बजट रूटिन का बासी या नया?

बजट रूटिन का बासी या नया?

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज अपना सातवां बजट पेश करेंगी। इसके साथ ही लगातार सात बजट पेश करने वाली वे देश की पहली वित्त मंत्री बन जाएंगी। इससे पहले लगातार छह बजट पेश करने का रिकॉर्ड मोरारजी देसाई का था। निर्मला सीतारमण के सातवें बजट को लेकर सबसे बड़ा सवाल यही है कि यह बजट निरंतरता वाला होगा या बदलाव वाला होगा? दूसरा सवाल यह है कि क्या यह बजट किसी बड़ी घोषणा वाला हो सकता है? ध्यान रहे केंद्र में लगातार 10 साल से नरेंद्र मोदी की सरकार है लेकिन कोई एक बजट ऐसा ध्यान नहीं आ रहा है, जिसमें कोई बड़ी घोषणा हुई है। पी चिदंबरम के 1997 के ड्रीम बजटया मनमोहन सिंह के आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत करने वाले 1991 के बजट जैसा कोई बजट मोदी सरकार का नहीं रहा है। सारे बजट रूटीन के रहे हैं। प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने दो बड़े आर्थिक फैसले किए, नोटबंदी और जीएसटी लेकिन ये दोनों फैसले बजट से बाहर हुए थे। इसी तरह 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देने की योजना की घोषणा भी बजट से बाहर हुई थी। 

तभी सवाल है कि इस बार भी रूटीन का ही बजट आएगा या कुछ नया और बड़ा होगा? निर्मला सीतारमण ने आखिरी पूर्ण बजट पिछले साल फरवरी में पेश किया था, तब से करीब डेढ़ साल में दुनिया एक नए दौर में प्रवेश कर चुकी है। यह नया दौर आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस का है, चैटजीपीटी का है, मशीन लर्निंग का है। इस दौर में सबसे बड़ी चिंता रोजगार को लेकर पैदा हुई है। हालांकि भारत में अभी तत्काल इस क्रांति से रोजगार का बड़ा संकट नहीं खड़ा होने वाला है क्योंकि भारत में अब भी ज्यादातर काम मैनुअल होते हैं और लेबर इंटेसिव काम ज्यादा हैं। फिर भी देश को नए दौर के लिए तैयार करना है। रोजगार के मौजूदा और भावी संकट को दूर करने के लिए कुछ बड़े कदम उठाने की जरुरत होगी। दूसरे, रोजगार का मुद्दा इस बार लोकसभा चुनाव के अहम मुद्दों में शामिल था। बेरोजगारी बढ़ने का नुकसान भाजपा को हुआ है। इसलिए रोजगार बढ़ाने को लेकर क्या घोषणा होती है यह देखने वाली बात होगी।  

इसके बाद देश के आम नागरिक खास कर मध्य वर्ग की बजट में सिर्फ इस बात पर नजर रहती है कि आयकर की दरों या स्लैब में क्या बदलाव किया जा रहा है? क्या निर्मला सीतारमण आयकर के स्लैब में कोई बदलाव करेंगी? यह सवाल इसलिए है क्योंकि पिछले 12 साल से आयकर का स्लैब नहीं बदला है। आखिरी बार 2012-13 में पी चिदंबरम ने बजट पेश किया था और आयकर का स्लैब बदला गया था। यह पहला मौका है, जब इतने दिन तक आयकर का स्लैब जस का तस रहा है। इससे पहले आखिरी बार 1998-99 से लेकर 2003-04 तक यानी पांच साल तक एक स्लैब रहा था। उसके बाद हर साल या दो साल पर स्लैब बदले हैं। मोदी सरकार ने 10 साल में स्लैब नहीं बदला। हालांकि एक बदलाव यह किया गया कि नया टैक्स रिजीम शुरू हुआ। लेकिन अब भी ज्यादातर लोग पुराने रिजीम के तहत ही टैक्स रिटर्न दाखिल कर रहे हैं क्योंकि उसमें कई तरह की छूट है। कर के जानकारों का कहना है कि महंगाई बढ़ने के अनुपात में सरकार को आयकर की दरों और स्लैब में बदलाव करना चाहिए ताकि आम लोगों पर कर का बोझ कम पड़े। 

वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी को लेकर वित्त मंत्री कोई घोषणा करेंगी या नहीं यह भी देखने वाली बात होगी। पिछले कुछ दिनों से जीएसटी को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं और तभी केंद्र सरकार ने इस बार जून के जीएसटी राजस्व का आंकड़ा आधिकारिक रूप से जारी नहीं किया। कहा जा रहा है कि महंगाई से त्रस्त लोगों को जीएसटी का भारी भरकम आंकड़ा चिढ़ाने वाला लग रहा है। उनको लग रहा है कि सरकार उनके जख्मों पर नमक छिड़क रही है। तभी सवाल है कि आंकड़े छिपाने के बाद क्या सरकार नागरिकों को कुछ छूट देने का ऐलान करेगी? क्या जीएसटी की दरों के कई स्लैब को बदल कर उसे कम किया जाएगा? क्या अधिकतम जीएसटी शुल्क को कम किया जा सकता है या पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने की दिशा में पहल की कोई घोषणा हो सकती है? हालांकि बजट में इसकी उम्मीद कम ही रहती है क्योंकि सरकार कह देती है कि इस बारे में फैसला जीएसटी काउंसिल को करना है, जिसमें सभी राज्यों के वित्त मंत्री सदस्य हैं। 

किसान एक बार फिर आंदोलन कर रहे हैं। उन्होंने दिल्ली कूच का ऐलान किया है। वे न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की कानूनी गारंटी मांग रहे हैं। क्या सरकार यह गारंटी दे सकती है कि अब किसान की कोई भी फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर नहीं खरीदी और बेची जाएगी और अगर ऐसा हुआ तो वह कानूनी रूप से अपराध होगा? नरेंद्र मोदी ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की घोषणा की थी। 2022 बीतने के बाद इस पर चर्चा बंद है। क्या वित्त मंत्री इस बारे में कुछ कहेंगी? या खाद, बीज की सब्सिडी और सिंचाई पर कुछ आवंटन जैसी रूटीन की घोषणाएं ही होंगी? किसानों को लेकर कुछ आउट ऑफ द बॉक्स आइडियाज की जरुरत है।

ध्यान रहे बजट के तुरंत बाद चुनावों का एक चक्र शुरू होने वाला है। जम्मू कश्मीर, महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। यह मिनी आम चुनाव की तरह है। लोकसभा चुनाव में भाजपा के अपेक्षाकृत खराब प्रदर्शन और बहुमत से नीचे 240 सीटों पर रूक जाने की वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दबाव में हैं। उनकी सरकार सहयोगी पार्टियों के सांसदों की मदद से बहुमत हासिल कर पाई है। अगर चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है तो उनके ऊपर पार्टी के अंदर और बाहर दोनों तरफ से दबाव बढ़ेगा। तभी सवाल है कि क्या निर्मला सीतारमण के बजट में लोक लुभावन घोषणाओं का पिटारा खुल सकता है? हालांकि अब तक का ट्रेंड यही रहा है कि सारी लोक लुभावन घोषणाएं भी बजट से बाहर होती हैं और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी घोषणा करते हैं। वित्त मंत्री से इतनी ही उम्मीद की जा सकती है कि वे पूंजीगत खर्च बढ़ाने और बुनियाद ढांचे के लिए आवंटन बढ़ाने जैसी तकनीकी घोषणाएं करें। 

दरअसल, पिछले 10 साल में वित्त मंत्री मोटे तौर पर बजट में आंकड़े पढ़ने का काम करते हैं। वही उनका मुख्य काम होता है। नीतिगत घोषणाएं बजट से बाहर होती हैं और उसकी घोषणा प्रधानमंत्री करते हैं। तभी समझा जा रहा है कि वित्त मंत्री बताएंगी कि किस मद में कितना आवंटन हो रहा है, जो पिछली बार के आवंटन और संशोधित आवंटन से कितना ज्यादा है। किसी नीतिगत घोषणा की संभावना कम है। फिर भी उम्मीद करने में कोई समस्या नहीं है। उम्मीद करनी चाहिए कि बजट विकास और स्थिरता की जरुरत को ध्यान में रख कर तैयार किया गया होगा। ध्यान रहे दुनिया में कई क्षेत्रों में इस समय युद्ध चल रहे हैं और आने वाले दिनों में कुछ ऐसे संकट सामने आ सकते हैं, जिनकी अभी कल्पना नहीं की जा सकती है। इसलिए वित्तीय और राजकोषीय अनुशासन बनाए रखने पर सरकार का जोर होगा। ज्यादा संभावना इस बात की है कि बजट निरंतरता वाला होगा, जिसमें पूंजीगत खर्च बढ़ाने के साथ साथ वित्तीय घाटे, राजकोषीय घाटे, मुद्रास्फीति की दर आदि को नियंत्रित करने पर जोर रहेगा। सो, कुल मिला कर बड़े आर्थिक सुधार या बदलाव की बजाय इस बार बजट नीतिगत निरंतरता वाला हो सकता है।  

Published by अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें