मोदी क्यों नहीं वहा राहुल की तरह कांफ्रेस करते?

मोदी क्यों नहीं वहा राहुल की तरह कांफ्रेस करते?

अब मोदी अमेरिका जा रहे हैं। राहुल ने तो कह दिया 56 इंच की छाती खत्म हो गई। अगर देश में अपने भक्तों को विश्वास दिलाना है कि नहीं वह छाती है तो अमेरिका में एक प्रेस कान्फ्रेंस कर लें। जैसे नेता प्रतिपक्ष वहां पत्रकारों के हर सवाल का जवाब दिया वैसे नेता पक्ष भी दे लें। दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा कि मोदी प्रेस से नहीं डरते! देखो अमेरिका में जवाब दे रहे हैं।

राहुल गांधी का अमेरिका दौरा बहुत सफल रहा। इसका सबसे बड़ा पैमाना यह कि भारत में पिछले तीन दिन मोदी सरकार के मंत्री, पार्टी भाजपा, गोदी मीडिया अंध भक्तों को साथ मायावती को भी राहुल को ट्रोल करने के लिए कूदना पड़ा। झूठ गलतबयानी का गंदा नाला बहा दिया गया। मगर क्या हुआ?

वे अमेरिका में तो छा गए। नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद यह उनका यह पहला विदेश दौरा था। अमेरिका में राष्ट्रपति पद के दोनों उम्मीदवारों डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस के साथ वहां की वतर्मान सरकार भी यह देखने के लिए उत्सुक थी कि भारत के नेता प्रतिपक्ष का वहां रह रहे भारतियों, अमेरिकी राजनीतिक सर्किल और पढी लिखी सोसायटी में कैसा स्वागत होता है।

भारतीयों ने तो डलास एयरपोर्ट पर भारी संख्या में पहुंचकर इंडिया इंडिया के नारों के साथ  उनका भव्य स्वागत किया। बाद में राहुल ने भारतीय प्रवासियों को एक बड़े कार्यक्रम में संबोधित किया। उनसे बतचीत की। दो विश्वविद्यालयों में वे गए। और वहां भारी तादाद में स्टूडेंट और टीचर उनको सुनने और उनसे बातचीत करने आए। अमेरिकी सांसद उनसे मिले। और सबसे बड़ी बात कि पिछले अमेरिकी दौरे की तरह इस बार फिर उन्होंने नेशनल प्रेस क्लब में प्रेस कान्फ्रेंस की।

सिर्फ अमेरिकी नहीं वहां दुनिया भर का पत्रकार होता है और वह देख रहा था कि भारत का प्रतिपक्ष का नेता तो हमसे मिल रहा है जैसे दुनिया के बाकी बड़े नेता भी मिलते हैं। मगर भारत के प्रधानमंत्री तीन बार जीतने के बाद भी एक बार भी हमसे नहीं मिले। यह एक रिकार्ड है कि किसी देश का शासनाध्यक्ष वहां  एक बार भी प्रेस से नहीं मिला हो। अन्तरराष्ट्रीय पत्रकार और राजनयिक जानना चाहते हैं कि किसी भी देश का सरकार प्रमुख और नेता प्रतिपक्ष जिसे वहां शेडो प्राइम मिनिस्टर भी कहते हैं दुनिया के अहम मुद्दों के बारे में क्या विचार रखता है। और भारत के इन दोनों संवैधानिक पदों वालों प्रधानमंत्री और नेता प्रतिपक्ष से तो अमेरिका और पश्चिमी देश हमेशा यह जानना चाहते हैं कि वे चीन के बारे में क्या रुख रखते हैं।

