अकेलापन तो जानलेवा बीमारियां

अकेलापन तो जानलेवा बीमारियां

सोशल आइसोलेशन और दीर्घकालिक अकेलापन, मानव शरीर पर एक जैसा असर डालते हैं। इनसे इमोशनल हेल्थ बिगड़ने के साथ शारीरिक स्वास्थ्य खराब हो जाता है। लोग धीरे-धीरे डॉयबिटीज, ब्लड प्रेशर, हाई-कोलोस्ट्रॉल और कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। ऐसा नहीं ये बीमारियां एकदम हो जायें, इनकी शुरूआत होती है अकेलेपन की वजह से पनपे मेन्टल स्ट्रेस, नींद न आने (इन्सोमनिया), एंग्जॉयटी और डिप्रेशन से। 

अकेलापन अपने आप में कोई बीमारी नहीं, बल्कि कभी-कभार अकेला रहना सेहत के लिये अच्छा है। सोचने का समय मिलता है। लोग छुट्टी लेकर अकेले समय बिताने जाते हैं और वापस आते हैं नयी ऊर्जा के साथ। लेकिन अकेले रहना और अकेलेपन का अहसास दोनों अलग बातें हैं। आप भले ही अकेले रहते हों लेकिन जब तक अकेलापन फील न हो आप अकेले नहीं हैं। बीमारियां घेरती हैं अकेलापन फील करने से, लेकिन दो-चार दिन के अकेलेपन से नहीं बल्कि लम्बे समय तक अकेलापन फील करने से। मेडिकल साइंस में इसे कहते हैं क्रोनिक लोनलीनेस यानी दीर्घकालिक अकेलापन। यह उन नकारात्मक भावनाओं को बढ़ाता है जो पैदा होती हैं सामाजिक जुड़ाव की जरूरतें न पूरी होने से। जहां अपनी मर्जी से अकेले समय बिताने में अच्छा फील होता है वहीं दीर्घकालिक अकेलापन मानसिक रूप से व्यथित कर दिमाग में निगेटीविटी भर देता है। 

सोशल आइसोलेशन और दीर्घकालिक अकेलापन, मानव शरीर पर एक जैसा असर डालते हैं। इनसे इमोशनल हेल्थ बिगड़ने के साथ शारीरिक स्वास्थ्य खराब हो जाता है। लोग धीरे-धीरे डॉयबिटीज, ब्लड प्रेशर, हाई-कोलोस्ट्रॉल और कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। ऐसा नहीं ये बीमारियां एकदम हो जायें, इनकी शुरूआत होती है अकेलेपन की वजह से पनपे मेन्टल स्ट्रेस, नींद न आने (इन्सोमनिया), एंग्जॉयटी और डिप्रेशन से। 

लम्बे समय तक अकेले रहने से इनर्जी कम हो जाती है, नींद नहीं आती। लोग, ब्रेन फॉग का शिकार हो जाते हैं। सोचने-समझने की शक्ति धुंधलाने से ध्यान केन्द्रित करने में परेशानी होती है। भूख कम हो जाती है। एंग्जॉयटी, बेचैनी और डिप्रेशन हावी होने लगता है। आत्मविश्वास नहीं रहता। नशे की लत लग जाती है। शरीर में दर्द रहता है और बार-बार बीमार पड़ने लगते हैं। 

कॉम्प्लीकेशन होते हैं अकेलपन से

अकेलापन फील करने वाले ज्यादातर युवा वयस्कों की नींद डिस्टर्ब रहती है। वे गहरी नींद नहीं सोते। जिससे स्वभाव चिड़चिड़ा और प्रवृत्ति हिंसक हो जाती है। सन् 2012 में हुई एक रिसर्च से सामने आया कि दीर्घकालिक अकेलेपन से मोटापा, डॉयबिटीज, ब्लड प्रेशर, हाई-कोलोस्ट्रॉल, हार्ट डिजीज, स्ट्रोक, अल्जाइमर और सडन डेथ का रिस्क बढ़ता है। 

सन् 2018 में एक और रिसर्च हुयी जिसमें 639 वृद्ध वयस्क शामिल थे। इस शोध से पता चला कि अकेलापन हो या सामाजिक अलगाव दोनों के कारण लोग क्रोनिक बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। यह भी देखा गया कि 65 से ज्यादा उम्र के लोगों में अकेलेपन के स्ट्रेस से डिप्रेशन और संज्ञानात्मक गिरावट (कॉग्नीटिव डिक्लाइन) का रिस्क कई गुना बढ़ गया।        

क्रोनिक अकेलेपन के कोई ऐसे लक्षण नहीं होते जो देखते ही नजर आयें और इसकी पुष्टि हो जाये। चूंकि इससे हमारी भावनात्मक और शारीरिक हेल्थ प्रभावित होती है इसलिये मनोचिकित्सक मरीज से बात करके, उसकी चाल-ढाल देखकर समझ जाते हैं कि वह इस समय जिस मनोदशा से गुजर रहा है उसकी वजह दीर्घकालिक अकेलापन है या कुछ और। अगर आप लम्बे समय से अकेले हैं और ऊपर दिये लक्षणों में से दो से अधिक लक्षण महसूस हों तो मनोचिकित्सक से मिलें।  

इलाज क्या है इसका?

अकेलापन कोई ऐसी बीमारी नहीं कि एक गोली खायी और सब ठीक। हां, इसके लक्षणों जैसे नींद न आना, एंग्जॉयटी, स्ट्रेस इत्यादि को कंट्रोल करने और इसकी वजह से हुयी कार्डियोवैस्कुलर, डॉयबिटीज या अन्य बीमारियों के इलाज में दवाओं का इस्तेमाल होता है। मेडिकल साइंस के मुताबिक अकेलेपन से निपटने के सबसे कारगर उपाय हैं काउंसलिंग और कॉग्नीटिव बिहैवियरल थेरेपी। इनमें से कौन सा तरीका काम करेगा यह निर्भर होता है अकेलेपन के कारण पर।  

बहुत से लोग अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं जॉब और शहर बदलने पर। उन्हें हमेशा अपना पुराना शहर और ठिकाने याद आते हैं। कइयों के दोस्त तो बहुत होते हैं लेकिन उनमें कोई ऐसा नहीं होता जिससे वे अपने दिल की बात कर सकें। कई बार कम आत्म-सम्मान, सामाजिक चिंतायें और आत्म-संदेह की भावना भी रिश्ते बनाने में बाधक होती है। मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझने वाले भी अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में थेरेपी और काउंसलिंग अकेलापन दूर करने में मदद करती है।  

यदि आप अकेलेपन के वास्तविक कारण से अन्जान हैं तो भी थेरेपी इसके संभावित कारणों को कम करने में मदद करेगी। हां, अकेलेपन से निपटना उस स्थिति में कठिन होता है जब आपको पता ही न हो कि आपके साथ या आपके आसपास क्या घट रहा है। ऐसे में मनोचिकित्सक की सलाह लें। मनोचिकित्सक उस स्थिति का पता लगाने में मदद करेगा जो अकेलेपन की भावना को बढ़ा रही है।

लाइफस्टाइल में ये बदलाव करें?

अकेलेपन से निपटने के लिये मनोचिकित्सक के पास जाने से पहले लाइफस्टाइल स्टाइल में कुछ बदलाव करें। हालांकि इन बदलावों से मानसिक स्वास्थ्य या रिश्तों को लेकर हो रही चिंताएं दूर नहीं होंगी लेकिन ये दूसरों के साथ अधिक जुड़ाव महसूस कराने में मदद अवश्य करेंगे।      

अपने प्रियजनों के सम्पर्क में रहें। अगर अभी-अभी स्थानांतरित हुए हैं, तो मित्रों और परिवार से साप्ताहिक रूप से बात करने का प्रयास करें। आज की तारीख में स्काइप, व्हाट्सअप, स्नैपचैट और फेसबुक मैसेंजर जैसे ऐप आपको वीडियो के माध्यम से संवाद करने की सुविधा देते हैं। हालांकि यह व्यक्तिगत संपर्क के समान नहीं होता लेकिन यह याद रखने में मदद करता है कि जिन लोगों से आप प्यार करते हैं वे अभी भी आपके लिए हैं।

