धारणा और लोकप्रियता दोनों गवां रहे केजरीवाल

धारणा और लोकप्रियता दोनों गवां रहे केजरीवाल

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जेल में बैठ कर क्या सोच रहे होंगे? क्या उनको लग रहा होगा कि दिल्ली के लोगों में उनके प्रति सहानुभूति बन रही है और चुनाव में इसका फायदा होगा? क्या वे सोच रहे होंगे कि उन्होंने महिलाओं को एक एक हजार रुपए देने का वादा किया है या एक बड़ी आबादी को मुफ्त में बिजली और पानी दे रहे हैं तो वह वर्ग ज्यादा मजबूती से साथ में खड़ा होगा?

उनकी पार्टी के नेता और कई स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषक भी मान रहे हैं कि दिल्ली के उस तबके में भाजपा से नाराजगी होगी, जिसको केजरीवाल की योजनाओं का लाभ मिल रहा है। हालांकि यह बहुत दूर की कौड़ी है क्योंकि केजरीवाल के जेल जाने से वो योजनाएं बंद नहीं हुई हैं और दूसरे अब देश की जनता ऐसी बातों से ज्यादा इमोशनल नहीं होती है। कई जगह आम मतदाता खुल कर बोलता दिखा है कि सरकार उसे अगर मदद दे रही है तो कोई अहसान नहीं कर रही है और न अपनी जेब से दे रही है।

इसलिए लाभार्थी वाली योजनाएं तभी वोट की पूंजी में बदलती हैं, जब उसके साथ कोई और भावनात्मक मुद्दा या अस्मिता का सवाल जुड़ता है। नरेंद्र मोदी के साथ लाभार्थी जुड़े दिख रहे हैं तो वह सिर्फ इसलिए नहीं कि मोदी पांच किलो अनाज दे रहे हैं या कुछ और लाभ दे रहे हैं, बल्कि इसलिए जुड़े हैं क्योंकि मोदी ने उनकी हिंदू अस्मिता को जागृत किया है और खुद को उनके साथ जोड़ा है।

अगर सिर्फ पांच किलो अनाज देने की वजह से लाभार्थी का वोट उनको मिलता तो करोड़ों मुस्लिम भी उनको वोट देते, जबकि सबको पता है कि मुस्लिम आबादी को केंद्र की योजनाओं का चाहे जितना भी लाभ मिल रहा हो वे वोट भाजपा को नहीं देते हैं। इसलिए अगर केजरीवाल और उनकी पार्टी के लोग यह सोचते हैं कि उनके जेल जाने से सहानुभूति होगी और उनकी योजनाओं का लाभ ले रहे लोग मन ही मन भाजपा को सबक सिखाने की ठानेंगे तो यह गलतफहमी है। केजरीवाल के जेल जाने से यथास्थिति में कोई बदलाव नहीं आने वाला है।

असल में खुद केजरीवाल ने इस मौके को गंवा दिया या इसके असर को ठंडा हो जाने दिया। जिस तरह से वे सीबीआई के समन पर पूछताछ के लिए हाजिर हो गए थे उसी तरह ईडी के समन पर भी हाजिर हो जाते और अगर पहले ही ईडी ने उनको गिरफ्तार किया होता तो उसका ज्यादा मुद्दा बनता। जिस तरह मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी का मुद्दा बना था और पार्टी के नेता व कार्यकर्ता सड़क पर उतरे थे उस तरह का प्रदर्शन केजरीवाल के लिए भी नहीं हुआ तो इसका कारण यह है कि दिल्ली की आम जनता से लेकर पार्टी के नेता और कार्यकर्ता तक मान रहे थे कि केजरीवाल अनिवार्य रूप से गिरफ्तार होंगे।

झारखंड में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद से यह और स्पष्ट हो गया था कि केजरीवाल भी गिरफ्तार होंगे। तभी उनकी गिरफ्तारी में जितनी देरी होती गई इस मामले की गरमी उतनी ही शांत होती गई। ऊपर से उनके तिहाड़ जेल पहुंचने के तुरंत बाद उनकी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह को जमानत मिल गई। ईडी ने उनकी जमानत का विरोध भी नहीं किया। इससे भी केजरीवाल की गिरफ्तारी का मामला ठंडा पड़ा।

दूसरी रणनीतिक गलती केजरीवाल यह कर रहे हैं कि मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दे रहे हैं। गिरफ्तार होने और जेल भेज दिए जाने के बाद भी मुख्यमंत्री पद पर बने रह कर वे अपनी बची खुची पुण्यता गंवा रहे हैं। लोग इस बात को भूले नहीं हैं कि केजरीवाल ने देश की बाकी पार्टियों से अलग पार्टी बनाने और बाकी नेताओं से अलग नेता होने का दावा किया था। वे देश की सभी पार्टियों के नेताओं को भ्रष्ट बताते थे।

