यह तो संविधान का अपमान

यह तो संविधान का अपमान

जहां तक संविधान के अपमान की बात है तो कांग्रेस और उसके इंडी गठबंधन के नेता लगातार संवैधानिक संस्थाओं की शुचिता भंग कर रहे हैं। विपक्ष के ज्यादातर सांसदों ने संविधान हाथ में लेकर बेहद नाटकीय तरीके से शपथ ली लेकिन शपथ लेने के साथ ही संविधान की पवित्रता नष्ट करने लगे। ऐसा लग रहा है कि विपक्षी पार्टियों के लिए संसदीय परंपराओं और नियमों का कोई मतलब नहीं है।

एस. सुनील

नई लोकसभा के गठन के बाद संसद का दूसरा सत्र चल रहा है। पहले सत्र में सांसदों की शपथ हुई थी, राष्ट्रपति का अभिभाषण हुआ था और फिर सरकार की ओर से पेश धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा हुई थी। कह सकते हैं कि यह कई सारी औपचारिकताओं वाला सत्र था। दूसरा सत्र 22 जुलाई से शुरू हुई, जिसके दूसरे दिन 23 जुलाई को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश किया। उसके बाद बजट पर चर्चा चल रही है। दोनों सत्रों में विपक्ष का आचरण देख कर ऐसा लगा कि विपक्षी पार्टियां जनादेश और संविधान दोनों का अपमान कर रही हैं। विपक्ष का आचरण ऐसा है, जैसे देश के मतदाताओं ने उसे मनमर्जी करने के लिए चुना है। हकीकत यह है कि देश के मतदाताओं ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए को बहुमत दिया है और कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडी गठबंधन को विपक्ष में बैठने का जनादेश दिया है। लेकिन कांग्रेस नेता इस बात को समझने को राजी नहीं हैं। कांग्रेस को समझना चाहिए कि उसे एक सौ में 99 सीटें नहीं मिली हैं, बल्कि 543 में 99 सीटें मिली हैं, जो कुल संख्या के 20 फीसदी से भी कम है। दूसरी ओर भाजपा को 240 सीटें मिली हैं, जो लोकसभा की कुल संख्या का 45 फीसदी है। भाजपा की सीटें कम होने के बाद भी उसको इतनी सीटें मिली हैं, जितनी कांग्रेस को पिछले तीन चुनावों को मिला कर नहीं मिली हैं। इसके बावजूद वह पूर्ण बहुमत से चुनाव जीते गठबंधन की सरकार को संविधानसम्मत तरीके से काम करने से रोक रही है। 

जहां तक संविधान के अपमान की बात है तो कांग्रेस और उसके इंडी गठबंधन के नेता लगातार संवैधानिक संस्थाओं की शुचिता भंग कर रहे हैं। विपक्ष के ज्यादातर सांसदों ने संविधान हाथ में लेकर बेहद नाटकीय तरीके से शपथ ली लेकिन शपथ लेने के साथ ही संविधान की पवित्रता नष्ट करने लगे। ऐसा लग रहा है कि विपक्षी पार्टियों के लिए संसदीय परंपराओं और नियमों का कोई मतलब नहीं है। वे हर परंपरा तोड़ने में लगे हैं। इसी तरह उनके लिए आसन का भी कोई मतलब नहीं है और न प्रधानमंत्री पद के लिए उनके मन में सम्मान का भाव है। वे ऐसा मान रहे हैं जैसे भाजपा की सीटें कम हो गईं तो अब श्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री नहीं मानना चाहिए। यह कितनी हैरानी की बात है कि कांग्रेस के शीर्ष नेता कई बार कह चुके हैं कि इस बार के नतीजे श्री नरेंद्र मोदी की नैतिक और राजनीतिक हार हैं। सवाल है कि जब श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए को 293 सीटें मिलीं, जो बहुमत से 21 ज्यादा है तो यह हार कैसे हुई? पहले के मुकाबले संख्या जरूर कम हुई है लेकिन फिर भी यह संख्या बहुमत से ज्यादा है!    

तभी जनादेश की गलत व्याख्या से अहंकार में आए विपक्ष ने संसद के पहले सत्र में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के भाषण में लगातार शोर शराबा किया। लगातार टोका टाकी होती रही। इसी का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री ने संसद के दूसरे सत्र के पहले दिन संसद परिसर में कहा कि विपक्ष ने प्रधानमंत्री की आवाज दबाने की कोशिश की। यह मामूली बात नहीं है कि देश के प्रधानमंत्री को ऐसी बात कहने की जरुरत पड़ रही है। पहले सत्र में विपक्ष ने क्या किया वह सबने देखा। प्रधानमंत्री के धैर्य की सराहना करनी पड़ेगी कि वे लगातार अपनी सीट पर खड़े रहे और विपक्ष के शोर शराबे के बीच भाषण दिया। ऐसा आजतक नहीं हुआ था कि प्रधानमंत्री के भाषण में इतनी टोका टाकी हुई हो। वह भी राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा का जवाब देने में! ध्यान रहे नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने जब अभिभाषण पर पेश धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में हिस्सा लिया तो वे एक घंटे से ज्यादा समय तक बोले और एकाध बार के अलावा सत्तापक्ष की ओर से कोई टोका टाकी नहीं हुई। लेकिन कांग्रेस और दूसरे विपक्षी सांसद इस सामान्य संसदीय परंपरा का पालन नहीं कर सके कि प्रधानमंत्री के भाषण में टोका टाकी नहीं होनी चाहिए।

