जोड़ों के दर्द में “कोलेजन” से आसान इलाज

जोड़ों के दर्द में “कोलेजन” से आसान इलाज

अगर ज्वाइंट पेन शुरूआती स्टेज में है तो डॉक्टर दवाओं और सर्जरी की जगह तरजीह देते हैं कोलेजनको। यह ज्वाइंट्स में चिकनाई बढ़ाता है। कार्टिलेज, टेंडन और लिगामेंट रिजेनरेट करता है। इससे ज्वाइंट धीरेधीरे हेल्दी होने लगते हैं और दर्द ठीक हो जाता है।  यह अमीनो एसिड से भरपूर न्यूट्रीशनल सप्लीमेंट है, जो बनता है मांसमछलियों यानी नॉनवेजीटेरियन मैटीरियल से। मेडिकल लैंग्वेज में इसे कहते हैं कोलेजन हाइड्रोलाइज़ेट।

 साठ की उम्र आते-आते जोड़ों में दर्द आम समस्या है। महिला हो या पुरूष दोनों परेशान रहते हैं। महिलायें थोड़ा पहले, पुरूष थोड़ा बाद। चलना-फिरना मुश्किल हो जाता है। कैल्शियम की कमी, घटती बोन डेन्सिटी, घिसती कार्टिलेज, ऑस्टियोपोराइसिस, ऑर्थराइटिस और रियूमेटाइड ऑर्थराइटिस जैसे कारण होते हैं इसके पीछे।

महिलाओं में ज्वाइंट पेन आता है मेनोपॉज के बाद। शरीर में हुऐ हारमोनल परिवर्तनों से वजन बढ़ता है, बोन डेन्सिटी घटती हैं। कइयों की बोन डेन्सिटी इतनी ज्यादा घट जाती है कि बार-बार फ्रैक्चर होने लगता है। जोड़ों के पास की मांसपेशियां, टेंडन, लिगामेंट कमजोर हो जाते हैं। घुटने, बढ़े वजन का लोड नहीं ले पाते। कार्टिलेज घिस जाती है। जोड़ों में टूट-फूट होने लगती है।

रियूमेटाइड ऑर्थराइटिस से होने वाले ज्वाइंट पेन की वजह है हमारे अपने इम्यून सिस्टम का जोड़ों पर अटैक करना। यह ऑटोइम्यून बीमारी है। इम्यून सिस्टम के अटैक से ज्वाइंट्स में आयी सूजन से होता है असहनीय दर्द। अगर इसके इलाज की बात करें तो वर्षों से पेन मैनेजमेंट, एंटी इंफ्लेमेशन, स्टीरॉइड्स जैसी दवायें या ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी का इस्तेमाल होता आ रहा है। लेकिन अब इसमें तब्दीली आयी है। अगर ज्वाइंट पेन शुरूआती स्टेज में है तो डॉक्टर दवाओं और सर्जरी की जगह तरजीह देते हैं “कोलेजन” को। यह ज्वाइंट्स में चिकनाई बढ़ाता है। कार्टिलेज, टेंडन और लिगामेंट रिजेनरेट करता है। इससे ज्वाइंट धीरे-धीरे हेल्दी होने लगते हैं और दर्द ठीक हो जाता है।

क्या है कोलेजनॉ?

यह अमीनो एसिड से भरपूर न्यूट्रीशनल सप्लीमेंट है, जो बनता है मांस-मछलियों यानी नॉन-वेजीटेरियन मैटीरियल से। मेडिकल लैंग्वेज में इसे कहते हैं कोलेजन हाइड्रोलाइज़ेट। इसे कुछ और नामों से भी जाना जाता है जैसे हाइड्रोलाइज्ड कोलेजन, शुद्ध जिलेटिन, एचसीपी, टाइप II कोलेजन बगैरा। यह पाउडर और कैप्सूल के रूप में मिलता है। टाइप II कोलेजन, कार्टिलेज की मुख्य प्रोटीन है जो इसे रिजेनरेट कर सकती है।

