तिहाड़ में रिहाई के दिन गिन रहे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के नेता भले रिहाई के लिए इंडिया गठबंधन पर संसद में इस मामले को उठाए जाने के लिए दबाव बना रहे हों। आप नेता राघव चड्ढा तो कहते हैं कि इंडिया गठबंधन के नेता तिहाईतिहाड जाकर केजरीवाल से मिलते रहें। ताकि संदेश जाए कि पूरा विपक्ष केजरीवाल के साथ खड़ा हुआ है। पर दिल्ली के कांग्रेसी और सांसद स्वाति मालीवाल केजरीवाल एंड पार्टी को अलग -थलग देखना चाहते हैं। यह अलग बात है कि पिछले दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने केजरीवाल और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जेल भेजने का ज़िक्र किया था। लेकिन लोकसभा चुनावों के नतीजों के बाद जिस तरह आप पार्टी के नेताओं ने दिल्ली विधानसभा का चुनाव कांग्रेस से अलग होकर लड़ने का एलान किया उससे कांग्रेसी खुश नहीं हैं।यह ज़रूर है कि कांग्रेस ने भी आप से अलग होकर ही चुनाव लड़ने का एलान किया हुआ है। पर आप नेताओं के बयान से दोनों पार्टियों में कटुता तो आंई ही है। पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने यहाँ तक कह दिया कि केजरीवाल की सेहत को लेकर राजनीति नहीं होनी चाहिए । संदीप बोले कि आप पार्टी के नेता कहीं भी कुछ भी बोल देते हैं और झूठ बोलना इनकी आदत बन चुकी है। बात दीगर भी है संदीप पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे हैं और सत्ता के लिए केजरीवाल ने ही शीला को भ्रष्टाचारी बताकर सत्ता में आने पर जेल भेजने की बात कही थी। भला केजरीवाल शीला को तो जेल नहीं भेज पाए पर खुद ज़रूर जे चले गए। यही हाल दिल्ली के कांग्रेसी नेताओं का है ज्यादातर मौक़ों पर वे केजरीवाल और आप पार्टी के ख़िलाफ़ बोले भी हैं। अब भला इंडिया गठबंधन या कांग्रेस के नेता केजरीवाल के समर्थन में संसद से सड़क तक उतरते हैं या नहीं यह बात दूसरी है लेकिन फिलाहल तो ऐसे हालत दिख भी नहीं रहे हैं। खुद स्वाति मालीवाल कांग्रेस नेताओं से मिलकर अपना दर्द बयां कर केजरीवाल से दूरी बनाने की कोशिश में बताई जा रही हैं। राजनीतिक गलियारों में तो यह भी चर्चा है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही नहीं चाहती कि केजरीवाल फिलाहल जेल से बाहर आंए दोनों ही केजरीवाल एंड पार्टी को दाल-भात (कांग्रेस -भाजपा) में मूसलचंद मानती हैं।
राहुल के इर्द-गिर्द दिखती भाजपा की राजनीति
अब भाजपा उन्हें पप्पू कहेगी या फिर राहुल गांधी यह तो भाजपा ही जाने पर यह ज़रूर है कि कल तक गलियों की ख़ाक छानने वाले इस कांग्रेस नेता ने भाजपा नेताओं की नाक में दम कर रखा है। पर इसका श्रेय राहुल खुद को नहीं बल्कि भाजपा को देते हैं। राहुल गांधी के बयानों को माना जाए तो भाजपा ने उन्हें पप्पू बनाने के लिए करोड़ों का खर्चा कर डाला पर भाजपा को कोई राजनीतिक फ़ायदा नहीं हुआ। बल्कि भाजपा के लिए ये सौदा घाटे का रहा। या यूँ कहिए कि राहुल की मोहब्बत की दुकान इन चुनावों में ऐसी चल निकली कि कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखने वाली भाजपा को अपने बूते नहीं बल्कि गठबंधन की सरकार चलाने को मजबूर