रविवार को तुर्की में नया राष्ट्रपति और नयी संसद चुनने के लिए वोट डाले गए। कयास थे कि ये चुनाव राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन के दो दशक लम्बे कार्यकाल का खत्म कर देंगे। लेकिन ऐसा होता नज़र नहीं आ रहा है। सरकारी न्यूज़ एजेंसी अनाडोलू के अनुसार, सोमवार सुबह तक 96 प्रतिशत बैलट बॉक्स खोले जा चुके थे। अर्दोआन को 49.4 प्रतिशत वोट मिले थे और विपक्ष के नेता कमाल किलिकडारोग्लू को 44.8 प्रतिशत।
दोनों पक्षों ने जीत का दावा किया है। अर्दोआन ने अपनी पार्टी के मुख्यालय की बालकनी से अपने समर्थकों को संबोधित किया। वे ताज़ादम और खुश नज़र आ रहे थे। उन्होंने कहा, “चुनाव नतीजों को अभी अंतिम रूप नहीं दिया गया है परन्तु यह साफ़ है कि हम ही इस देश के लोगों की पसंद हैं।”
जो नतीजे सामने आए हैं वे चौंकाने वाले हैं। मतदान के पहले और उसके बाद हुए सर्वेक्षणों का नतीजा यही था कि कमाल किलिकडारोग्लू की कमाल की जीत होने वाली है। अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार और पश्चिमी मीडिया भी अर्दोआन के तानाशाहीपूर्ण शासन के अंत को अवश्यंभावी बता रहे थे। ऐसी उम्मीद थी कि दुनिया को अर्दोआन और उनकी निरंकुश राजनीति से मुक्ति मिलने वाली है। द इकोनॉमिस्ट का कहना था कि अगर तुर्की की जनता अपनी मनमर्जी चलाने वाले इस नेता को सत्ता से बाहर कर देती है तो यह पूरी दुनिया के प्रजातंत्र में विश्वास रखने वाले लोगों के लिए अच्छी खबर होगी। सचमुच, दुनिया को इस चुनाव से बहुत आशाएं थीं।
अब हम चुनाव नतीजों पर लौटें। पहले राउंड में कोई उम्मीदवार बहुमत हासिल नहीं कर पाया है, यद्यपि दोनों का दावा है कि वे जीत के करीब हैं। और जैसा कि वोटों की गिनती के समय अक्सर होता है, विशेषकर यदि दो उम्मीदवारों के बीच कड़ी टक्कर हो, दोनों एक दूसरे पर गलत बयानी करने और जनता को भ्रमित करने का आरोप लगा रहे हैं। दोनों ओर से व्यंग्यबाण चलाये रहे हैं और ताने कसे जा रहे हैं। अर्दोआन ने ट्विटर पर विपक्ष पर आरोप लगाया कि वह ‘देश की मर्ज़ी’ को कुचलने की कोशिश कर रहा है। अपने वफादारों का आह्वान किया कि “चाहे जो हो जाए परिणामों को अंतिम रूप दिए जाने तक आप पोलिंग स्टेशन न छोडें”।विपक्ष ने सरकारी न्यूज़ एजेंसी अनाडोलू द्वारा जारी किये चुनाव परिणामों के शुरूआती आंकड़ों को भ्रामक बताया और कहा कि उन्होंने पोलिंग स्टेशनों से सीधे जो आंकड़े इकट्ठा किये हैं उनके अनुसार किलिकडारोग्लू आगे हैं।
अर्दोआन ने अपनी पार्टी के मुख्यालय की बालकनी से अपने प्रफुल्लित समर्थकों को संबोधित करते हुए किलिकडारोग्लू पर तंज भी कसा – “कोई रसोईघर में हैं और हम बालकनी में।” दरअसल, किलिकडारोग्लू सोशल मीडिया पर अपलोड करने के लिए अपने वीडियो अपने घर के एकदम साधारण-से रसोईघर में बनाते हैं। किलिकडारोग्लू ने जवाबी हमले में कहा, “सारे झूठों और सारे होहल्ले के बाद भी अर्दोआन को वह नहीं मिला जो वह चाहते थे। चुनाव बालकनी से नहीं जीते जाते।”
संसद और राष्ट्रपति के ये चुनाव, दरअसल, अर्दोआन के दो दशक लम्बे शासन पर जनमत संग्रह बन गए थे। विपक्ष के सभी धड़े एक हो गए थे क्योंकि उनका मकसद एक ही था – एक ऐसे नेता को गद्दी से उतारना जो अपने हिसाब से तुर्की को बदल रहा था, जो अपने आगे किसी को कुछ समझता ही नहीं था।
चूँकि इतवार को हुए मतदान में कोई भी उम्मीदवार 50 प्रतिशत या उससे ज्यादा वोट हासिल नहीं कर सका है इसलिए विजेता चुनने के लिए 28 मई को मतदान का दूसरा राउंड होगा, जिसे रनऑफ कहते हैं। इसमें पहले राउंड में सबसे ज्यादा वोट हासिल करने वाले दो उम्मीदवार ही मैदान में होंगे। पहले राउंड में एक तीसरे उम्मीदवार, अतिवादी राष्ट्रवादी सिनान ओगन भी मैदान में थे। उन्हें करीब पांच प्रतिशत वोट मिलने की उम्मीद है और इससे अर्दोआन या किलिकडारोग्लू को 50 प्रतिशत या अधिक वोट मिलने की सम्भावना कम हो गयी है।
इसका मतलब यह भी है कि अर्दोआन और किलिकडारोग्लू को एक दूसरे पर निशाना साधने के लिए दो हफ्ते और मिल गए हैं और इस दौरान चुनाव प्रचार के और भौंडा और भद्दा हो जाने का डर है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि तुर्की के लोगों और बाकी दुनिया के लिए भी ये चुनाव महत्वपूर्ण हैं। अर्दोआन के नेतृत्व में पिछले बीस सालों में तुर्की का चेहरा-मोहरा पूरी तरह बदल गया है। यह भी उम्मीद और अपेक्षा है कि सत्ता परिवर्तन के बाद तुर्की की विदेश नीति में भी बड़ा बदलाव आएगा। अर्दोआन के राज में तुर्की की जनता भी घुटन महसूस कर रही थी। लोगों को ऐसा लग रहा था कि उन्हें दबाया जा रहा है। अदालतें, बैंक, मीडिया सहित राज्य की सभी एजेंसियां और अंग अर्दोआन की मुट्ठी में थे। अगर उन्हें पांच साल और मिल गए तो उनका रवैया और तानाशाहीपूर्ण हो जायेगा। कुछ समय पहले तुर्की में आये भयावह भूकंप, जिसमें 50,000 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गँवाई, के बाद राहत और बचाव कार्यों में लेतलाली के चलते भी बदलाव की इच्छा मज़बूत हुई। अगर चुनाव में विपक्ष की जीत होती है तो यह आशा की जा सकती है कि देश का शासन अधिक प्रजातान्त्रिक बनेगा और आर्थिक स्थिरता आएगी।
चुनाव का पहला राउंड ड्रा होने के बाद सबकी निगाहें अब 26 मई पर हैं। पहले राउंड से यह तो साफ़ हो गया है कि देश दो हिस्सों में बंटा हुआ है। जनता का एक बड़ा तबका अब भी अर्दोआन के साथ है। इन लोगों को लगता है कि अर्दोआन की हार तुर्की की हार होगी क्योंकि इससे देश की आतंरिक स्थिति और ख़राब हो सकती है। पहले राउंड के परिणामों के देख कर ऐसा नहीं लगता कि उनकी विदाई के बेला आ गयी है। उलटे ऐसा लगता है कि वे न केवल वापस आयेंगे बल्कि पहले से और मज़बूत एवं और बेरहम होकर लौटेंगे। सारी दुनिया के प्रजातंत्रों को सतर्क हो जाना चाहिए। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)