अमेरिकी और पश्चिमी देशों ( नाटो) की समस्या अब रूस नहीं उसे तो उन्होंने यूक्रेन के साथ उलझा दिया है। चीन है। चीन किसी युद्ध में उलझे बिना अपनी विस्तारवादी योजनाओं को कामयाब करता जा रहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चीन की दी क्लीन चिट चीन के लिए बहुत बड़ा सर्टिफिकेट है। उसे ही दिखाकर वह अमेरिका और पश्चिमी देशों से कहता है कि हमारे पड़ोसी देश भारत के प्रधानमंत्री ने तो साफ कहा है कि यहां न कोई घुसा है और न कोई है। आप लोग क्या सेटेलाइट से गलत गलत तस्वीरें दिखाते रहते हैं कि चीन ने भारत के इतने इलाकों में कब्जा कर लिया। गांव बसा लिए सड़कें बना लीं। भारत की सरकार तो कुछ कहती नहीं हैं। आप लोग कहते रहते हैं। और एक वहां का कांग्रेस के नेता राहुल गांधी। मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त! चीन कहता है नहीं चलेगा !

अब सवाल तो यह है कि देश में यह सब प्रधानमंत्री मोदी से किए जाने चाहिए। मगर भाजपा मीडिया राहुल गांधी से पूछते हैं कि वहां टी शर्ट क्यों नहीं पहनी? हालांकि वे यहां से टी शर्ट पहन कर ही रवाना हुए थे और वहां टी शर्ट पहन कर ही उतरे थे। मगर और कोई सवाल लायक दिमाग उनका बचा नहीं है सब नफरत और विभाजन में फ्रीज हो गया तो उनके कपड़े, एक एक शब्द, पूरा वाक्य भी नहीं और जो नहीं कहा उस पर और जो कहा है उसका भ्रामक अर्थ बताकर वे देश की जनता में फिर राहुल विरोधी माहौल बनाना चाहते हैं।

मगर जैसा कि खुद राहुल ने कहा कि वह सब अब अतीत की बातें हो गईं। अमेरिका से राहुल का सबसे बड़ा मैसेज यही है। है तो भारत के लिए मगर दुनिया भी सुनेगी। हालांकि दुनिया के लिए मोदी का करिश्मा कभी था ही नहीं। वे महान भारत के प्रधानमंत्री हैं तो जो इस देश के प्रधानमंत्री होने के नाते सम्मान मिलना चाहिए था वह उन्हें मिलता है। देवगौड़ा को भी मिला, चौधरी चरण सिंह को भी, चन्द्रशेखर को भी। लेकिन भारत के प्रधानमंत्री के नाते और फिर अपनी शख्सियत, शिक्षा, लेखकीय प्रतिभा और आजादी के आन्दोलन का नेतृत्व करने के कारण नेहरू ने कमाया उसका तो शतांश भी इन्हें नहीं मिल सकता। ढोल चाहे जितना पीटें की तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नेहरू के बराबर हो गए मगर जैसे कोई ब्रेडमेन के बराबर टेस्ट खेलकर या उनसे ज्यादा खेलकर उनके बराबर नहीं हो सकता। या पेले के मुकाबले ओलंपिक में जाकर पेले के बराबर भी नहीं हो सकता वैसे ही नेहरू के कद को पाने का सवाल ही नहीं पैदा होता।

तो विदेशों में कुछ नहीं था। केवल भारत था और भारत रहेगा। मगर राहुल का यह कहना कि 56 इंच की छाती और मेरी ईश्वर से डायरेक्ट बात होती है अब सब अतीत की चीज हो गई। भारत में प्रधानमंत्री मोदी को और उनसे डर रहे मीडिया को और मोदी के बने अक्ल से अंधे भक्तों को यही बात सबसे नागवार लग रही है। भाजपा और आरएसएस में तो हो सकता है इस बात को लेकर थोड़ी खुशी हो कि मोदी की व्यक्तिगत राजनीति और महिमामंडन पर राहुल ने सही चोट की है मगर वे फिलहाल बोल नहीं सकते। डर उनमें भी है तो खुद उपत कर ( अपने आप, मनॉ से) मोदी का बचाव नहीं कर रहे हैं। मगर मीडिया और भक्त राहुल के पीछे लगे पड़े हैं।