सामुदायिक कार्यक्रमों में भाग लें। समाज में अपनी रूचि के क्षेत्र खोजें और उनमें शामिल होने का प्रयास करें। यदि आपके पास पर्याप्त खाली समय है, तो उन चीज़ों के बारे में सोचें जिन्हें आप हमेशा से करना चाहते थे। जैसे नृत्य, संगीत, पेंटिंग बगैरा। इंटरनेट के जरिये अपने समुदाय में समान रुचियों वाले लोगों से मेल-जोल बढ़ायें।  

घर से बाहर निकलना शुरू करें। टीवी या लैपटॉप पर फिल्में देखने के बजाय कभी-कभी स्थानीय थियेटर का रूख करें। लक्ष्य बनायें कि जब भी बाहर जायेंगे तो कुछ नये लोगों से हैलो-हाय करेंगें। लोगों से अभिवादन करते समय चेहरे पर मुस्कराहट लायें। सम्भव हो तो कोई पालतू जानवर (कुत्ता-बिल्ली)  पालें। घर में एक जीवित प्राणी आने से पूर्णता महसूस होगी। दुनिया के साथ जुड़ाव की भावना बढ़ेगी। शोध से सामने आया कि पालतू जानवर अकेलापन कम करने के अलावा स्ट्रेस और एंग्जॉयटी दूर करने में मदद करते हैं। इन्हें घुमाने से नए लोगों से मिलने की संभावना भी बढ़ती है।

अकेलेपन को सजा न समझें। इसे सहजता से लें। अगर अकेले समय बिताना अच्छा लगता है तो भी हर समय अकेले न रहें। दूसरों के साथ कम ही सही, सम्पर्क जरूर रखें।

संतुष्टिदायक गतिविधियाँ चुनें। पसंदीदा टीवी शो देखें, विशेषरूप से कॉमेडी शो मूड पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं, इन्हें प्राथमिकता दें। संगीत सुनने या किताब पढ़ने से मन-मष्तिष्क पर सकारात्मक असर होता है। रचनात्मक गतिविधियों में रूचि लें। खाली समय में बागवानी करें। व्यायाम के लिए समय निकालें। शोध से सिद्ध हुआ है कि व्यायाम का मानसिक स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। हालाँकि व्यायाम अपने आप अकेलेपन से राहत नहीं दे सकता लेकिन यह मूड को समग्र रूप से बेहतर बनाने में मदद करता है।   

बाहर का आनंद लें। सूरज की रोशनी से शरीर में सेरोटोनिन बढ़ता है जिससे मूड अच्छा होता है। शोध से पता चला कि प्रकृति में समय बिताने से डिप्रेशन, एंग्जॉयटी और स्ट्रेस की भावनाओं से राहत मिलती है। ग्रुप वॉक या टीम स्पोर्ट्स में शामिल हों। इससे स्वास्थ्य बेहतर होने के साथ दूसरों से जुड़ने में मदद मिलेगी। 

डॉक्टर से मिलना कब जरूरी?

डॉक्टर से मिलना कुछ स्थितियों में जरूरी हो जाता है जैसे लाइफस्टाइल बदलने के बाद भी अकेलेपन की भावनाऐं दैनिक जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करें और जो काम आप करना चाहते हैं उन्हें करना कठिन बना दें। ज्यादातर समय मूड खराब रहे, कुछ भी अच्छा न लगे या डिप्रेशन महसूस हो। स्ट्रेस और एंग्जॉयटी से लम्बे समय तक नींद डिस्टर्ब रहे। डिप्रेशन की भावना हफ्तों बाद भी दूर न हो और मन में आत्महत्या के विचार आने लगें।     

याद रहे, अकेलापन कोई मेन्टल हेल्थ कंडीशन नहीं है और न ही इसके इलाज का कोई निश्चित प्रोटोकॉल है। ऐसे में कई बार इससे बाहर निकलना थोड़ा मुश्किल हो जाता है खासतौर पर उन लोगों के लिये जो स्वभाव से अंतर्मुखी और शर्मीले होते हैं। ऐसे लोगों के लिये जरूरी है कि वे डॉक्टर की सलाह लें और जितनी जल्द हो सके अकेलेपन की नकारात्मकता से बाहर निकलें।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें