योरोप नेजापान और चीन की प्रतिस्पर्धी कूटनीति देखी।दुनिया की दूसरी और तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के प्रधानमंत्री किशिदा और राष्ट्रपति शी जिन पिंग ने परस्पर अविश्वास और पंगे की वह कूटनीति की जिस पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय निश्चित यह सोचते हुए होगा कि अब आगे क्या? बकौल जापान में अमरीका के राजदूत राहम इमेन्यूअलके, ‘‘किशिदा फ्रीड़म के साथ खड़े हैं वही शी एक युद्ध अपराधी के साथ।” जाहिर है यूक्रेन-रूस युद्ध के 392वें दिन वैश्विक परिदृश्य में दो प़ड़ोसी आर्थिक महाशक्तियों की होड दिलचस्प थी तो गंभीर भी। दोनों खेमों में दूरियां और बढ़ी हैं। दुनिया का शक्ति संतुलन डगमगा रहा है।
मंगलवार को जापान के प्रधानमंत्री किशिदा दिल्ली यात्रा पर थे। उन्होनेगोलगप्पों का मजा लेने के साथ-साथ घोषणा की थी कि चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने और हिन्द-प्रशांत क्षेत्र को खुला व निर्बाध बनाए रखने की सामरिक रणनीति पर उनका देश 75 अरब डालर खर्च करेगा। इसके बाद किशिदा ‘अचानक’ दिल्ली से से सीधे यूक्रेन पहुँच गए।
यह थोड़ा अजीब सा था क्योंकि रपटों के अनुसार, दूसरे महायुद्ध के बाद पहला मौका है जब जापान के प्रधानमंत्री ने किसी युद्धरत देश की यात्रा की हैं। किशिदा ट्रेन से यूक्रेन पहुंचे और उन्हें बूचा शहर ले जाया गया जहां पिछले साल रूसी फौजों ने सैकड़ों नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया था।
उसी दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग रूस की यात्रा पर थे।मास्कों में उनका स्वागत एक बादशाह की तरह हुआ। उन्हें सिक्स कोर्स मील्स और विंटेज वाइन परोसे गए। मंगलवार को पुतिन और शी जिन ने ‘ठोस और बहुमूल्य मित्रता’ के नाम जाम से जाम टकराए।शी जिन का स्वागत चेम्बर ऑफ फेसेट्स में हुआ जो पन्द्रहवी सदी में निर्मित क्रेमलिन का सबसे ऐतिहासिक समारोह स्थल है।
किशिदा और शी पिंग की यात्राएं एक ही समय होना संयोग नहीं है बल्कि यह रेखांकित करने का प्रयास है कि एशिया में कैसी नई खेमेबाजी हो गई है। जापान ने कीव को भारी मदद देने की घोषणा की है।जबकि चीन एकमात्र ऐसा देश है जो दिन-ब-दिन और अकेले पड़ते जा रहे पुतिनके साथ खड़े है। किशिदा जापान के यूक्रेन को समर्थन और उसके साथ अपनी एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए वहां गए थे।
किशिदा जी-7 के एशियाई सदस्यों और दुनिया के इस हिस्से में अमरीका के मित्र राष्ट्रों के पहले ऐसे शीर्ष नेता हैं जो यूक्रेन पहुंचे। जेलेंस्की ने किशिदा को अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का ‘सच्चा और मजबूत रक्षक’ और यूक्रेन का पुराना दोस्त बताया। दूसरी ओर शी ने पुतिन को चीन आने का निमंत्रण दिया ताकि दोनों देश परस्पर आर्थिक सहयोग बढ़ाने पर बातचीत कर सकें। वैसे यह सहयोग पहले से जारी है। रूस पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध लगने के बाद से रूस-चीन व्यापार में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह व्यापार पिछले साल 185 बिलियन डालर का था और इस साल इसके 200 बिलियन डालर पार होने की संभावना है।
किशिदा ने यूक्रेन के लोगों का दिल जीता तो जापान में अपनी सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी का भी, जो लंबे समय से उन पर यूक्रेन जाने का दबाव बना रही थी।पर उनका असली उद्धेश्य वाशिंगटन को खुश करना था। जापान ने सियोल से अपने संबंध बेहतर किये हैं और उसके साथ उत्तर कोरिया के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बना लिया है। दोनों देश खुफिया सूचनाओं का आदान-प्रदान भी कर रहे हैं। किशिदा के यूक्रेन जाने से जापान का रणनीतिक साथी अमेरिका और खुश होगा। यूक्रेन युद्ध दरअसल जापान के लिए कई नई चिंताओं का सबब बना है। जिस तरह रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है उसी तरह चीन भी ताईवान पर हमला कर सकता है और ऐसी स्थिति में जापान को भी इस युद्ध में कूदना पड़ सकता है।
जहां तक चीनी राष्ट्रपति का सवाल है, उनकी रूस यात्रा का एक मकसद वैश्विक रंगमंच पर दबदबा बढ़ाना था। शी ने मास्को में 12 बिंदुओं का एक शांति प्रस्ताव दिया मगरउसमें रूसी सेनाओं की वापसी की बात नहीं कही गई है।इस पर कीव और पश्चिम ने यह कहते हुए पहले से ही खारिज किया हुआ हैं कि इससे न केवल मास्को का यूक्रेन की उस जमीन पर स्थायी कब्जा हो जाएगा जिस पर अभी वह काबिज है बल्कि उसे फिर से आक्रमण करने की तैयारी का समय भी मिलेगा।
कुल मिलाकर पश्चिमी देशों का राष्ट्रपति शी जिन पिंग पर शक बढ़ा है। वे पुतिन के खास माने जा रहे है। वही
चीन ने रूस के इस प्रचार को सही करार दिया हुआ है कि लड़ाई के लिए नाटो जिम्मेदार है,चीन ने यूक्रेन पर रूस के हमले को गलत नहीं बताया।बल्कि वह मौके का तरह से फायदा उठा रहा है।
शी जिन पिंग के मास्को में रहते कीशिदा के यूक्रेन जाने से एसिया-प्रशांत क्षेत्र की भू-राजनीति में ऊबाल आएगा। दोनों पडोसी आगे और विपरीत दिशाओें में बढ़ेगे। बहुत संभव है मई में जब किशिदा अपने गृहनगर हिरोशिमा में जी-7 के शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेंगे तो सम्मेलन से रूस और चीन दोनों को वे बाते सुननी पड़े जिसका जापानी कूटनीति का स्वभाव नहीं रहा है। (कॉपी अमरीश हरदेनिया)