इसमें सूजन कम करने की अद्भुत शक्ति है। कार्टिलेज घिस जाने पर घुटनों की हड्डियों के आपसी घिसाव से आयी सूजन से होता है जोड़ों में दर्द। कोलेजन में मौजूद ग्लाइसिन, सूजन के लिये जिम्मेदार शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली के एक विशेष एंटीजन (साइटोकिन्स) को निष्क्रिय कर देता है, जिससे दर्द में राहत मिलती है। ये जोड़ों के साथ लीवर और पाचनतन्त्र की सूजन भी ठीक करता है। इसमें मौजूद अमीनो एसिड, स्ट्रैस मैनेजमेंट और अच्छी नींद में मदद करते हैं जिससे क्रोनिक पेन में राहत मिलती है।

फ्रैक्चर से बचने के लिये भी जरूरी

हड्डियों में एक-तिहाई कोलेजन होता है। जिससे ये मज़बूत और लचीली रहती हैं। यह ऐसा प्रोटीन है जो बोन मिनरल डेन्सिटी बढ़ाकर फ्रैक्चर का रिस्क घटाता है। फाइबर से बनने के कारण यह बोन मैट्रिक्स को स्ट्रक्चर और स्ट्रेन्थ देता है। बोन मैट्रिक्स यानी बोन टिश्यू बनाने वाला इंटरसेल्युलर मैटीरियल जिससे बनती हैं हड्डियों के निर्माण के लिये जरूरी कोशिकायें। यह ऑर्गेनिक भी होता है और इनऑर्गेनिक भी। कोलेजन, बोन मैट्रिक्स का ऑर्गेनिक मैटीरियल है जबकि कैल्शियम फॉस्फेट जो हाइड्रॉक्सीपैटाइट क्रिस्टल के रूप में होता है, इनऑर्गेनिक है। इससे बोन मैट्रिक्स का 67 प्रतिशत भाग बनता है। बोन मैट्रिक्स में मौजूद कोलेजन, हड्डियों को स्वस्थ रखने के साथ टूटने से बचाता है।

इस सम्बन्ध में हुयी एक रिसर्च में 40 से कम उम्र की 100 महिलाओं को 12 महीने तक रोजाना 5 ग्राम कोलेजन दिया गया। इससे उनकी बोन डेन्सिटी बढ़ी, हड्डियां मजबूत हुयीं। ऐसे ही एक अन्य अध्ययन में मेनोपॉज से गुजर चुकीं 66 महिलाओं को 12 महीने तक डेली 5 ग्राम कोलेजन देने से उनकी बोन डेन्सिटी 7 प्रतिशत तक बढ़ी। इससे साबित हुआ कि 5 ग्राम कोलेजन का नियमित सेवन बोन डेन्सिटी बढ़ाकर हड्डियों को फ्रैक्चर से बचाता है अगर महिला हड्डियों की किसी गम्भीर बीमारी (बोन कैंसर बगैरा) से न जूझ रही हो

कार्टिलेज, टेंडन और लिगामेंट के लिये जरूरी

कोलेजन घुटनों, कूल्हों, हाथों, गर्दन, रीढ़ और पैरों में कार्टिलेज रिजेनरेट करता है। इससे जोड़ों में चिकनाई बनी रहती है।हमारी हड्डियां जुड़ी होती हैं टेंडन, फ़ेशिया और लिगामेंट से। ये ठीक से काम करें इसके लिए जरूरी है इनका मज़बूत जुड़ाव। कुछ अध्ययन बताते हैं कि क्षतिग्रस्त टेंडन की रिपेयरिंग के लिए रोजाना 15 ग्राम जिलेटिन कोलेजन को 50 मिलीग्राम विटामिन सी के साथ लेने से रिपेयरिंग प्रोसेस फास्ट और जुड़ाव मजबूत होता है।

