आडवाणी, डा जोशी से भला क्या दिक्कत?

आडवाणी, डा जोशी से भला क्या दिक्कत?

भारत में वरिष्ठ जनों का हमेशा सम्मान होता रहा है। मगर दक्षिणपंथी और प्रतिक्रियावादी शोर मचाए होते हैं हम संस्कारी है। बुजुर्गों का बहुत सम्मान करते हैं। उनकी सेवा करते हैं। मगर सच्चाई वही होती है जो अभी भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने आडवाणी और डा जोशी को राम मंदिर को न्यौता यह कहते हुए दिया कि भाईसाहब आप आने की तकलीफ नहीं करना। आपको परेशानी होगी।….बहरहाल, निराश होने का कोई कारण नहीं। समय है चला जाएगा। हमारा एक दोस्त पत्रकार कहता है कि जब अच्छा समय नहीं रहा तो बुरा भी नहीं रहेगा!

दक्षिणपंथ और प्रतिक्रियावाद किसी परंपरा, संस्कृति, तमीज, तहजीब, नियम,कानून को नहीं मानता। हालांकि सबसे ज्यादा इन शब्दों का उपयोग वही करताहै। मगर लोगों को भरमाने के लिए। लोग शब्दों में उलझ जाते हैं और उसी केआइने में इन ताकतों का गुणगान करते रहते हैं। मगर दक्षिणपंथियों औरप्रतिक्रयावादियों के लिए शब्द पवित्र नहीं बल्कि जुमले होते हैं औरउन्हें जनता को इनमें फंसाए रखने में महारत हासिल होती है।

दक्षिणपंथीबुजुर्गों के सम्मान की सबसे ज्यादा बातें करते हैं। मगर यहां अपनेवरिष्ठों के सम्मान से आगे की बात है। जिन्होंने सही या गलत जो भी होअपनी राजनीति के हिसाब से राम मंदिर आंदोलन शुरू किया और उसे बाबरीमस्जिद गिराने तक पहुंचाया जिसकी दम पर आज केन्द्र में वाजपेयी के बादभाजपा के दूसरे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बैठे हुए हैं। उन्हींलालकृष्ण आडवानी और मुरली मनोहर जोशी से कह दिया गया है कि आप राम मंदिर केउद्घाटन में नहीं आएं! आप की उम्र ज्यादा हो गई है। जोशी जी तो अभी पूरीतरह फिट हैं और भाजपा को कोई नेता गलती से उनके पास चला जाता है तो उसकेसाथ खूब हंसते हुए फोटो आते हैं। यह अलग बात है कि उस नेता का फिरमुख्यमंत्री की लिस्ट से नाम कट जाता है।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में सबसे आगे चल रहे प्रहलादपटेल विधानसभा जीतने के बाद जोशी जी से मिलने चले गए। और इसका परिणाम यहहुआ कि भाजपा ने तत्काल दूसरे ओबीसी मोहन यादव को मुख्यमंत्री बना दिया।इससे अलग बात यह है कि अभी कुछ समय पहले जब पुराना संसद भवन चलता था वे वहां आए थे। और पहले की तरह खूब देर करीब आधा पौन घंटे गलियारे में खड़ेहोकर हमेशा की तरह पत्रकारों से बात की।

लेकिन भाजपा के दोनों महारथियों से कह दिया गया है कि आप कष्ट न करें।जबकि इन्हीं की तरह बुजुर्ग और नए दोस्त बने पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ाको सादर आमंत्रित किया गया है। क्योंकि उनके होने से मोदी जी के आभामंडलपर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा। पड़ेगा तो आडवानी और जोशी से भी नहीं।मगर फिर भी कहीं लोगों को याद न आ जाए कि इस आंदोलन को शुरू करने वालेमोदी जी नहीं आडवानी, जोशी, उमा भारती, विनय कटियार थे।

आज आडवानी और जोशी को वैसे ही निस्तेज कर दिया गया है जैसे प्रवीणतोगडिया को। बस फर्क इतना है कि तोगड़िया को बुलाया जाता है, मना कियाजाता है यह भी खबर नहीं मगर आडवानी और जोशी को आने से मना किया गया है, यहखबर है। भारत ऐसा देश नहीं है। यहां वरिष्ठ जनों का हमेशा सम्मान होता रहा है।मगर जैसा कि हमने लिखा कि सबसे ज्यादा दक्षिणपंथी और प्रतिक्रियावादीइसका शोर मचाए रहते हैं कि हम बुजुर्गों का बहुत सम्मान करते हैं। हम संस्कारी है। उनकीसेवा करते हैं। मगर सच्चाई वही होती है जो अभी भाजपा के केन्द्रीयनेतृत्व ने बताई कि भाईसाहब आप आने की तकलीफ नहीं करना। आपको परेशानीहोगी।

हमारे यहां समाज में भी लोग जिसे नहीं चाहते कि वह शुभ काम में जलसे मेंआए उससे यही कहा जाता है कि अरे आप कहां? घर से ही आशीर्वाद देना आनेजाने में आपको तकलीफ होगी! मगर ऐसा सब लोग नहीं करते हैं। जो सेवा करतेहैं, कर रहे हैं, पुण्य लाभ कमा रहे हैं, दुआएं ले रहे हैं ऐसी लफ्फाजीनहीं करते हैं वे वाकई बड़ों का सम्मान करते हैं, उनका ख्याल रखते हैं।