ईमानदारी का उन्होंने एक ऐसा मानक गढ़ा था, जिसके अनुरूप नेता इस देश के लोगों ने कभी देखा ही नहीं था। इस मानक पर खरा उतरने वाले पहले नेता केजरीवाल दिख रहे थे। उन्होंने कहा था कि सभी पार्टियां भ्रष्ट हैं, उनकी पार्टी ईमानदार है, उनकी पार्टी के लोग बड़ी गाड़ियां नहीं लेंगे, बंगलों में नहीं रहेंगे, सुरक्षा नहीं लेंगे आदि आदि। इतना ही नहीं वे हमेशा कहते थे कि नेताओं को जांच एजेंसियों का समन मिलते ही इस्तीफा देना चाहिए।

लेकिन अब वे खुद क्या कर रहे हैं? जिन पार्टियों को भ्रष्ट बताया उनके साथ तालमेल कर लिया, खुद बड़ी गाड़ी ली है, भारी भरकम सुरक्षा तामझाम लिया है, बंगला इतना बड़ा है कि उसके रेनोवेशन पर 50 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं, छह लोगों के परिवार के लिए 28 लोगों का अमला जमला है, ईडी के 10 समन पर उसके सामने हाजिर नहीं हुए और गिरफ्तार होने के बाद भी मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दे रहे हैं।

तो क्या लोगों को यह बात समझ में नहीं आ रही है कि यह व्यवहार तो उन नेताओं से भी खराब है, जिनको केजरीवाल हमेशा गाली देते थे।  सोचें, लालू प्रसाद ने भी जेल जाने से पहले सीएम पद से इस्तीफा दिया था और हाल में हेमंत सोरेन ने भी गिरफ्तार होने से पहले इस्तीफा दिया और अपनी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता को मुख्यमंत्री बना कर जेल गए। लेकिन अपने को कट्टर ईमानदार बताने वाले केजरीवाल ने इस्तीफा नहीं दिया।

सो, नई पार्टी बनाने के 12 साल के बाद केजरीवाल ने अपने और अपनी पार्टी के बारे में बनी धारणा गंवा दी है। लोग भले उनको वोट देते रहें लेकिन अब यह बात कोई नहीं मानेगा कि वे दूसरी पार्टियों से अलग हैं या ईमानदार हैं। उनके ऊपर जिस तरह के आरोप लगे हैं उससे उनके बारे में धारणा बदली है। चाहे शराब नीति का मामला हो या जल बोर्ड का मामला हो, जिस तरह की बातें मीडिया में आई हैं या जांच के दौरान आम आदमी पार्टी के नेताओं और अधिकारियों की जैसी भूमिका सामने आई है उसने लोगों के मन में संदेह पैदा किया है।

इसका मतलब है कि जो बात उनको बाकी नेताओं के मुकाबले विशिष्ठ बनाती थी वह अब खत्म हो गई है। उनके बारे में धारणा थी कि वे आम आदमी की तरह हैं और ईमानदार हैं। लेकिन अब सबको पता चल गया है कि वे बिल्कुल आम आदमी की तरह नहीं हैं। वे बहुत खास जीवन शैली वाले विशिष्ठ व्यक्ति हैं और उनके ऊपर भ्रष्टाचार के गंभीर दाग हैं। सो, धारणा बदल रही है।

जहां तक लोकप्रियता का मामला है तो उसमें भी दिन प्रतिदिन कमी आ रही है। अगर बारीकी से देखें तो समझ में आता है कि उनकी लोकप्रियता मुफ्त बिजली और पानी की वजह से है। इसके अलावा दिल्ली में कोई ऐसी खास चीज नहीं हो रही है, जो दूसरे राज्यों में नहीं हो रही है। केजरीवाल की सरकार स्कूल और अस्पताल का ढिंढोरा पीटती है लेकिन क्या सचमुच दिल्ली में स्कूल और अस्पताल बहुत अच्छे हो गए हैं? दिल्ली सरकार के एक अच्छे अस्पताल का नाम कोई नहीं बता पाएगा।

दिल्ली के लोग भी बीमार होने पर केंद्र सरकार के अस्पतालों- एम्स, सफदरजंग, आरएमएल, लेडी हार्डिंग, पटेल चेस्ट, कलावती शरण अस्पताल में जाने को प्राथिमकता देते हैं। एलएनजेपी, पंत अस्पताल, दीनदयाल अस्पताल या राजीव गांधी कैंसर इंस्टीच्यूट आदि पहले से बने हुए हैं। पिछले 10 साल में केजरीवाल की सरकार ने कोई ढंग का अस्पताल नहीं बनवाया है। दिल्ली विश्वविद्यालय में या इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय में कोई नया कॉलेज नहीं जुड़ा है। सब कुछ मोटे तौर पर पहले जैसा ही चल रहा है। तभी प्रचार के दम पर जो भ्रम पैदा किया गया था वह भ्रम अब धीरे धीरे टूट रहा है।

यह भी पढ़ें:

भाजपा की असली लड़ाई प्रादेशिक पार्टियों से

संपूर्ण प्रभुत्व के लिए भाजपा की राजनीति

 

Published by अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें