भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों की ओर से बिछाए गए जाल से निकल नहीं पा रही है। उलटे वह उस जाल में और फंसती जा रही है। हर साल 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने का केंद्र सरकार का फैसला इसी बात का एक और सबूत है कि वह कांग्रेस के बनाए नैरेटिव को फॉलो करते हुए उसके बिछाए जाल में उलझ रही है। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के दौरान संविधान और आरक्षण का जाल बिछाया था। इसमें कुछ गलत नहीं है क्योंकि चुनाव में सारी पार्टियां अपने प्रतिद्वंद्वी को उलझाने के लिए जाल बिछाती हैं। भाजपा भी जाल बिछाती रही है, जिसमें लंबे समय तक कांग्रेस फंसी रही। इस बार लोकसभा के चुनाव में 10 साल बाद ऐसा हुआ कि कांग्रेस ने जाल बिछाया और भाजपा उसमें फंसी। इसका नतीजा सबके सामने है।
तभी नतीजों के बाद ऐसा लग रहा था कि उनसे सबक लेकर भाजपा वापस अपने तरह की राजनीति में लौट आएगी। यानी वह नया नैरेटिव गढ़ेगी और कांग्रेस व विपक्ष को मजबूर करेगी कि वे उसके बनाए नैरेटिव को फॉलो करें। उसके एजेंडे पर प्रतिक्रिया दें। ध्यान रहे राजनीति में पहल जिसके हाथ में रहती है, धारणा की लड़ाई वही जीतता है। संविधान हत्या दिवस की घोषणा करके भाजपा एक बार फिर इस काम में चूक गई। यह समझने में किसी को कोई समस्या नहीं हुई है कि केंद्र सरकार ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने का फैसला क्यों किया है। यह भी साफ हो गया है कि कांग्रेस की ओर से संविधान और आरक्षण को लेकर चलाए जा रहे एजेंडे की कोई तार्किक काट भाजपा को नहीं सूझी है तो उसने घबराहट में यह रास्ता चुना है कि 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाएंगे।
इस फैसले को भाजपा की चूक क्यों मानेंगे इसके कुछ कारण हैं। जैसे पहला कारण तो इसकी टाइमिंग है। अभी क्यों यह फैसला किया गया, जबकि नरेंद्र मोदी 10 साल से देश के प्रधानमंत्री हैं और उससे पहले 13 साल तक वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे? उनको क्यों 23 साल लग गए इस तरह का कोई फैसला करने में? ध्यान रहे कई राज्यों में जब जनता परिवार की सरकार बनी तो उन्होंने इमरजेंसी के खिलाफ लड़ने वाले जयप्रकाश नारायण के सहयोगियों को जेपी स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा देकर पेंशन आदि देनी शुरू की। गुजरात भी उन राज्यों में से एक है। वहां जेपी सेनानियों को 25 हजार रुपए मासिक पेंशन मिलती है।
लेकिन गुजरात का मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी को या राज्य का गृह मंत्री अमित शाह को यह नहीं सूझा कि 25 जून को संविधान हत्या दिवस घोषित करें। केंद्र में भी 10 साल के कार्यकाल में इसका ध्यान नहीं आया। जब 2024 के लोकसभा चुनाव में संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर झटका लगा तो अपने अंदर सुधार या बदलाव करने की बजाय कांग्रेस को छवि खराब करने के लिए 25 जून को संविधान हत्या दिवस की घोषणा कर दी गई। इमरजेंसी लगने के 50 साल बाद इसकी क्या प्रासंगिकता बन पाएगी यह समझना मुश्किल है। ध्यान रहे देश की 75 फीसदी आबादी वह है, जो 1975 के बाद पैदा हुई है।
इस फैसले को भाजपा की चूक मानने का एक कारण यह है कि इससे यह साबित हुआ कि भाजपा लोकसभा चुनाव, 2024 में अपने अपेक्षाकृत खराब प्रदर्शन के वस्तुनिष्ठ आकलन में विफल रही है और दूसरे, वह कोई नया नैरेटिव गढ़ने में सक्षम नहीं है। अगर उसने वस्तुनिष्ठ आकलन किया होता तो उसे पता चलता कि खराब प्रदर्शन के पीछे क्या क्या कारण हैं। ध्यान रहे संविधान और आरक्षण का मुद्दा कई कारणों में से एक कारण है।
भाजपा के संगठन की कमजोरी, उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में एंटी इन्कम्बैंसी के बावजूद ज्यादातर सांसदों को वापस टिकट देना, पार्टी की अंदरूनी खींचतान, 10 साल की एंटी इन्कम्बैंसी, चार सौ पार का नारा, प्रधानमंत्री का हर भाषण में एक ही बात को दोहराना, जनता से कनेक्ट करने वाले मुद्दों की कमी और मुस्लिम, मांस, मछली, मुजरा जैसे मुद्दों पर ज्यादा जोर देने जैसे कई कारण रहे, जिनसे भाजपा का प्रदर्शन अपेक्षाकृत खराब रहा। इसी तरह विपक्ष का एकजुट होकर लड़ना भी एक कारण रहा। लेकिन भाजपा इन सबको छोड़ कर संविधान और आरक्षण के मसले को केंद्रीय मान कर कांग्रेस की छवि बिगाड़ने के नकारात्मक अभियान में जुट गई है।
