मौसम मानसूनी था। काले बादल गरज रहे थे। शहर खाली था, शटर गिरे हुए थे और सड़क पर एक शख्स भी नहीं। पुलिस की भारी मौजूदगी थी और एक पल के लिए मुझे लगा कि मैं उदयपुर में नहीं, बल्कि श्रीनगर में प्रवेश कर रही हूं। उदयपुर को ऐसा खाली, उदास और पुलिस बलों की भीड़ से भरा देखकर बहुत दुख हुआ। यहां तक कि पवन भी सदमें में था और जब हम खाली शहर को पार कर रहे थे तो पवन ने कहा, ‘अगर उस दिन कर्फ्यू नहीं लगा होता तो ये शहर आपको जला हुआ मिलता’।
उदयपुर बदल गया है। 28 जून के उन तनावपूर्ण क्षणों में शहर जैसे ‘हम बनाम वे’ के मूड बदला, उसे देख-जान कर साफ लगा कि लोगों का बंटना, आपस में अलगाव बनना कैसे पलक झपकते हो जाता है! मैंने अपने समय में पहली बार अपने गृह राज्य में उस दुर्लभ अलगाव की भावना को महसूस किया, जिससे लोगों का दिल-दिमाग शायद ही निकट भविष्य में कभी बाहर निकल पाए। उदयपुर या राजस्थान में कभी ऐसा हो सकता है, यह कल्पना नहीं थी। आमतौर पर शांत, उत्साही और गंभीर शहर तथा प्रदेश एक ऐसे मुकाम पर पहुंच गए है जिसमें मूड गंभीर, पर अंदर ही अंदर सुलगा हुआ और अविश्वसनीय है। कुछ ही घंटों में लोगों की भावनाएं बदल गईं, और न केवल उदयपुर में, बल्कि शहर के इर्द-गिर्द इलाकों में भी। ‘उनके’ प्रति रवैया पूरी तरह शत्रुतापूर्ण।
मेरे लिए, उदयपुर हमेशा से राजस्थान में घर की और यात्रा का अभिन्न भाग रहा है। एक ऐसा शहर जिससे मैं जानती हुई हमेशा मानती आई हूं कि बहुत शांत और सुरक्षित। लेकिन 30 जून की शाम को, जैसे ही मैं हवाई अड्डे से शहर के अंदर घटनास्थल की और जाते हुए थी तो मैंने खुद को पूरी तरह से अजीब माहौल में पाया। तभी मैंने, पहली बार साथ के लिए स्थानीय पत्रकार पवन को आने के लिए कहा। मौसम मानसूनी था। काले बादल गरज रहे थे। शहर खाली था, शटर गिरे हुए थे और सड़क पर एक शख्स भी नहीं। पुलिस की भारी मौजूदगी थी और एक पल के लिए मुझे लगा कि मैं उदयपुर में नहीं, बल्कि श्रीनगर में प्रवेश कर रही हूं। उदयपुर को ऐसा खाली, उदास और पुलिस बलों की भीड़ से भरा देखकर बहुत दुख हुआ। यहां तक कि पवन भी सदमें में था और जब हम खाली शहर को पार कर रहे थे तो पवन ने कहा, ‘अगर उस दिन कर्फ्यू नहीं लगा होता तो ये शहर आपको जला हुआ मिलता’।
मैंने आह भरी। पवन की भारी आवाज थी। ड्राइवर भी चिंतामग्न गाड़ी चलाता हुआ। शहर की शांत हवा में हिंसा, भय और घृणा की चरम स्थिति का अहसास था। एक ऐसी अशांत बेचैनी थी जो शहर को इतिहास में पहले कभी महसूस नहीं हुई होगी, एक जबरदस्त अविश्वास जो पहले कभी महसूस नहीं किया गया कि ऐसा भी हो सकता है! परेशान शहर में भावनाओं के कई ऊबाल।
उदयपुर की जीवंतता अपने पर्यटकों को खुश रखने और स्थानीय लोगों के सहज-सरल, शांत मिजाज से चहकती होती थी, आज उदास थी। पिछोला झील पर स्थित अपने होटल की बालकनी से मैंने अपने सामने एक नया उदयपुर देखा। मैंने पिछोला झील के बहते पानी में देखा और जीवंत शहर में दुर्लभ आवाज सुनाई देती महसूस हुई, सन्नाटे की आवाज! गणगौर घाट पर कोई मानवीय उपस्थिति नहीं थी। कुत्ते भी कहीं छिप से गए थे। आम दिनों में घाट पर शाम के समय महिलाओं का मिलना-जुलना और गपशप होती है। पुरुषों के लिए यह आलस्य का एक अभयारण्य है जहां थके मांदे पर्यटक अनंत सेल्फी लेते हैं। लेकिन आज घाट खाली था, झील खाली थी, मेरे आसपास के होटल खाली थे, हवा में भी खालीपन था।
कन्हैया लाल की निर्मम हत्या ने राष्ट्रीय विमर्श, हडकंप बनाया है। लेकिन उदयपुर में हत्या ने ऐसा कुछ किया है जिससे आम तौर पर शांत झीलों के शहर की आभा नष्ट हो गई है। बुरी तरह दुखी होटल वाले ने कहा, ‘पता नहीं किसकी हाय लग गई हमारे शहर को’। दो साल चली कोविड की मुश्किलों के बाद अब कारोबार चलने शुरू हुए थे तो यह हो गया। डर है धंधा एक बार फिर ठप हो जाएगा। मेरा होटल जो हमेशा महंगा रहता है और पर्यटकों से भरा होता है, खाली पड़ा है। 24 घंटे से भी कम समय में अगले दो सप्ताहांत की सारी बुकिंग रद्द हो गई है, कर्मचारियों को अनिश्चितता का खटका हैं और उम्मीद कम।
