रमजान का पाक महीना चल रहा है लेकिन पाकिस्तानी मोहताज है खाने-पीने की चीजों के! पाकिस्तान अपने कर्ज न चुका पाने की स्थिति में पहुँच गया है। वह भुखमरी और सामाजिक उथल-पुथल की कगार पर है। गरीब बेसहारा हो गए हैं और मध्यमवर्गीय भिखारी। खाद्य सामग्री के लिए लगने वाली कतारें हर हफ्ते बड़ी होती जा रही हैं और आटा-दाल के ट्रक लूटे जा रहे हैं। परेशानहाल औरतें, बच्चे और बुजुर्ग थैला भर अनाज के लिए घंटों लंबी-लंबी लाईनों में खड़े रहते हैं और धक्का-मुक्की, हाथापाई और कुचले जाने जैसी तकलीफें भुगतते हैं। ऐसे ही एक अनाज व नगदी वितरण केन्द्र पर मची भगदड़ में 12 लोग मारे गए। अब तक मिली खबरों के मुताबिक इस तरह की घटनाओं में 21 लोग अपनी जान गँवा चुके हैं। ऐसे भयावह दृश्य इसके पहले हमने केवल श्रीलंका और अफगानिस्तान में देखे थे।
पाकिस्तान गंभीर संकट में फंस गया है और आंकड़े से ऐसा नहीं लगता है कि रोशनी की कोई किरण है। तीन करोड़ लोग पिछले साल आई बाढ़ से जुड़ी तकलीफें भुगत रहे हैं। लगभग 4.5 करोड़ निम्न मध्यमवर्ग के लोग किराने के सामान और ईधन के बढ़ते दामों से परेशान हैं। एक किलो आटा, जो सन् 2022 की शुरूआत में 58 रूपये में मिलता था, अब 155 रूपये का है। चावल के दाम दोगुने हो गए हैं और पेट्रोल, जो पिछले साल 145 रू लीटर था, अब 272 रू के भाव से बिक रहा है। मांसाहार केवल अमीरों की पहुंच में है। मुद्रास्फीति तेजी से बढ़ रही है और देश के सांख्यिकी ब्यूरो के अनुसार मार्च में रिकार्ड 35.37 प्रतिशत तक पहुंच गई है जो सन् 1965 के बाद सर्वाधिक है। पाकिस्तानी रूपये का 60 प्रतिशत से अधिक अवमूल्यन हो चुका है।
इस सप्ताह ऑल पाकिस्तान टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन ने चेतावनी दी है कि देश का वस्त्र उद्योग घटते उत्पादन के चलते ‘आसन्न पतन’ की स्थिति में पहुंचने वाला है। स्टील मिलें बंद हो रही हैं और बेरोजगारी सर्वकालिक उच्च दर पर है। विश्व खाद्य संगठन ने चेतावनी दी है कि अगले हफ्ते तक 51 लाख पाकिस्तानी गंभीर खाद्य संकट का सामना करने को मजबूर होंगे, जो पिछली तिमाही से 11 लाख ज्यादा होगा। देश फॉसिल फ्यूल और गेहूं के लिए बहुत हद तक आयात पर निर्भर है और इस कारण अर्थव्यवस्था पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ा है। बेहतर आर्थिक अवसरों की तलाश में पिछले साल 8 लाख से ज्यादा पाकिस्तानी विदेश चले गए।
लेकिन यह अत्यंत दुःखद है और सचमुच हमारे पड़ोसी का दुर्भाग्य है कि वहां का संकट, वहां के लोगे की दुर्दशा की चर्चा, राजनैतिक कलह के कोलाहल में दब गई है। राजनीति, मनुष्यों से ज्यादा महत्वपूर्ण बन गई है और जनता की समस्याओं पर हावी है।
पाकिस्तान की माई-बाप वहां की फौज है जो हमेशा नीति-निर्माण में दखलअंदाजी करती रहती है और निर्वाचित सरकारों को अपना कार्यकाल इसलिए नहीं पूरा करने देती कि कहीं ऐसा न हो कि वे देश को आर्थिक प्रगति के पथ पर आगे ले जाएं और इतने लोकप्रिय हो जाएं कि सेना को चुनौती देने लगें। इमरान खान के कार्यकाल में यह सब काफी हद तक बदल गया था। वे जनता में लोकप्रिय थे, वे लोगों का दिल जीतना जानते थे। परंतु उनके वायदे खोखले निकले। जिस प्रशासनिक व्यवस्था के शीर्ष पर वे थे वह पंगु और अयोग्य होने के साथ-साथ भ्रष्ट भी थी और इमरान खान का ध्यान अर्थव्यवस्था को ठीक करने की बजाए अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने पर था।
पाकिस्तान की मौजूदासियासी राअस्थिरता को देखते हुए इस बार आईएमएफ भी उसे और कर्ज देने में सकुचा रहा है। गत 24 मार्च को समाप्त हुए सप्ताह में पाकिस्तान का कुल विदेशी मुद्रा भंडार 4.2 अरब डालर था, जिससे मुश्किल से एक महीने के आयात बिल का भुगतान किया जा सकता है। नतीजे में सरकार को बिजली, ईधन और भोज्य पदार्थों की कीमतें बढ़ानी पड़ीं और चीन से और कर्जा लेना पड़ा। दुनिया में अब केवल चीन ही पाकिस्तान की मदद कर रहा है। दो दिन पहले चीन ने पाकिस्तान को दो अरब डालर का कर्ज दिया ताकि वह आईएमएफ की इस शर्त को पूरा कर सके कि आर्थिक मदद की अगली किस्त तभी जारी की जाएगी जब वह आश्वस्त होगा कि किसी दूसरे स्त्रोत से पाकिस्तान को उसका भुगतान संतुलन ठीक करने के लिए धनराशि मिलेगी। अब पाकिस्तान को उम्मीद है कि आईएमएफ उसे और धन उपलब्ध करवाएगा।
पाकिस्तान अब तक 20 से अधिक बार आईएमएफ से मदद ले चुका है और एक बार फिर अपनी अर्थव्यवस्था को डूबने से बचाने के लिए आईएमएफ से सहायता मांग रहा है। इससे और चीन के बढ़ते हुए कर्ज से पाकिस्तान की समस्याएं और बढ़ने वाली हैं। परंतु वहां के राजनेता तनिक भी चिंतित नजर नहीं आते। वे अपने कराहते हुए देश की कीमत पर भी अपनी ताकत बढ़ाना चाहते हैं। यहां तक कि पाकिस्तान के अखबारों की सुर्खियां अर्थव्यवस्था को पूरी तरह ढ़हने से बचाने के तरीकों के बारे में न होकर इमरान खान, जो अब भी लोकप्रिय हैं, को चुनावों में उम्मीदवारी के लिए अयोग्य घोषित करने के बारे में हैं। पाकिस्तान गर्त में जा रहा है और ऐसे में भारत को भी सावधान रहने की जरूरत है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)