इसी तरह संसद के दोनों सदनों में आसन के प्रति विपक्ष ने जिस तरह से अपमान का भाव प्रदर्शित किया है वह भी पहले कभी नहीं हुआ। लोकसभा में राहुल गांधी हों या अखिलेश यादव हों सबने लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला के ऊपर निजी हमला किया या छींटाकशी की। आसन को सुनियोजित तरीके से निशाना बनाया गया। स्पीकर के ऊपर पक्षपात के आरोप लगाए गए। इतना ही नहीं राहुल गांधी तो इस हद तक चले गए कि उन्होंने कहा कि स्पीकर ने झुक कर प्रधानमंत्री से हाथ मिलाया, जबकि उनसे हाथ मिलाते समय वे सीधा खड़े रहे। सवाल है कि क्या राहुल गांधी चाहते हैं कि स्पीकर उनसे झुक कर हाथ मिलाएं? वे जिस तरह अपनी पार्टी के सारे नेताओं को गुलाम मानते हैं वैसे ही चाहते हैं कि संवैधानिक पद पर बैठे लोग भी उनके गुलाम की तरह बरताव करें और उनसे झुक कर मिलें! स्पीकर ने बिल्कुल सही प्रत्युत्तर दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे उम्र में काफी बड़े हैं इसलिए अपने संस्कारों के अनुरूप उन्होंने उनके सामने आचरण किया। लेकिन विपक्ष को संस्कार, परंपरा या संवैधानिक व्यवस्था से कोई लेना देना नहीं है। 

राज्यसभा में सभापति श्री जगदीप धनकड़ के ऊपर भी ऐसे ही हमले हुए। यह तथ्य है कि उच्च सदन में इक्के दुक्के नेता ही होंगे, जिनका राजनीतिक अनुभव सभापति से ज्यादा होगा। ऊपर से वे देश के दूसरे सर्वोच्च पद यानी उप राष्ट्रपति पद पर आसीन हैं। इससे पहले वे पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे और संवैधानिक मामलों के बड़े वकील के तौर पर बरसों तक सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस की है। उन्होंने अपने संसदीय अनुभव और संवैधानिक ज्ञान के आधार पर उच्च सदन का संचालन किया। लेकिन पहले दिन से चूंकि राज्यसभा में सरकार अल्पमत में रही और विपक्ष की मजबूत उपस्थिति रही तो विपक्ष ने इसका दुरुपयोग करके आसन को अपमानित करने का प्रयास किया। यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि 10 साल के बाद लोकसभा में विपक्ष की ताकत बढ़ी है और दूसरे ही सत्र में विपक्ष ने अपना संविधान विरोधी असली चेहरा दिखा दिया, जबकि राज्यसभा में यह स्थिति शुरू से है। सदन के सभापति श्री जगदीप धनकड़ को अगस्त 2022 से ही यानी आसन सम्भालने के साथ ही विपक्ष के इस किस्म के व्यवहार का सामना करना पड़ा। परंतु उन्होंने पूरी गरिमा के साथ सदन का संचालन किया और विपक्ष को संसदीय परंपराओं, नियमों और संवैधानिक व्यवस्था का अपमान करने से रोका। 

संसद के बाहर भी विपक्ष की ओर से लगातार संसदीय और संवैधानिक मूल्यों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। विपक्ष के चुने हुए सांसद न्यूनतम मर्यादा का पालन नहीं कर रहे हैं। केंद्रीय चुनाव आयोग और तीनों आयुक्तों खास कर मुख्य चुनाव आयुक्त को लेकर विपक्ष की ओर से जितनी अपमानजनक बातें कहीं गई हैं, किसी भी लोकतंत्र में उसकी मिसाल नहीं होगी। इससे पता चलता है कि विपक्षी सांसद संवैधानिक और वैधानिक पदों पर बैठे लोगों के प्रति किस तरह के विचार रखते हैं। चाहे संसद के दोनों सदन हों, राष्ट्रपति व उप राष्ट्रपति का पद हो, दोनों सदनों के पीठासीन पदाधिकारी हों, सर्वोच्च न्यायपालिका हो, चुनाव आयोग हो, केंद्रीय एजेंसियां हों या मीडिया हो, जहां भी विपक्ष को लग रहा है कि उसके मनमाफिक काम नहीं हो रहा है वहां वह उस संस्था को बदनाम और अपमानित करने में लग जा रहा है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है, जिससे देश की न सिर्फ संस्थाएं कमजोर हो रही हैं, बल्कि लोकतंत्र की नींव पर भी आघात हो  रहा है।     (लेखक सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के प्रतिनिधि हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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