अगर शहरवासियों में डर है, तो गुस्सा भी है। शहर में हर कोई आंशका और परेशानी में है। मगर रणजीत सिंह को यकीन है कि उदयपुर में जल्दी वापस सबकुछ सामान्य हो जाएगा। काम-धंधा पहले की रफ्तार पकड लेगा। शहर के लोग आगे बढ़ेंगे, लेकिन समुदायों के बीच जो सामंजस्य था, जिससे उदयपुर शांत और सामान्य सौहार्द में जीता हुआ था, वह ठंडे बस्ते में चला गया है। रणजीतसिंह की आवाज में भी ‘हमारे बनाम उनके’ की चर्चा के वक्त उग्रता व गुस्से के तेवंर अपने आप थे।
‘उनके’ खिलाफ गुस्सा है। कई स्थानीय लोगों में उनके खिलाफ भारी घृणा है, पवन ने वापिस वह बात दोहराई कि अगर समय पर कर्फ्यू नहीं लगाया गया होता, तो उदयपुर शहर जल जाता। एक चश्मदीद ने बताया कि हत्या के दिन ही लोगों में गुस्सा ऊबल पड़ा था। ‘अचानक कई लोग इस गली (जिस गली में कन्हैया लाल की दुकान थी) के अंदर आ गए और पुलिस पर चिल्लाने लगे, ‘छोड़ दो हमको, हम लेंगे बदला’। वे नारे लगा रहे थे, और ‘उन’ सभी पर भडके हुए थे। माहौल को और खराब तथा वीभत्स बना रहे थे। उस समय को याद करते हुए एक 17 वर्षीय बच्चा आंखों देखी बताते हुए कांपने लगा।
हत्या के बाद, पूरे उदयपुर में हिंदुओं द्वारा विरोध प्रदर्शन, मार्च निकाले गए, लेकिन सभी शांतिपूर्ण रहे। बड़ी परीक्षा एक जुलाई को होनी थी। उस दिन न केवल शुक्रवार की नमाज का दिन था बल्कि जगन्नाथ यात्रा का भी शुभ दिन था। जैसे-जैसे पुलिस की उपस्थिति सख्त होती गई, अभूतपूर्व तनाव और अनिश्चितता का माहौल बनता गया। क्या होगा अगर, क्या वे, हो सकता है वे करें- जैसी चिंताओं में उदयपुर बैचेन था। पूरे राज्य में मोबाइल इंटरनेट बंद कर दिए गए थे। कई शहरों में कर्फ्यू जैसी सख्ती, प्रतिबंध थे। साइकिल पर सवार छोटे बच्चे ‘भारत माता की जय’ के नारे लगा रहे थे, भगवा झंडा लहराते हुए जगदीश मंदिर की सड़क पर आ-जा रहे थे। उत्साही और निर्लिप्त घरेलू महिलाएं अपने रंग-बिरंगे बेहतरीन कपड़ों में यात्रा में भाग लेने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रही थीं। ‘आपको पता है कितने हिंदू आज बाहर निकले हैं, हिंदू एकजुट हो गया है , ये उन्हें करारा जवाब है’, सड़क पर खड़े 25 साल के एक युवक ने मुझे कहा।
निश्चित ही उदयपुर ‘हम’ बनाम ‘वे’ के गहरे गड्ढे में गिर गया है। भले लोग जगन्नाथ यात्रा के शांतिपूर्ण संपन्न होने और शहर में जनजीवन के रूटिन में लौटै आने से चैन में है। पर्यटकों को भी उदयपुर में स्थिति सामान्य होने का संदेश पहुंचते हुए है। लेकिन शहर के हिंदुओं के लिए जगन्नाथ यात्रा का दिन भी ‘एकजुट हिंदुओं की एकता’ का संदेश देने वाला था तो लोगों में इस नई मान्यता का भी है कि उदयपुर से देश के कोने-कोने में बात पहुंची है कि उदयपुर में क्या हुआ और शहर अब ‘हिंदू एकता’ का एपिसेंटर है।
आत्मनिश्चय की इच्छा जब पक्षपातपूर्ण और विभाजित हो जाती है तो परिणाम निश्चित ही गंदे खूनी रिश्ते और व्यवहार के हो जाते है। उदयपुर जैसा पुराना शहर जब सांप्रदायिक और क्रूर हिंसा का गवाह बनाया जाता है, तो परिणाम में नए चरित्र का जन्म होता है। शहर के नए मिजाज, नए साये में तब वह सब होता जाता है जिससे शहर न केवल एक विरोधाभासी जगह बन जाता है, बल्कि अपनी झीलों और इतिहास से सुशोभित उदयपुर जैसा शहर भी बदले और हिंसा की भावना में ढल जाता है।
उदयपुर ‘हम’ और ‘वे’ और बदले की हूंक में ढल गया है। हत्याकांड के चश्मदीद गवाहों में से एक के एक रिश्तेदार ने उदासी से कहा, उदयपुर श्रीनगर बन गया है। दो खूबसूरत शहर जो पर्यटन पर जीते हैं और जीवित रहते हैं, धर्म के नाम पर हिंसा से झुलस गए हैं। ‘पहले कश्मीर था, अब हम है’, वह आहें भरता है। उसकी बहन ने इस पर कहां, ‘हमने पहले ही कश्मीर में देखा था कि ‘वे’ कितने क्रूर’ हैं, अब हम इसे उदयपुर में देख रहे हैं’।