ऐसी किसी भी स्थिति में जिलेटिन और विटामिन सी को एक्सरसाइज से 30-60 मिनट पहले लें। यहां एक्सरसाइज का मतलब उस फिजियोथेरेपी से है जो क्षतिग्रस्त टेंडन को ध्यान में रखकर की जाती है। उदाहरण के लिए, अकिलीज़ टेंडन की रिपेयरिंग के लिये कॉफ को ऊपर उठाने वाली एक्सरसाइज। कार्टिलेज या टेंडन का रिपेयरिंग प्रोसेस फास्ट करने के लिये ऐसी किसी भी एक्सरसाइज से पहले पेट में उचित मात्रा में कोलेजन होना जरूरी है। 

मजबूत मांसपेशियों के लिये भी जरूरी

स्वस्थ-मजबूत मांसपेशियों के लिये रोजाना 15 ग्राम कोलेजन लें। मजबूत मांसपेशियां, जोड़ों को बेहतर सहारा देती हैं। ये जोड़ों पर पड़ने वाला लोड शेयर कर लेती हैं। इससे जोड़ लम्बे समय तक ठीक रहते हैं। स्वस्थ मांसपेशियों से मेटाबोलिज्म तेज होता है। मेटाबॉलिज्म तेज होने से मोटापा नहीं बढ़ता। जोड़ों पर अतिरिक्त भार नहीं आता।लेकिन ऐसा तभी होगा जब कोलेजन के साथ मसल स्ट्रेन्थनिंग एक्सरसाइज की जायें ताकि उनका सही विकास हो, उनमें मजबूती आये।

स्किन, बालों और नाखूनों के लिये जरूरी

कोलेजन केवल हड्डियां और जोड़ ही हेल्दी नहीं रखता बल्कि त्वचा और बालों की हेल्थ भी ठीक रखता है। इसके सेवन से त्वचा नम, मुलायम और निखरी रहती है। आंखों के आसपास की झुर्रियां हट जाती हैं। नाखून स्वस्थ होते हैं। उनमें चमक आती है। बालों का टूटना रूकता है।एक स्टडी से पता चला कि पतले बालों वाली महिलाओं के एक समूह ने जब रोज़ाना 10 ग्राम कोलेजन लिया तो उनके बालों की मात्रा, मोटाई और स्कैल्प कवरेज में उल्लेखनीय वृद्धि हुयी।

ज्वाइंट पेन में कितना कोलेजन लेना चाहिये?

ज्वाइंट पेन और लिगामेंट टियर होने की स्थिति में रोजाना 10 ग्राम कोलेजन लें वह भी तीन से 6 महीने तक। इस सम्बन्ध में हुये एक क्लीनिकल ट्रॉयल में कुछ लोगों को रोजाना 10 ग्राम कोलेजन के साथ 50 मिलीग्राम विटामिन सी दिया गया। इससे जोड़ों की अकड़न घटी और दर्द कम हुआ। ऐसा, काम और आराम दोनों स्थितियों में हुआ। इस ग्रुप में सभी उम्र के लोग शामिल थे, यहां तक कि एथलीट भी। ऑस्टियोआर्थराइटिस और क्रोनिक टेंडनाइटिस के मामलों में कोलेजन की ये मात्रा प्रभावी ढंग से काम करती है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि कोलेजन से तुरन्त परिणाम की उम्मीद नहीं करनी चाहिये। दर्द से राहत पाने में 3 से 6 महीने लगते हैं। कोलेजन में कार्टिलेज निर्माण के लिये जरूरी सभी प्रोटीन होते हैं जो 85-90 प्रतिशत कार्टिलेज फिर से बना सकते हैं। इसमें मौजूद ग्लाइसीन और प्रोलाइन जैसे विशिष्ट अमीनो एसिड, ज्वाइंट के डैमेज टिश्यूज की रिपेयरिंग के लिये कोशिकाओं को तैयार करते हैं। यह प्रकिया एक या दो दिन में पूरी नहीं होती बल्कि इसमें महीनों लगते हैं। यही वजह है दर्द में आराम भी धीरे-धीरे आता है।

कोलेजन के स्रोत क्या?

