मुंबई। महाराष्ट्र के स्पीकर राहुल नार्वेकर ने शिव सेना के विधायकों की अयोग्यता के मामले पर फैसला सुना दिया है। स्पीकर ने उद्धव ठाकरे गुट की अपील को ठुकराते हुए कहा है कि एकनाथ शिंदे गुट ही असली शिव सेना है और इसलिए उसके विधायकों को अयोग्य ठहराने का कोई आधार नहीं है। फैसले के बाद अब एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बने रहने का रास्ता साफ हो गया है। उनके ऊपर मंडरा रहा अयोग्यता का खतरा टल गया है।
दूसरी ओर फैसले के बाद उद्धव ठाकरे गुट ने इसकी आलोचना की है। पार्टी के सांसद संजय राउत ने स्पीकर की आलोचना में अपशब्द कहे हैं तो दूसरी ओर उद्धव ठाकरे ने कहा कि स्पीकर का फैसला सुप्रीम कोर्ट का अपमान है। गौरतलब है कि जून 2022 में शिव सेना के विधायक टूटे थे और तब उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे सहित 15 विधायकों को अयोग्य ठहराने की अपील की थी। उस पर सुप्रीम कोर्ट के कई बार दखल देने के बाद अब फैसला आया है।
विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने शिव सेना विधायकों की अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए कहा कि विधानसभा में शिंदे गुट ही असली शिव सेना है। विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि चुनाव आयोग के सामने पेश किया गया पार्टी का संविधान ही मान्य होगा। उन्होंने कहा- हमने चुनाव आयोग से पार्टी के संविधान की कॉपी मांगी। उन्होंने हमें उनके पास मौजूद संविधान की कॉपी मुहैया करवाई। सिर्फ यही संविधान चुनाव आयोग के पास मौजूद है। चुनाव आयोग ने अपने फैसले में भी बताया कि 2018 में संशोधित किया गया संविधान उनके रिकॉर्ड में मौजूद नहीं है। इसलिए 2018 के संशोधित संविधान को मानने की उद्धव ठाकरे गुट की दलील को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
राहुल नार्वेकर ने कहा कि महेश जेठमलानी ने भी अपनी दलीलों में बताया कि शिव सेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का फैसला ही सर्वोच्च और सर्वमान्य होता है। 25 जून 2022 को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी। उसमें जो प्रस्ताव पास किए गए उन पर फर्जीवाड़े से बदलाव करने का आरोप लगा था। स्पीकर ने कहा कि शिव सेना के संविधान के मुकाबले फैसला करने का अधिकार अध्यक्ष को नहीं, बल्कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी को है।
महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष का मानना है कि शिव सेना अध्यक्ष के पास फैसले करने की शक्ति नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की शक्ति है। उद्धव ठाकरे एकनाथ शिंदे को पार्टी से नहीं निकाल सकते थे। पार्टी के संविधान के मुताबिक पक्ष प्रमुख के पास सारे अधिकार नहीं हैं। उन्हें फैसले लेने के लिए राष्ट्रीय कार्यकारिणी से इजाजत लेनी होगी। स्पीकर ने कह- बालासाहेब की वसीयत को पार्टी की वसीयत नहीं माना जा सकता है। सिर्फ ठाकरे को पसंद नही, इसलिए शिंदे को हटा नहीं सकते थे। पार्टी के संविधान में इसका कोई प्रावधान नहीं है।