आडवानी का वह फोटो आपने देखा होगा जब राहुल गांधी हाथ पकड़कर उन्हेंसहारा दे रहे हैं। ऐसे ही संसद के सेन्ट्रल हाल में जिसे खत्म कर दियागया वहां आडवानी के पास कोई नहीं बैठा। मोदी अलग खड़े हुए हैं। वहां राहुल, आडवानी के पास बैठकर उनकी सुनते हैं। ध्यान देने की बात यह है किजैसे की अनुभवी, वरिष्ठजन से अपनी बात नहीं कहना चाहिए उनकी सुनना चाहिएवैसे ही राहुल उनकी सुन रहे हैं।

और यह पता नहीं कितने लोगों को मालूम है, मगर ऐतिहासिक तथ्य है कि जीवनभर नेहरू का विरोध करते रहे लोहिया ने कहा था जो अकेले थे, अविवाहित किअगर में बीमार पड़ जाऊं तो मेरी सबसे अच्छी देखभाल इन्दिरा के यहां होगी।और यह तथ्य तो खुद वाजपेयी ने राजीव गांधी की हत्या के बाद बताया था कि उनके हार्ट के आपरेशन के लिए राजीव ने उन्हें अमेरिका भेजा था। भारतीय संस्कार यह होते हैं। बिना यह सोचे देखे कि कौन क्या है, किसपार्टी में है, हमारे या हमारे परिवार के साथ क्या किया वरिष्ठों कीजरूरत पर उनके साथ खड़ा होना। नेहरू गांधी परिवार इन सब चीजों का ढोल नहीं पीटता। चुपचाप जो सही है। परिवार से सीखा है करता रहता है। सोनियागांधी उन सुषमा स्वाराज के न रहने पर उनके घर गईं थी जिन्होंने सोनिया परसबसे भद्दा बयान दिया था कि सिर मुंढवा लूंगी, चना चबैना खाऊंगी, भूमिशयन करूंगी, श्वेत वस्त्र पहनुंगी अगर सोनिया प्रधानमंत्री बन गईं तो।

तो ये बातें आज भले जनता की समझ में न आएं कल आएंगी। आज तो चारों तरफ हिन्दू- मुसलमान का ऐसा विषेला घुंआ फैला रखा है कि जनता को उसमें कुछ दिखता हीनहीं है। मगर कोई भी धुंआ, कालिमा हमेशा नहीं रहती। छटेगी। आज आडवानी, जोशी को आने से मना किया मुद्दा नहीं बन रहा। कोई नहीं बनरहा। 141 सांसदों को रिकार्ड जो आज तक इतिहास में नहीं हुआ पूरे सत्र केलिए निकाल दिया यह भी मुद्दा नहीं बन रहा। बेरोजगारी जिससे हर नौजवानत्रस्त है वह भी नहीं, महंगाई, झूठ अहंकार और अब यह पूरी तरह तानाशाहीकोई भी नहीं।

मगर कब तक?

हिटलर, मुसोलनी का शासन याद कीजिए। वह तो पूरी दुनिया को चैलेंज कर रहेथे। क्या हुआ? रामायण महाभारत से देखिए। वहां तो कैसे शक्तिशाली लोग थे!लेकिन इतिहास बताता है कि झूठ, दंभ, अहंकार, सत्ता के दुरुपयोग, नफरत,विभाजन का अंत निश्चित है। सत्य ही शाश्वत है। भारत का जो आदर्श वाक्य है“सत्य मेव जयते” जब तक वह नहीं बदल दिया जाता तब तक आप विश्वास रख सकतेहै कि सत्य जीतेगा।

इन्डिया गठबंधन अब एक बड़ी आस है। और खुद भाजपा भी। जिस तरह आडवानी औरजोशी को आने से मना किया गया उसने भाजपा और संघ परिवार को मन ही मन तो हिलाया होगा। संसद में चाहे डरते हुए ही सही मगर भाजपा के सांसद यह आपस में बातें कररहे थे जब अपनो को ही नहीं बख्शा तो विपक्षियों की तो बात क्या? जोशी सेभाजपा के कुछ लोग नाराज हो सकते हैं। वे काम नहीं करते थे। मगर आडवानी तोभाजपा में एक ऐसी शख्सियत हुए जिनसे कोई भाजपा, संघ वाला एक रत्ती भीनाराज नहीं मिलता। और न कोई ऐसा मिलता है जिसका कोई न कोई काम आडवानी नेनहीं किया हो।

याद रखिए घड़ा अचानक फूटेगा। कारण कोई भी कुछ भी बन सकता है! देश का पूरा लोकतंत्र आज खतरे में है। सिर्फ एक व्यक्ति का राज चल रहाहै। और उसकी जद में खुद उसकी पार्टी भी आई हुई है। पार्टी की मातृ संस्थासंघ भी। क्या 2014 से पहले संघ जितना ताकतवर था आज उतना है? कमजोर विपक्ष भी है। मगर विपक्ष विपक्ष होता है। कितना ही कमजोर हो जाए लड़ता हैऔर मंगलवार को इंडिया गठबंधन ने तो बहुत ताकत के साथ अपनी धमक दिखाई है।निराश होने का कोई कारण नहीं। समय है चला जाएगा। हमारा एक दोस्त पत्रकारकहता है कि जब अच्छा समय नहीं रहा तो बुरा भी नहीं रहेगा!

Published by शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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