बिहार में एनडीए ज्यादातर सांसदों के फिर से टिकट देकर फंसा हैं तो झारखंड में भाजपा टिकट काट कर फंसी है। उसने प्रदेश के दोनों राजपूत सांसदों की टिकट काट दी और उनकी जगह भूमिहार और वैश्य को टिकट दिया। झारखंड की राजनीति में राजपूत मतदाता हमेशा अहम भूमिका निभाते रहे हैं। भाजपा के पीएन सिंह तीन बार से धनबाद से और सुनील सिंह दो बार से चतरा से जीत रहे थे। भाजपा ने इस बार दोनों की टिकट काट दी। दूसरी ओर विपक्षी गठबंधन ने दो राजपूत उम्मीदवार उतारे। कांग्रेस ने धनबाद सीट से पार्टी के दिग्गज नेता रहे दिवंगत राजेंद्र सिंह की बहू अनुपमा को उम्मीदवार बनाया है।
अनुपमा के पति अनूप सिंह बेरमो सीट से कांग्रेस के विधायक हैं और कोयला क्षेत्र के मजबूत नेता हैं। उधर सीपीआई माले ने कोडरमा सीट से बगोदर के विधायक बिनोद सिंह को उम्मीदवार बनाया। बिनोद सिंह अपने आप में बड़े नेता हैं लेकिन उनकी एक पहचान यह भी है कि वे लेफ्ट के दिग्गज रहे महेंद्र सिंह के बेटे हैं। अब दोनों सीटों पर भाजपा की लड़ाई फंस गई है। कोडरमा से पिछली बार अन्नपूर्णा देवी पौने पांच लाख वोट से जीती थीं। फिर भी वे मुश्किल मुकाबले में फंसी हैं। इसी तरह धनबाद में भाजपा के ढुलू महतो की लड़ाई मुश्किल हो गई है। राजपूतों की नाराजगी का असर प्रदेश की बाकी सीटों पर भी दिख रहा है।
आदिवासी वोटों की नाराजगी झारखंड की राजनीति का सबसे मुख्य फैक्टर है। आदिवासी पहले से नाराज थे और उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में अपनी नाराजगी दिखाई थी। राज्य विधानसभा में आदिवासी के लिए आरक्षित 28 में से सिर्फ दो सीट भाजपा जीत पाई थी। खूंटी में नीलकंठ मुंडा जीते थे और उन्हीं के असर में बगल की तोरपा सीट पर कोचे मुंडा की जीत हुई थी। विधानसभा चुनाव के बाद बाबूलाल मरांडी की वापसी करा कर और उनको अध्यक्ष बना कर भाजपा ने आदिवासी वोट को मनाने का प्रयास किया लेकिन फिर हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से सब किए धरे पर पानी फिर गया। अब आदिवासी पहले से ज्यादा नाराज है।
आदिवासी के अलावा झारखंड में मुस्लिम और ईसाई का बड़ा आधार है, जो अपने कारणों से भाजपा के खिलाफ है। इसका नतीजा यह है कि झारखंड में आदिवासियों के लिए सुरक्षित सभी पांच सीटों पर भाजपा की राह मुश्किल है। हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के साथ साथ विपक्ष का यह नैरेटिव भी काम कर रहा है कि भाजपा आ गई तो आरक्षण खत्म कर देगी। तभी लोहरदगा, खूंटी, सिंहभूम, दुमका और राजमहल इन पांचों सीटों पर भाजपा मुश्किल लड़ाई में है। पिछली बार विपक्ष को राज्य में दो सीटें इन्हीं में से मिली थीं, इस बार उनकी संख्या बढ़ सकती है।
इसके अलावा कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भाजपा और आजसू के वोट आधार को भी चुनौती देने वाले उम्मीदवार उतारे हैं। चुनाव से ठीक पहले मांडू सीट से भाजपा के विधायक जेपी पटेल पाला बदल कर कांग्रेस में चले गए। कांग्रेस ने उनको हजारीबाग सीट से उम्मीदवार बना दिया। इस सीट पर भाजपा ने जयंत सिन्हा की टिकट काट कर मनीष जायसवाल को उम्मीदवार बनाया है। जेपी पटेल कुर्मी हैं और झारखंड के दिग्गज नेता रहे टेकलाल महतो के बेटे हैं। उनके ससुर मथुरा महतो बगल की गिरिडीह सीट से जेएमएम के टिकट से लड़ रहे हैं।
सो, इन दोनों सीटों पर महतो यानी कुर्मी का वोट कांग्रेस और जेएमएम के साथ भी जा रहा है। इसका असर धनबाद और कोडरमा सीट पर पड़ रहा है। इन चारों सीटों पर 2014 में भाजपा के चार सवर्ण सांसद जीते थे। धनबाद से पीएन सिंह, गिरिडीह से रविंद्र पांडेय, कोडरमा से रविंद्र राय और हजारीबाग से जयंत सिन्हा। 2019 में रविंद्र पांडेय और रविंद्र राय की टिकट कटी और 2024 में बाकी दोनों की। अब इन चारों पर भाजपा ने चार पिछड़ी जाति के उम्मीदवार उतारे हैं। इससे भाजपा के सवर्ण मतदाताओं में कोई उत्साह नहीं है। वे या तो विरोध में हैं या उदासीन बैठे हैं। सो, झारखंड की पांच आदिवासी आरक्षित सीटों पर और सामान्य श्रेणी की चार सीटों पर मुकाबला बहुत नजदीकी है और अगर इन नौ में से आधी से ज्यादा सीटें विपक्ष जीते तो हैरानी नहीं होगी।