कोलेजन बनता है समुद्री जीव-जन्तुओं (मछलियां) और जमीन पर पलने वाले पशु-पक्षियों की हड्डियों या स्किन से। आज की तारीख में सबसे कॉमन है हाइड्रोलाइज्ड कोलेजन। ये आसानी से पचने वाला अमीनो एसिड है। यह ज्वाइंट पेन के अलावा स्किन, हेयर और नेल्स केयर में काम आता है। मूलरूप से यह पाउडर होता है लेकिन कुछ कम्पनियां इसे लिक्विड और गोलियों के रूप में भी बेचती हैं।

कोलेजन का एक रूप है जिलेटिन। इसे सूप, सॉस या स्मूदी को गाढ़ा करने में इस्तेमाल किया जाता है। देसी भाषा में खरोड़े का सूप, अंग्रेजी में बोन ब्रॉथ नेचुरल कोलेजन है। चिकन या मटन सूप के तौर पर इसे घर में बना सकते हैं। यह घर में बना अनप्रोसेस्ड कैमिकल फ्री कोलेजन है। इससे जोड़ों को कोलेजन वाला प्रोटीन तो मिलता ही है साथ मिलते हैं ग्लूकोसामाइन, कॉन्ड्रोइटिन, हाइलूरोनिक एसिड, ग्लूटामाइन, पोटैशियम और मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्व। ये जोड़ों को स्वस्थ रखने के साथ शरीर को अतिरिक्त पोषण प्रदान करते हैं।

कोलेजन के साथ विटामिन सी क्यों जरूरी?

शरीर में कोलेजन की लोडिंग ठीक हो, अच्छी तरह एब्जॉर्ब हो जाये इसके लिये विटामिन सी जरूरी है। विटामिन सी, जोड़ों के आस-पास लिगामेंट टिश्यू बनाने के लिए शरीर में अमीनो एसिड सप्लाई सुनिश्चित कर ज्वाइंट कार्टिलेज रिजेनरेट करने में मदद करता है। वैसे तो आप सप्लीमेंट के रूप में भी विटामिन सी ले सकते हैं लेकिन नेचुरल विटामिन सी ज्यादा बेहतर है। इसके लिये संतरे का जूस पियें, आंवला खायें अगर अमरूद का सीजन है तो दिन में कम से कम दो अमरूद खायें।

कोलेजन या कैल्शियम में से क्या बेहतर?

हड्डियों के लिये कैल्शियम और कोलेजन दोनों जरूरी हैं। इनकी तुलना नहीं हो सकती। कोलेजन, बोन मिनरल डेन्सिटी बढ़ाने के साथ हड्डियों की ग्रोथ के लिए आवश्यक संरचना प्रदान करता है। यह हड्डियों के सपोर्ट सिस्टम (टेंडन, कार्टिलेज, लिगामेंट, मसल्स) को रिपेयर कर स्ट्रेन्थ देता है। इससे हड्डियां लचीली रहती हैं। दूसरी ओर कैल्शियम, कोलेजन द्वारा बनायी संरचना पर कैल्सीफिकेशन कर उन्हें मजबूती प्रदान करता है। इन दोनों के साथ विटामिन डी का होना भी जरूरी है। क्योंकि बिना विटामिन डी, हमारा शरीर कैल्शियम एब्जॉर्ब नहीं कर पाता।

कोलेजन के साइड इफ़ेक्ट

इससे दस्त, पेट फूलने और सीने में जलन जैसी समस्यायें हो सकती हैं। अगर किसी को पहले से पाचन सम्बन्धी समस्या है तो इससे इरीटेबल बाउल सिड्रोम का रिस्क बढ़ता है। वजह इसके एटम हाइड्रोफिलिक होते हैं, जो भोजन को आंत से गुजारने में मदद करते हैं लेकिन इसकी वजह से लोगों को दस्त लग जाते हैं। ज्यादा मात्रा में कोलेजन लेने से कब्ज हो जाती है तो कुछ मतली-उल्टी महसूस करते हैं। रेयर मामलों को छोड़ दें तो ये सब दो-चार दिन में अपने आप ठीक हो जाता है।

