2024 की शुरुआत में जापान के हानेडा अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट पर जो हुआ वह एक अच्छी ट्रेनिंग और जापानी यात्रियों के संयम और आपात स्थिति का सामना करने की गंभीरता के चलते ही संभव हुआ। यहाँ एक सवाल उठता है कि क्या ऐसे हादसों से दुनिया भर के अन्य यात्री, फिर वो चाहे हवाई यात्री हों या अन्य साधनों से यात्रा करने वाले, क्या कोई सबक़ लेंगे? …. फ्लाइट 516 के यात्रियों ने बिना घबराए जो कर दिखाया, उससे सभी को सबक़ लेने की ज़रूरत है। ऐसा संभव इसलिए हुआ क्योंकि विमान के क्रू और उनके निर्देशों का पालन कर रहे यात्रियों के बीच सही समन्वय था।
पूरी दुनिया में विमान यात्राओं की संख्या बेइंतहा बढती जा रही है। विमान में यात्रा करते समय यात्रियों को आपातकाल के नियमों से परिचित भी कराया जाता है। परंतु जो भी हवाई यात्री अधिक यात्राएँ करते हैं वो विमान में दिये जाने वाले सुरक्षा व आपात नियमों को न तो ध्यान से पढ़ते हैं और न ही ऐसी जानकारियों को ध्यान से सुनते हैं। इसलिए जब भी कभी कोई हादसा होता है तो उस समय अफ़रा-तफ़री का माहौल बन जाता है।
परंतु कुछ दिन पहले जापान में हुए एक ख़तरनाक विमान हादसे में केवल 5 लोगों की मौत हुई जबकि 379 यात्रियों को आग के गोले में तब्दील हुए एक विमान से सुरक्षित निकाला गया। ऐसा केवल इसलिए संभव हो सका क्योंकि विमान के क्रू ने अपनी ट्रेनिंग में जो कुछ भी सीखा था, उस पर उस स्थिति में पूरी तरह से अमल किया। इसके साथ ही संयमित यात्रियों ने भी सभी सेफ्टी प्रोटोकॉल्स के पालन करने में कोई कमी नहीं छोड़ी।
गत 2 जनवरी को जापान एयरलाइंस की फ्लाइट 516 जैसे ही हनेदा एयरपोर्ट पर लैंड कर रही थी, उसकी टक्कर वहां खड़े कोस्ट गार्ड के विमान से हो गई। कुछ ही क्षणों में जापान एयरलाइंस के विमान में भयंकर आग लग गई। संयमित यात्रियों और विमान के क्रू की सूझबूझ के कारण उसमे सवार सभी की जान बच गई। जबकि कोस्ट गार्ड का विमान जो कि तुलनात्मक रूप से छोटा था, उस में सवार 6 में से 5 लोगों की मौत हो गई। जहां एक ओर हादसे की जाँच की जा रही है वहीं जापान एयरलाइंस के यात्रियों को जीवित निकालने की प्रशंसा दुनिया भर में हो रही है।
इंटरनेट पर इस हादसे के जितने भी वीडियो दिखाई दे रहे हैं उनमें से किसी भी वीडियो में एक भी यात्री को अपना सामान साथ लिए नहीं देखा गया। ज़रा सोचिए कि अगर उस दुर्घटनाग्रस्त विमान के यात्री अपनी-अपनी सीट के ऊपर रखे सामान को निकालने की कोशिश करते तो ये कितना ख़तरनाक हो सकता था? यदि यात्री ऐसा करते तो विमान से बाहर निकालने की प्रक्रिया भी धीमी हो जाती। ग़ौरतलब है कि दुर्घटनाग्रस्त हुए विमान एयरबस 350 की स्थिति ने भी इवैकुएशन (आपात स्थिति में यात्रियों को निकालने की प्रक्रिया) को मुश्किल बना डाला।
अन्य आपात लैंडिंग की तरह यह लैंडिंग वैसी नहीं थी। वरिष्ठ पायलट कैप्टेन पी सिंह के अनुसार, “विमान आग की लपटों से घिरा हुआ था। ऐसे में विमान के क्रू ने समझदारी का प्रदर्शन करते हुए केवल तीन आपातकालीन दरवाज़े ही खोले। यदि अन्य आपातकालीन द्वार भी खोले जाते तो यात्रियों को आपात स्थिति में बाहर निकालने के लिए लगाए गए इन्फ्लैटेबल स्लाइड्स शायद ठीक से नहीं खुल पाते।”
