 80 अरब डॉलर हो गया।व्यापार व निवेश में अवसरों के ऐसे बढ़ने से रुपये का अंतर्राष्ट्रीयकरण हो रहा है।भारतीय अर्थव्यवस्था, अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में एकीकृत होते हुए है। वाह, क्या बात! इस पहलू पर सोशल मीडिया में भक्तों ने, मीडिया ने जनता को खूब बरगलाया। जम कर तालियाँ बजी।
और आज की असलियत। रूस ने कहा है वह रुपये में व्यापार नहीं करेगा।रूपए का अंबार उसके काम का नहीं है। स्वाभाविक तौर पर इस खबर को दबा दिया गया। इस पर हल्ला नहीं हुआ। उलटे जनता को एक नया झुनझुना पकड़ा दिया गया है।लोगों को बताया जा रहा है कि अब वे दोहा और दुबई के हवाईअड्डों पर रुपये से शॉपिंग कर सकते हैं।
कुल मिलाकर रुपये की हैसियत, उसकी वैश्विक वेल्यू की पोल जगजाहिर है। ध्यान रहेरूस-यूक्रेन लड़ाई के बाद से भारत का रूस से आयात पांच गुना बढ़ा है। भारत की कुल खरीदारी 41.56 अरब डॉलर हो गयी है। मुख्य कारण रूस हमें सस्ते दामों पर कच्चा तेल बेच रहा है।यह खरीदी रूपए दे कर हुई। लेकिन रूस भारत की करेंसी से अपनी जरूरत का सामान नहीं खरीद सकता है। उसकी खरीद लिस्ट में भारत से खरीदने लायक बहुत कम है। उसके लिए यह भी संभव नहीं है कि वह भारत के रूपए को दूसरे देशों को दे कर उनसे सामान खरीदें। भारत की करेंसी को कौन लेगा? रूपए को बेच कर डालर या किसी अन्य वैश्विक करेंसी कनवर्ट करना या भारत से डालर में पेमेंट लेना इसलिए मुश्किल है क्योंकि रूस पर पाबंदी है अमेरिका केंद्रीत बैंक स्विफ्ट मैसेजिंग सिस्टम के उपयोग पर।
अमरीका-योरोप की पाबंदियों से डॉलर उसकी पहुँच से बाहर है। ऐसी ही समस्या सन 2019 में भारत को ईरान से व्यापार में आई थी। अमरीका के तब ईरान पर प्रतिबन्ध थे। उस समय भारत और ईरान ने सिंगापुर के जरिये व्यापार करने का रास्ता निकाला था। इस कारण ईरान को रूस के तरह रुपए के विशाल ढेर की समस्या का सामना नहीं करना पड़ा था।
पिछले एक वर्ष से भारत की रिफाइनरियाँ, यूएई के दिरहम, रूसी रूबल और ढेर सारे रुपयों में रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीद रहीं हैं।सो रूस के पास रुपये ही रुपये हैं लेकिन अब वे किसी काम के नहीं है। कारण यह कि दावों के विपरीत, रूपया न तो ग्लोबल करेंसी था और ना है। अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में रूपया पूर्ण परिवर्तनीय मुद्रा नहीं है।असलियत है कि सामानों के कुल वैश्विक निर्यात में भारत का हिस्सा केवल दो प्रतिशत है। तभी अन्य देश अपने विदेशी मुद्रा भंडार में रुपया रखने के लिए बहुत आतुर नहीं रहते। भारत के पास ऐसी कोई चीज़ भी नहीं है जिसे खरीद कर रूस अपने रुपये के भण्डार से छुटकारा पा सके।
तो अब आगे क्या होगा? चार मई को रायटर्स की एक रिपोर्ट में दो सरकारी अधिकारियों और एक सोर्स के हवाले बताया गया है कि भारत और रूस ने आपसी व्यापारिक सौदों का रुपये में निपटारा करना बंद कर दिया है। सस्ते तेल के चक्कर में भारत का रूस से तेल का आयात 12 गुना बढ़ा है। भारत की कच्चे तेल की खरीद में रूस का हिस्सा 27 प्रतिशत हो गया है। युद्ध के पहले यह 2 प्रतिशत था। इसके विपरीत, भारत से रूस को निर्यात नाममात्र का है। भारत पर रूस का 2 अरब डॉलर का कर्ज है। रूसी हथियारों को भारत खरीद तो रहा है परन्तु इसका भुगतान न तो डॉलर में किया जा सकता है और ना रुपये में। रूस चाहता है कि भारत चीनी करेंसी युआन या अन्य किसी मुद्रा में भुगतान करे।
सो अब रूस से सस्ता तेल और ईंधन खरीदने वाले भारतीय आयातकों कीमुश्किले बननी है।सब गलतफहमी में थे कि रुपये में रूस को भुगतान स्थाई रूप से चलता रहेगा। दूसरी करेंसी खरीदने पर खर्च नहीं करना पड़ेगा। लब्बोलुआब यह कि यदि यह समस्या जल्दी नहीं सुलझी तो भारत को भविष्य में तेल के गंभीर संकट का सामना करना पड़ सकता है। यह बात अलग है कि लोगों को भले इसकी चिंता न हो। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)