जिंदादिल है तो हंसे-हंसाए

जिंदादिल है तो हंसे-हंसाए

भारतीय सभ्यता- संस्कृति व जीवन दर्शन में भी हंसी-मजाक का मूल स्रोत विद्यमान है। भारतीय परंपरा में ब्रह्म अर्थात परमात्मा की अवधारणा को सत् चित् के साथ ही आनंद का स्वरूप माना गया है। ब्रह्म आनंद के रूप में सभी प्राणियों में निवास करता है। ब्रह्म आनंद की अनुभूति जीवन का परम लक्ष्य माना जाता है। इसे ही ब्रह्मानंद प्राप्ति का नाम दिया गया है। वह रस, माधुर्य, लास्य का स्वरूप है।

1 जुलाई अंतर्राष्ट्रीय मजाक दिवस

हंसना-हंसाना अर्थात हंसी -मजाक एक बहुत ही अच्छा कार्य है। इससे स्वयं और दूसरों को भी खुश रखा जा सकता है। हंसी-मजाक अस्वस्थ व्यक्तियों के लिए सबसे अच्छी दवा मानी जाती है। अनेक शोधों के अनुसार हंसी-मजाक हमारे जीवन में कई तरह से मददगार है। हंसी फेफड़ों और मांसपेशियों को लाभ पहुंचाती है। जिस तरह शरीर को चुस्त-दुरुस्त,स्वस्थ रखने के लिए अच्छा खान-पान व शारीरिक व्यायाम संबंधी गतिविधियां आवश्यक हैं, उसी तरह मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए हंसना और प्रसन्न रहना भी जरूरी है। हंसने से कई सारी बीमारियों का खतरा दूर होता है। खुलकर हंसने से शरीर में रक्त का संचालन बेहतर होता है, दिल स्वस्थ बना रहता है, शरीर में मेलाटोनिन नामक हार्मोन एक्टिव होता है, जिससे नींद अच्छी आती है। इससे त्वचा भी खूबसूरत और जवां बनी रहती है।

किसी उदास, रोते हुए चेहरे पर मुस्कुराहट लाना बहुत अच्छा और भलाई का काम माना जाता है। हंसी-मजाक करने से मस्तिष्क अर्थात मूड अच्छा और आस-पास का माहौल खुशनुमा होता है। इसलिए दुनिया भर में 1 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय मजाक दिवस मनाया जाता है। यह दिन मुख्य रूप से चुटकुले सुनने और सुनाने के शौकीनों के लिए होता हैं, और इस दिन लोग चुटकुले सुनते व सुनाते हैं। इस दिन लोग अपने परिवार, दोस्तों व अन्य लोगों के साथ मजाक करते हैं।

मजाक का अर्थ है -हंसी, ठट्ठा, दिल्लगी, ठिठोली। यह एक प्रवृत्ति होती है, जिसमें सभी की रुचि नहीं होती। मजाक के समानार्थक शब्द हैं- अभिहास, केलि, कौतुक, खिलवाड़, खेलवाड़, चुटकुला, चुहल, ठट्ठा, ठिठोली, तफ़रीह, दिल्लगी, निधुवन, परिहास, प्रहसन, मज़ाक, विनोद, विनोदोक्ति, हंसी, हंसी -मज़ाक़, हास-परिहास, हास्य, हास्य-परिहास। हंसी- मजाक का यह चलन आदिकाल से ही मानव मन में रचा- बसा हुआ है। प्राचीन भारतीय सभ्यता- संस्कृति व जीवन दर्शन में भी हंसी-मजाक का मूल स्रोत विद्यमान है। भारतीय परंपरा में ब्रह्म अर्थात परमात्मा की अवधारणा को सत् चित् के साथ ही आनंद का स्वरूप माना गया है। ब्रह्म आनंद के रूप में सभी प्राणियों में निवास करता है। ब्रह्म आनंद की अनुभूति जीवन का परम लक्ष्य माना जाता है। इसे ही ब्रह्मानंद प्राप्ति का नाम दिया गया है। वह रस, माधुर्य, लास्य का स्वरूप है। इसीलिए ब्रह्म के माया के संपर्क से मूर्तरूप लेने पर उसकी लीलाओं में आनंद को ही प्रमुखता दी गई है। श्रीकृष्ण रास रचाते हैं, छल करते हैं, लीलाएं दिखते हैं। वृंदावन की कुंज गलियों में आनंद की रसधार बहा देते हैं। मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम भी होलिकोत्सव  में रंग, गुलाल उड़ाते हैं और सावन में झूला झूलते हैं। उनकी मर्यादा में भी भक्त आनंद का अनुभव करते हैं।

