स्वतंत्रता आंदोलन में भी श्रीगणेश जी हमारे नायक थे

स्वतंत्रता आंदोलन में भी श्रीगणेश जी हमारे नायक थे

भारत में गणेश उत्सव भाद्रपद मास की चतुर्थी से चतुर्दशी तक मनाया जाता है। यह दस दिनों तक चलने वाला हिंदू धर्म का पौराणिक पर्व है। युगों युगों से गणेश उत्सव का आयोजन होता आ रहा है। उत्सव के प्रमाण हमें सातवाहन, राष्ट्रकूट तथा चालुक्य वंश के काल से मिलते हैं। गणेश उत्सव को मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज ने राष्ट्रधर्म और संस्कृति से जोड़कर एक नई शुरुआत की थी।

 श्रीगणेश जी सनातन परंपरा में प्रथम पूज्य देवता हैं। उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत, पूर्वी और पश्चिमी भारत में गणेश उत्सव की अलग अलग परंपराएं हैं मगर सभी परंपराओं में गणेश जी का स्थान बहुत ही पूज्य और आदरणीय है। इन्हीं परंपराओं में महाराष्ट्र के पुणे में शुरू हुई दस दिवसीय उत्सव परंपरा आज पूरे भारत ही नहीं, बल्कि विश्व के अनेक देशों में बड़े ही उमंग और उल्लास से मनाई जाती है। गणेश चतुर्थी कब मनाई जाएगी? कैसे मनाई जाएगी? कैसे पूजा होगा इस बारे में सभी जानते हैं मगर आपको शायद पता नहीं होगा कि कानून की धारा 144 से भी गणेश जी का संबंध रहा है। कैसे संबंध है, क्या संबंध है? आईए आपको बताते हैं।

सन् 1857 की क्रांति के बाद घबराकर अंग्रेजों ने 1894 में एक बहुत बडा कानून लागू किया, जिसे वर्तमान में धारा 144 कहते हैं। नए कानून में तो इसे एक बार फिर बदला गया है लेकिन लोग इसे इसी रूप में जानते हैं। अंग्रेजी हुकूमत द्वारा इस कठोर कानून की धारा लागू किए जाने के बाद से किसी भी स्थान पर पांच भारतीय से अधिक इकठ्ठा नहीं हो सकते थे। सरल शब्दों में कहें तो सार्वजनिक आयोजनों की मनाही थी। यदि कोई ब्रिटिश अधिकारी उनको इकट्ठा देख लेता तो इतनी कड़ी सजा दी जाती थी कि जिसे सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उनको कोड़े से मारा जाता था और उनके हाथों से नाखूनों को नोंच लिया जाता था।

ब्रिटिश हुकूमत के इस कड़े कानून के कारण गुलाम भारतीयों में भय व्याप्त हो गया था। लोगों में अंगेजों के प्रति व्याप्त भय को खत्म करने तथा इस कानून का विरोध करने के लिए लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेश उत्सव को सार्वजनिक रूप से मनाने की शुरुआत की। शुरुआत पुणे के शनिवारवाड़ा में गणेश उत्सव के आयोजन को वृहद् स्तर पर मनाकर हुई। सन् 1894 के पूर्व तक गणेश उत्सव को लोग घरों में ही मनाया करते थे। पुणे के शनिवारवाड़ा में वर्तमान समय में भी हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती है।

तिलक जी ने अंग्रेजों को चेतावनी दी थी कि अंग्रेज पुलिस उन्हें गिरफ्तार करके दिखाए। कारण कानून के हिसाब से अंग्रेज पुलिस सिर्फ राजनीतिक समारोह में उमड़ी भीड़ को ही जेल में डाल सकती थी, धार्मिक समारोह में उमड़ी भीड़ को नही। तिलक जी द्वारा शुरू की गई पहल के बाद पूरे 10 दिन 20 से 30 अक्टूबर 1894 तक पुणे के शनिवारवाड़ा में गणपति उत्सव मनाया गया। प्रतिदिन लोकमान्य तिलक भारतीयों को उद्बोधन देने के लिए किसी बड़े क्रांतिकारी को आमंत्रित करते थे।