भाजपा को लग रहा है कि संविधान और आरक्षण बचाने की अपील ने कांग्रेस और विपक्ष को ज्यादा सीटें दिला दीं। यह बात कुछ हद तक सही भी है। लेकिन यह समझना चाहिए कि कांग्रेस और विपक्षी पार्टियां संविधान और आरक्षण बचा लेंगी, यह चुनाव का असली मुद्दा नहीं था। असली मुद्दा यह था कि भाजपा चार सौ सीट लेकर आ गई तो वह संविधान और आरक्षण खत्म कर देगी। ऐसा नहीं था कि देश के मतदाताओं के मन में कांग्रेस और विपक्ष के प्रति बड़ी आसक्ति पैदा हो गई थी और वे उनको संविधान का रक्षक मानने लगे थे। उनके मन में भाजपा के प्रति आशंका पैदा हो गई थी।
तभी यह समझ में नहीं आने वाली बात है कि भाजपा क्यों कांग्रेस की छवि बिगाड़ने में लगी है, जबकि उसे अपनी छवि दुरुस्त करनी है? उसे लोगों को अपने आचरण और अपनी नीतियों से बताना है कि वह संविधान और आरक्षण की विरोधी नहीं है। भाजपा को अगर लग रहा है कि देश के दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को अपनी सुरक्षा संविधान में दिखती है और उनको लग रहा है कि बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर का बनाया संविधान भाजपा बदल देगी तो भाजपा को पूरा प्रयास करके इन समूहों को यकीन दिलाना होगा कि वह ऐसा नहीं करेगी। लोग उस पर भरोसा करने लगेंगे तो अपने आप कांग्रेस का अभियान फेल हो जाएगा। यह काम अपनी छवि बेहतर करने से होगा, कांग्रेस की छवि बिगाड़ने से नहीं होगा।
इमरजेंसी एक इतिहास है, जिसके बारे में लोग किस्से, कहानियां सुनते हैं। कांग्रेस की ज्यादतियों की कहानियां भी खूब सुनाई जाती हैं। यह भी सबको पता है कि उसके लिए देश की जनता ने कांग्रेस को कितनी बड़ी सजा दी। इंदिरा गांधी और संजय गांधी भी चुनाव हार गए थे और पहली बार देश में गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी। लेकिन उसके बाद से पांच बार केंद्र में कांग्रेस की सरकार बन चुकी है। इमरजेंसी समाप्त होने यानी 1977 के बाद के 47 वर्षों में 25 साल कांग्रेस केंद्र की सरकार में रही है। इस दौरान वह हारी भी है लेकिन किसी भी हार में इमरजेंसी की कोई भूमिका नहीं रही है। इसलिए अगर भाजपा को लग रहा है कि वह देश के लोगों को इस बात के लिए प्रेरित कर देगी कि वे इमरजेंसी के लिए फिर से कांग्रेस को सजा दें तो यह उसकी गलतफहमी है।
भाजपा को यह भी लग रहा है कि वह इमरजेंसी लगाए जाने के दिन को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाएगी तो कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों की फॉल्टलाइन बढ़ेगी, जिससे गठबंधन बिखर सकता है। लेकिन यह भी भाजपा की गलतफहमी है। ध्यान रहे तमाम समाजवादी नेता इमरजेंसी के समय जेल गए थे और उन्होंने इंदिरा गांधी की ज्यादती झेली थी। परंतु जेपी आंदोलन से निकले नेताओं में जो जीवित और सक्रिय हैं उनमें सबसे बड़े नेता लालू प्रसाद ने पिछले दिनों अंग्रेजी के एक अखबार में लेख लिख कर बताया कि उनमें मन में इमरजेंसी को लेकर कांग्रेस के खिलाफ कोई नाराजगी नहीं है। सोचें, जब सपा, राजद जैसी तमाम पार्टियां कांग्रेस के साथ मिल कर इतने बरसों से राजनीति कर रही हैं तो अब वे क्या इमरजेंसी के नाम पर कांग्रेस विरोधी होंगी? उलटे इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने इमरजेंसी का समर्थन किया था। सो, कहीं ऐसा न हो कि भाजपा और आरएसएस के बीच की फॉल्टलाइन इससे चौड़ी हो जाए।
अंत में यह भी समझना मुश्किल है कि इमरजेंसी लागू करना संविधान की हत्या कैसे है? संविधान के अनुच्छेद 352 में इमरजेंसी लगाने का प्रावधान है। उसी अनुच्छेद के मुताबिक इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई थी। यानी उन्होंने संविधान के मुताबिक ही यह काम किया था। यह अलग बात है कि इमरजेंसी लागू होने के बाद सत्ता तंत्र का दुरुपयोग हुआ विरोधियों को दबाने के लिए या असहमति को कुचलने के लिए। उसके लिए लोगों ने इंदिरा गांधी और कांग्रेस को सजा दी। इस तरह की ज्यादतियां कमोबेश सभी सरकारें करती हैं। लेकिन इंदिरा गांधी ने जो इमरजेंसी लगाई थी वह तो संविधान के मुताबिक ही थी। अगर भाजपा को लगता है कि इमरजेंसी का प्रावधान ही गलत है तो नरेंद्र मोदी की सरकार को संविधान में संशोधन करके आंतरिक या बाह्य खतरे के समय आपातकाल लगाने के लिए प्रावधान को ही समाप्त कर देना चाहिए। अगर संविधान में प्रावधान है और उसके मुताबिक कोई सरकार काम करती है तो उसे संविधान की हत्या कैसे कह सकते हैं?