मांस-मछली से बना होने के कारण कुछ लोगों को खुजली, झुनझुनी, त्वचा में जलन, जीभ या चेहरे पर सूजन, गले में घरघराहट, पेट दर्द, मतली और उल्टी जैसे एलर्जिक लक्षण महसूस होते हैं। यदि कोलेजन लेने से ऐसा कोई भी लक्षण महसूस हो तो तुरन्त डॉक्टर से मिलें।

ऐसे मामले भी सामने आये जिनमें कोलेजन के लेने से लोगों को किडनी स्टोन हो गया। वजह थी इसमें मौजूद हाइड्रोक्सीप्रोलाइन एमिनो एसिड।अध्ययनों से पता चला कि हाइड्रोक्सीप्रोलाइन से यूरीन में ऑक्सेलिक एसिड बढ़ता है जिससे गुर्दे में पथरी बनने लगती है। हालांकि ऐसा रेयर मामलों में ही होता है।

इन बातों का ध्यान रखना जरूरी

कोलेजन की शुरूआत करें रोजाना 10 ग्राम की डोज से। आप इसे दो हिस्सों में बांटकर ले सकते हैं 5 ग्राम सुबह, 5 ग्राम शाम। यदि पाउडर के रूप में ले रहे हैं तो पानी में अच्छी तरह घोलकर लें। इस दौरान डाइट में विटामिन सी की मात्रा बढ़ायें। चीनी का सेवन सीमित करें। ज्यादा समय तक धूप में न रहें। धूम्रपान छोड़ें। स्ट्रेस मैनेज करें। रोजाना आठ घंटे की नींद लें। नियमित व्यायाम को जीवनशैली का हिस्सा बनायें।

याद रहे कोलेजन, मंहगा प्रोडक्ट है। अगर अच्छी कम्पनी का है तो और भी मंहगा। इसलिये ज्यादातर लोग इसे रेगुलर नहीं ले पाते। ऐसे में नेचुरल कोलेजन लें यानी घर में धीमी आंच पर बना चिकन या मटन सूप यानी बोन ब्रॉथ। ध्यान केवल इतना रखना है कि सूप बनाने में मटन और चिकन के जो पीस इस्तमाल करें वे हड्डियों वाले हों। (आप यूट्यूब पर इसकी रेसिपी देख सकते हैं।) इनमें अमीनो एसिड, ग्लाइसिन और प्रोलाइन से भरपूरऐसे माइक्रोन्यूट्रियेन्ट्स होते हैं जो जोड़ों में चिकनाई बढ़ाकर दर्द कम करने और वास्तविक समस्या दूर करने के लिए नयी कार्टिलेज, लिगामेंट और टेंडन्स का निर्माण कर सकते हैं।

एक बात और, कोलेजन का कोई भी टाइप शाकाहारी नहीं है। यह बनता ही मांस-मछली से है। इसलिये अगर इसे वेजीटेरियन समझकर ले रहे हैं तो सावधान हो जायें। जो कोलेजन प्रोडक्ट बाजार में वेजीटेरियन बताकर बेचे जा रहे हैं वे कभी भी वह लाभ नहीं दे सकते जो असली कोलेजन से मिलता है। कुछ कम्पनियां सस्ता बेचने के चक्कर में कोलेजन में गम, फिलर्स, प्रिजर्वेटिव, स्प्रे, डाई और एंटीकेकिंग एजेंट मिला देती हैं। इनका जिक्र पैकिंग पर नहीं होताये सभी गट हेल्थ के लिये खराब हैं।

हमेशा अच्छी कम्पनी का कोलेजन खरीदें। आज बाजार में चाइना और ब्राजील में बने उत्पाद भरे पड़े हैं। जिनका निर्माण सब-स्टैंडर्ड प्रयोगशालाओं में होता है। सस्ता बनाने के चक्कर में ज्यादातर पशु अवशेष जीएमओ (आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव) स्रोतों से आते हैं, जिनकी प्रोसेसिंग में बड़ी मात्रा में कैमिकल्स, सॉल्वेंट और स्प्रे इस्तेमाल होते हैं। ऐसा कोलेजन फायदा कम नुकसान ज्यादा करता है।

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