20 तारीख को बंगाल के सबसे बड़े नेता विपिनचन्द्र पाल तथा 21 तारीख को उत्तर भारत के लाला लाजपत राय वहां पहुंचे। इसी प्रकार चापेकर बंधू भी वहा पहुंचे। वहां 10 दिनों तक इन महान नेताओं के उद्बोधन होते थे। सभी भाषणों का मुख्य आधार यहीं होता था कि हम भारत को अंग्रेजों से आजाद कराएं। गणपति जी हमें इतनी शक्ति दें कि हम स्वराज्य लाएं।

दूसरे वर्ष यानी वर्ष 1895 में पुणे में 11 गणपति स्थापित किए गए। इसी प्रकार संख्या को बढ़ाते हुए अगले साल 31 और अगले साल यह संख्या एक सौ पार कर गई, जिसके बाद से गणेश उत्सव के कार्यक्रम ने मंच और पंडालों का रुप ले लिया। धीरे धीरे पुणे के नजदीकी बड़े शहरों जैसे अहमदनगर, मुंबई, नागपुर आदि तक गणपति उत्सव फैलता गया। प्रति गणपति उत्सव पर लाखों लोगों की भीड़ जमा होती थी। उत्सव में आमंत्रित नेता उनमें देश प्रेम के भाव जाग्रत करने का कार्य करते थे।

इस प्रकार का प्रयास सफल हुआ और लोगों के मन में देशभक्ति का भाव बढ़ने लगा। स्वतंत्रता आन्दोलन में लोगों को एकजुट करने में इस प्रयास ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सन् 1904 में लोकमान्य तिलक जी ने अपने भाषणों में लोगों से कहा था कि गणपति उत्सव का मुख्य उद्देश्य आजादी हासिल करना है, स्वराज्य हासिल करना है, देश से अंग्रेजों को भगाना है। बिना स्वराज्य के गणपति उत्सव का कोई औचित्य नही है।

भारत में गणेश उत्सव भाद्रपद मास की चतुर्थी से चतुर्दशी तक मनाया जाता है। यह दस दिनों तक चलने वाला हिंदू धर्म का पौराणिक पर्व है। युगों युगों से गणेश उत्सव का आयोजन होता आ रहा है। उत्सव के प्रमाण हमें सातवाहन, राष्ट्रकूट तथा चालुक्य वंश के काल से मिलते हैं। गणेश उत्सव को मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज ने राष्ट्रधर्म और संस्कृति से जोड़कर एक नई शुरुआत की थी। मराठा शासकों के दौर से उत्सव के इस क्रम को जारी रखा गया है, जिसके बाद पेशवा राजवंशों ने गणेश उत्सव को व्यापक स्तर पर मनाए जाने का क्रम शुरू किया।

चूंकि गणेशजी पेशवाओं के कुलदेवता थे इसी कारण इस समय गणेशजी को राष्ट्रदेव के रूप में दर्जा प्राप्त हो गया था। पेशवा वंशजों के बाद ब्रिटिश हुकूमत के दौर में सन् 1892 तक गणेश उत्सव केवल हिन्दू घरों तक ही सीमित था। संविधान के अनुसार भारत एक गणराज्य है और जो देवता गण यानी जनता जनार्दन का प्रतीक बनकर पूजे जाएं ऐसे ही देवता का नाम गणपति है, गणेश है। पारंपरिक मान्यतों के साथ ही यह भी कहा जा सकता है कि अंग्रेजों को भगाने और भारत के स्वराज की प्राप्ति में हमारे गणपति महाराज जी की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।(लेखक विश्व भोजपुरी सम्मेलन संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मैथिली भोजपुरी अकादमी दिल्ली  के पूर्व उपाध्यक्ष हैं।)

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