वस्तुतः भारतीय संस्कृति में मृत्यु, भय और दु:ख का कोई खास स्थान नहीं है। इन्हें अधिक महत्ता प्रदान नहीं की गई है। मृत्यु एक परिवर्तन का प्रतीक है। शरीर के साथ आत्मा नहीं मरती है, बल्कि वह एक चोला बदल कर दूसरा पहन लेती है। यही कारण है कि देश के कई भागों में  शरीर का समय पूरा होने पर खुशी मनाए जाने का भी प्रचलन है। नाच-गाने के साथ, बड़े उमंग और उत्साह से पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार करने का यह भी एक कारण है कि जीवात्मा अब अपने स्वामी ब्रह्म से मिलने जा रही है। मिलन की इस पावन बेला मे दु:ख, दर्द और शोक की जरूरत नहीं है। शिव, नटराज, भोले भण्डारी आदि सहस्त्रों नामों से संज्ञायित शंकर समाधि के साथ ही आनंद के भी प्रतीक माने गए हैं।

वे नृत्य, गायन, व्याकरण, भाषा और इनसे संबंधित समस्त गतिविधियों के केन्द्र हैं, जिनसे प्राणी के मन में आनंद का सागर हिलोरें लेने लगता है। भारत  में प्राचीनकाल से ही विष्णु व अन्य अवतारों की अवतरण दिवस व उनसे संबंधित तिथियां  बड़े उत्साह और पूरी श्रद्धा के साथ मनाई जाती हैं। इन अवतारों की निधन तिथियों को कोई भूल कर भी स्मरण नहीं करना चाहता है। मान्यता है कि अवतार अपने प्रकट होने का उद्देश्य पूर्ण कर अपने मूल तत्व अर्थात ब्रह्म में लीन हो जाते हैं।

भारतीय संस्कृति में ईश्वर से डरने की परंपरा नहीं हैं। मान्यता है कि ईश्वर कोई ऐसी शक्ति नहीं है, जिससे डरना जरूरी हो। वह प्राणियों में भय का संचार नहीं करता। वह हमारा आदि स्रोत है। हम उसके अंग हैं। वह जड़ चेतन में व्याप्त है। हम उसके साथ कोई भी संबंध कायम करने अर्थात रिश्ता बनाने के लिए स्वतंत्र हैं। भक्त अपने उपास्य से अनेक रूपों में प्रेम कर सकता है। उसका दास, सखा, सेवक यहां तक कि शत्रु और स्वामी भी बन सकता है। भारत की  इसी वैचारिक स्वतंत्रता ने समाज को हंसी -मजाक का उपहार दिया है।

ब्रह्म अर्थात परमात्मा के अतिरिक्त सभी जीव गुण और दोष के पुतले हैं। गुण और दोष का मिश्रण ही मनुष्य की विशेष पहचान है। मनुष्य आनंद की अनुभूति के लिए पैदा होता है। रोने-धोने, बिसूरने और निषेधात्मक भयादोहन करने वाली चिंताओं में बैचेन रह कर जिंदगी गुजारना मनुष्य जीवन का उद्देश्य कतई नहीं है। समाज में विषमताएं हैं, गरीबी है, आर्थिक द्वंद हैं, दुरूह समस्याएं हैं। इसके बावजूद प्रत्येक परिस्थिति में हंसते रहना और चुनौतियों का डट कर मुकबला करना भारतीय संस्कृति का मूल संदेश है। इसलिए भारतीय परंपरा में आये दिन त्यौहार मनाए जाने की परिपाटी है। इसके माध्यम से सारे गमों को भुलाकर आनंद की नदी में डुबकी लगाने का प्रयास किया जाता है। यह बंधनों से मुक्त समाज का प्रतीक है। भक्त आराध्य देवताओं के साथ भी हंसी मजाक करने से बाज नहीं आते हैं।

वर्तमान में दुखी अथवा परेशान लोगों का मूड बदलने के लिए भी हंसी-मजाक किया जाता है। हंसी-मजाक से आस-पास का माहौल तो खुशनुमा हो जाता है, लेकिन यह भी सच है कि कई बार हंसी -मजाक किसी को चिढ़ाने का भी कार्य करती है और इससे माहौल बिगड़ सकता है। ऐसे में सोच -समझकर मजाक करना चाहिए। हंसी-मजाक हमेशा एक सीमा में रहकर ही करना चाहिए, हदें पार नहीं करना चाहिए। बात-बात पर हंसी-मजाक करने से भी दूर रहना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने वालों को गंभीर व्यक्ति नहीं माना जाता है। कभी भी किसी की लाचारी का मजाक नहीं बनाना चाहिए। फिर भी घर में किसी तरह के समारोह के आयोजन, मेहमानों के आगमन तथा भोजन के आपस में समय हंसी-मजाक कर, हंसने-गुदगुदाने वाली बातें कर आपसी तनाव व झिझक को दूर किया जा सकता है। मजाक-मस्ती और खींचातानी से शादी-ब्याह के अवसर को स्मरणीय बनाया जा सकता है। वनभोज अथवा कहीं बाहर घूमने जाने के अवसर पर हंसी-मजाक करने से वहाँ का माहौल और ज्यादा खुशनुमा हो जाता है। इसलिए स्वयं के साथ ही दूसरों को भी इसमें शामिल कर चुटकुले, पुराने किस्से-कहानियों, मजाकिया कार्यों से हर किसी को मशगूल रखा जा सकता है।

कुछ शोधों के अनुसार प्रेम अर्थात इश्क और हंसी- मजाक का अन्योन्याश्रय संबंध अर्थात  चोली-दामन का साथ है। संबंधों अर्थात रिश्ते में मजाकिया लहजा अपनाने से उसी मात्रा में प्यार परवान चढ़ता जाता है, टूट और टकराव की आशंका भी उतनी ही कम होती जाती है। रिश्ते में हंसी-मजाक ज्यादा होने का अर्थ है कि आपसी सामंजस्य मजबूत है और दो व्यक्तियों के बीच सब कुछ सही चल रहा है। सिंगापुर मैनेजमेंट यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक केनेथ टैन 110 रोमांटिक जोड़ों पर अध्ययन करने के दौरान प्रतिदिन प्रतिभागियों से रिलेशनशिप सेटिस्फेक्शन और हंसी-मजाक से जुड़े आंकड़े इकट्ठे कर उनके अध्ययन से इस परिणाम तक पहुंचे कि जिस दिन रोमांटिक जोड़े एक-दूसरे के साथ ह्यूमरस अर्थात  मजाकिया थे, उस दिन उन्होंने अपने रिलेशनशिप सेटिस्फेक्शन को भी उच्च स्तर पर बताया। जबकि गंभीर होते ही उनका रिलेशनशिप सेटिस्फेक्शन भी कम होता देखा गया। उन्होंने देखा कि रिश्ते से पार्टनर्स कितने संतुष्ट रहेंगे, यह सीधे-सीधे उनके बीच होने वाले हंसी-मजाक से तय होता है। उनके बीच हंसने-हंसाने के मौके जितने ज्यादा होंगे, रिलेशनशिप सेटिस्फेक्शन भी उतना ही अधिक होगा। गंभीर रहने वालों की अपेक्षा हंसी-मजाक करने वाले ही लड़कियों को ज्यादा आकर्षक लगते हैं, और उन्हें वे एक भरोसेमंद साथी के रूप में देखती हैं।

रिलेशनशिप साइकोलॉजिस्टों के अनुसार गंभीर होकर की गई रोमांस के मुकाबले हल्के-फुल्के अंदाज में की कई फ्लर्टिंग ज्यादा असरदार होती है। यह संभावित पार्टनर को जल्दी प्रभावित करने की क्षमता रखती है। डॉ. केनेथ टैन के अनुसार मजाकिया अर्थात  ह्यूमर सीधे रूप से पर्सनैलिटी से जुड़ा है। लोगों की नजर में मजाकिया लोग रोमांटिक रिलेशनशिप के मामले में ज्यादा आकर्षक होते हैं। डॉ. केनेथ टैन के पहले भी कई मनोवैज्ञानिकों और रिलेशनशिप स्पेसलिस्टों ने मजाकिया लहजा और अट्रैक्टिव पर्सनैलिटी के बीच संबंधों को स्थापित किया है। लेकिन डॉ. केनेथ टैन की रिसर्च में यह नई बात सामने आई कि मजाकिया लहजा नए रिश्ते जोड़ने के साथ-साथ पुराने को धार देने में भी मददगार है। उनके अनुसार अगर कोई अपने पार्टनर के साथ मजाकिया लहजा अपनाता है, बीच-बीच में साथ हंसने के मौके निकालते है तो इससे उसका रिश्ते मजबूत और प्यार गहरा होता जाएगा।

अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलाइना की साइकोलॉजिस्ट सारा एल्गो ने रिश्ते टूटने की बड़ी कारणों को जानने के लिए एक अनुसंधान कर यह बताया कि किसी रोमांटिक रिश्ते के टूटने की तीन बड़े कारण हैं। उनमें से एक रिश्ते में हंसी- मजाक मौके का न होना अर्थात ह्यूमर की कमी भी है। इस रिसर्च के दौरान सारा एल्गो और उनकी टीम ने दुनिया भर के सैकड़ों रोमांटिक जोड़े से बात-चीत कर आंकड़े जुटाए और उनके गतिविधियों का बारीकी से अध्ययन कर इस नतीजे पर पहुंचे कि रिश्ते में मजाकिया लम्हों की कमी से पार्टनर्स एक-दूसरे से दूर होते जाते हैं। उनके बीच आपसी समझ और भरोसा भी कम होता जाता है। जो रिश्ते को अंदर से कमजोर करता है। यही टूट की वजह बनती है।

Published by अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

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