जर्मन अर्थव्यवस्था में मंदी

जर्मनी यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। यह आशंका पहले से थी कि यूक्रेन युद्ध और उस कारण रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों से बनी स्थितियों का बुरा असर उस पर पड़ेगा। अब ऐसा सचमुच हो गया है।

जर्मनी की विशेषता यह है कि अभी भी उसकी अर्थव्यवस्था में उत्पादक उद्योग का महत्त्वपूर्ण हिस्सा कायम है। जिस दौर में पश्चिमी देशों ने अपनी पूरी आर्थिक व्यवस्था का वित्तीयकरण कर लिया, जर्मनी ने परंपरागत औद्योगिक ढांचे को कायम रखा। इसी बूते पर वह यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना रहा है। इसीलिए यह आशंका पहले से थी कि यूक्रेन युद्ध और उस कारण रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों से बनी स्थितियों का सबसे बुरा असर जर्मनी पर पड़ेगा। इसलिए कि ऊर्जा और महंगाई के संकट से उत्पादन प्रक्रिया बुरी तरह प्रभावित होती है। जिन देशों में अर्थव्यवस्था में मुख्य भूमिका शेयर-ऋण-बॉन्ड बाजारों की बन चुकी है, उन पर ऊर्जा और महंगाई संकट की मार आम जन पर तो पड़ी है, लेकिन वित्तीय बाजार से जुड़े शासक तबके ज्यादा प्रभावित नहीं हुए हैँ। जर्मनी की कहानी अलग है। इसीलिए उसका मंदी में चले जाना एक बड़ी घटना है। 2023 के शुरुआती तीन महीनों में जर्मनी की अर्थव्यवस्था 0.3 फीसदी सिकुड़ गई। इससे पहले 2022 के आखिरी तीन महीनों में भी जर्मन अर्थव्यवस्था 0.5 फीसदी सिकुड़ी थी।

लगातार दो तिमाही में नकारात्मक वृद्धि दर के कारण जर्मन अर्थव्यवस्था को “तकनीकी तौर पर मंदी” का शिकार घोषित कर दिया गया है। यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से जर्मनी ऊर्जा की बढ़ी कीमतों से जूझ रहा है। इसकी वजह से घर चलाने और कारोबार के खर्चे बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं। ऊर्जा की बढ़ी कीमतों ने देश में महंगाई की दर बढ़ा दी है। अप्रैल में महंगाई की दर 7.2 फीसदी थी। इस बीच अमेरिका ने अपने यहां उद्योग लगाने के लिए भारी सब्सिडी देने की नीति अपनाई है। इससे जर्मनी की कई कंपनियों ने अपना कारोबार वहां ले जाने का फैसला किया है। इन सबकी मार आज जर्मनी को झेलनी पड़ रही है। अब अमेरिकी अर्थव्यवस्था के भी सुस्त पड़ने की आशंका जताई जा रही है। इससे भी जर्मनी की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। इससे पहले जर्मनी में मंदी 2020 में आई थी, जब कोरोना वायरस की महामारी ने पूरे यूरोप को अपनी चपेट में ले लिया था। अब अपने नीतिगत कारणों से जर्मनी को मंदी का शिकार होना पड़ा है।

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