होना पड़ गया। वरना तो भाजपाईयों ने गलियों और चौबारों से लेकर शहरों तक राहुल को पप्पू बताने में कमी नहीं रखी। भला राहुल कितने पप्पू बने और कितनी रही उनकी बालक बुद्धि यह अलग बात है पर यह ज़रूर रहा कि राहुल ने पूरे लोकसभा चुनाव को राहुल बनाम मोदी ज़रूर बना कर दिखा दिया। या यूँ कहिए कि कल तक जो अरविंद केजरीवाल अपनी शर्तों पर बात कर रहे थे और पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जिनके साथ गठबंधन करने को तैयार नहीं थीं ,जिन पर परिवारवाद आरोप लगा भाजपा कांग्रेस मुक्त भारत का नारा बुलंद कर रही थी उन्हीं राहुल गांधी और उनके इंडिया गठबंधन ने राजग की जीत को हार के तौर पर और इंडिया गठबंधन की हार को जीत के तौर पर लोगों के दिलोदिमाग़ में बैठा दिया है। लोग तो मानते हैं कि राहुल की खुली मोहब्बत की दुकान और इंडिया गठबंधन ने भाजपा की राजनीति को कम से कम पाँच साल तक तो राहुल के इर्द गिर्द घूमने को मजबूर कर दिया है। लोग तो कह रहे हैं कि मोहब्बत का यह सौदागर अकेला चला था – लोग जुड़ते गए और कारवाँ बनता गया। और कल तक पप्पू कहे जाने वाला यह बालक नेता विपक्ष तो हुआ ही सर्वमान्य नेता भी बन गया।
चुनाव से पहले शुरू हुई उठा-पटक
हरियाणा विधानसभा चुनाव की आहट हुई तो भाजपा में उठापटक तो कांग्रेस में गुटबाज़ी से निपटाने की तैयारी। कार्यकर्ताओं का चुनाव में कम दिलचस्पी लेना दोनों पार्टियों के लिए सिरदर्द बना हुआ है। चुनाव हरियाणा के होने हैं पर बैठकें दिल्ली में चल रही हैं। नेता से लेकर ज़िलाध्यक्ष और मंडल तक में फेरबदल कर रही है भाजपा । या यूँ मानो कि हरियाणा में जीत के लिए वह दिल्ली की तरह ही नए-नए प्रयोग कर रही है। लोकसभा चुनावों में मिले झटके बाद भाजपा एक्शन में है। चुनावी मैदान में जाने से पहले पार्टी ने दावेदारों की पूरी पड़ताल शुरू करा दी है। छह ज़िलाध्यक्षों को पद से हटा दिया गया है तो चार ज़िलों के प्रभारियों पर एक्शन लिया गया है ।चर्चा तो है कि इन चारों को पदों से ही हटा दिया जाएगा । अब पार्टी भले इस कार्रवाई को जीत के लिए गुणा-भाग कर रही हो पर जानकार तो इसे लोकसभा चुनाव में मिली हार से जोड़कर ही देख रहे हैं। जिन नेताओं के ख़िलाफ़ यह एक्शन लिया गया है उनके ख़िलाफ़ भितरघात की शिकायतें तो थीं हीं साथ ही लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ खड़ा होने की शिकायतें भी पार्टी को मिलीं थीं । भाजपा का चिंता का विषय लोकसभा चुनावों में उसका वोट प्रतिशत कम होना और कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ना भी है।हालात कांग्रेस के भी ऐसे ही हैं। चुनावों के बाद कुछ समय तक कांग्रेस में नेताओं और कार्यकर्ताओं ने फ़ीलगुड महसूस किया पर थोड़े समय बाद ही यह नशा उतर गया। हद तो तब हुई जब पार्टी में गुटबाज़ी की जानकारी सिरसा से सांसद कुमारी शैलजा के उस पोस्टर मिली जिसे उन्होंने कांग्रेस संदेश यात्रा के लिए छपवाए थे। भला अब हरियाणा की 90 सीटों में से भाजपा कितनी हासिल कर पाती है यह बाद की बात है पर हरियाणा के लोग तो सत्ता परिवर्तन के मूड में बताए जा रहे। भाजपा की यही चिंता सबसे ज़्यादा है।