राहुल ने कहा कि 240 आने के बाद इनका डर खत्म हो गया है। और यह भी बताया कि 240 भी कैसे आईं। चुनाव आयोग, मीडिया, सारे वित्तिय साधन और हर संवैधानिक इन्स्टिट्यूशन कब्जे में कर लिए थे। वह तो मैं संविधान हाथ में लेकर निकला तो देश के दलित, पिछड़े, आदिवासी, गरीब कमजोर वर्ग की समझ में आया कि वह संविधान जिसकी वजह से ही हमें यह वोट देने का अधिकार मिला हुआ है वही हाथ से निकला जा रहा है। वोट देने के अधिकार को तो बचाना होगा। और इसी अधिकार को बचाने के लिए लोगों ने अपने डर पर जीत हासिल कर ली।

राहुल का यह डरो मत का नारा सफल हुआ। इसी से बौखला कर वे अब राहुल को आरक्षण पर घेरने लगे। डर मूलत: दलित, आदिवासी, पिछड़े, गरीब कमजोर का ही खत्म हुआ। और इसी वर्ग को फिर बरगलाने के लिए वे यह गलत प्रचार करने लगे कि राहुल आरक्षण खत्म करना चाहते हैं।

राहुल ने इस झूठे प्रचार के अगले दिन प्रेस कान्फ्रेंस में कहा ताकि किसी को कुछ पूछना हो तो पूछ ले, स्थिति स्पष्ट हो जाए कि उन्होंने आरक्षण खत्म करने की बात कहीं नहीं कही। बल्कि यह कहना था कि इतना समर्थ हो जाना चाहिए। राहुल ने कहा कि वे तो 50 प्रतिशत से उपर आरक्षण की मांग कर रहे हैं।

ये ठीक वैसा ही है कि बुत हमसे कहें काफिर! राहुल हाथ में संविधान लिए घूमे ही इस वास्ते थे कि उसमें दिए आरक्षण की रक्षा हो सके। जाति गणना की बात और कौन कर रहा है? राहुल की दलित आदिवासी पिछड़े में बढ़ती स्वीकार्यता ने ही प्रधानमंत्री मोदी को परेशान कर दिया।

अब मोदी अमेरिका जा रहे हैं। राहुल ने तो कह दिया 56 इंच की छाती खत्म हो गई। अगर देश में अपने भक्तों को विश्वास दिलाना है कि नहीं वह छाती है तो अमेरिका में एक प्रेस कान्फ्रेंस कर लें। जैसे नेता प्रतिपक्ष वहां पत्रकारों के हर सवाल का जवाब दिया वैसे नेता पक्ष भी दे लें। दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा कि मोदी प्रेस से नहीं डरते! देखो अमेरिका में जवाब दे रहे हैं।

और अगर उससे पहले प्रेक्टिस करना है तो यहां एक नेशनल प्रेस कान्फ्रेंस कर लें। सरकार का सूचना प्रसारण मंत्रालय ही आयोजित करता है इसको। विज्ञान भवन में होती है। पूरे देश का पत्रकार आता है। विदेशी भी। हर प्रधानमंत्री करता था। वाजपेयी ने एक की थी। मनमोहन सिंह जिन्हें इन्होंने मौन कहकर ट्रोल किया उन्होंने दो की थीं। गोदी मीडिया को कहना चाहिए भगवन एक यहां कर लें बाकी किसी को आने नहीं देना और हम कुछ पूछेंगे नहीं। प्रेक्टिस हो जाएगी और फिर बस वहां अमेरिका जाकर राहुल को धो देना!  बहुत वहां की मीडिया राहुल राहुल कर रही है। बता आना कि आप भी हर सवाल का जवाब दे सकते हैं। पूछो क्या पूछना है!

Published by शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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