हवाई यात्रा करने वाले यदि आपातकाल परिस्थितियों में इवैकुएशन की प्रक्रिया के बारे में सोच कर देखें तो उनके मन में भय और घबराहट आना स्वाभाविक है। जापान में जिस तरह से ये दो विमान आपस में टकरा कर आग में तब्दील हुए, हालात इससे कहीं अधिक बुरे हो सकते थे। वास्तविक स्थिति में ये सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है कि दुर्घटना या आपातकाल की स्थिति के समय यात्री नहीं घबराएंगे।
इसलिए फ्लाइट 516 के यात्रियों ने बिना घबराए जो कर दिखाया, उससे सभी को सबक़ लेने की ज़रूरत है। ऐसा संभव इसलिए हुआ क्योंकि विमान के क्रू और उनके निर्देशों का पालन कर रहे यात्रियों के बीच सही समन्वय था। विमान के चालक दल के सभी सदस्यों को इवैकुएशन और रेस्क्यू की कड़ी ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है। कमर्शल फ्लाइट्स में तैनाती से पहले विमान के क्रू को हफ़्तों तक चलने वाली ऐसी ट्रेनिंग लेनी अनिवार्य है। इतना ही नहीं, नियमों के अनुसार उन्हें ऐसी ट्रेनिंग हर साल लेनी पड़ती है।
इसके साथ ही विमान के क्रू को एक लिखित परीक्षा भी देनी पड़ती है। विमान हादसों की केस स्टडीज़ पर चर्चा भी होती है और अलग-अलग परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए प्रैक्टिकल ट्रेनिंग भी कराई जाती है। इसमें कई तरह के हालात को समझाया जाता है। जैसे कि पानी पर आपात लैंडिंग कराने की हालत में क्या किया जाना चाहिए। यदि विमान में आग लग जाए, तब क्या करना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि एविएशन के मानकों के तहत किसी भी यात्री विमान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता लेने के लिए, उसे बनाने वाली कंपनी को यह भी साबित करना पड़ता है कि ज़रूरत पड़ने पर विमान में सवार प्रत्येक व्यक्ति को विमान में लगे आधे आपातकालीन द्वारों का इस्तेमाल कर, मात्र 90 सेकेंड में सुरक्षित बाहर निकाला जा सकता है। ऐसे में इवैकुएशन टेस्ट के समय कभी-कभी असली यात्रियों का भी इस्तेमाल किया जाता है।
2024 की शुरुआत में जापान के हानेडा अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट पर जो हुआ वह एक अच्छी ट्रेनिंग और जापानी यात्रियों के संयम और आपात स्थिति का सामना करने की गंभीरता के चलते ही संभव हुआ। यहाँ एक सवाल उठता है कि क्या ऐसे हादसों से दुनिया भर के अन्य यात्री, फिर वो चाहे हवाई यात्री हों या अन्य साधनों से यात्रा करने वाले, क्या कोई सबक़ लेंगे? क्या विमान, रेल, मेट्रो या बस में सफ़र करते समय सभी यात्री आपात सुरक्षा निर्देशों को गंभीरता से लेंगे और उनका पालन बिना घबराए करेंगे? कोई भी हादसा या दुर्घटना पूर्व नियोजित नहीं होते। इसलिए ऐसी अनहोनी का सामना करने के लिए यदि हम तैयार रहेंगे तो न सिर्फ़ हम अपनी जान बचा सकेंगे बल्कि औरों की जान बचाने में मददगार साबित होंगे।