लोकसभा चुनाव के नतीजों ने भाजपा का सारा हिसाब किताब बिगाड़ा है। पिछले डेढ़ महीने में अगर एकाध राज्यों के दौरे पर, या संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर दिए उनके भाषण को छोड़े तो प्रधानमंत्री के भाषण में भी कोई झांकी देखने को नहीं मिली है। पहली झांकी कारगिल युद्ध के 25 साल पूरे होने के मौके पर दिखी है, जब वे लद्दाख गए। लेकिन कुल मिला कर प्रधानमंत्री और पूरी पार्टी अंदर से हिली हुई है और इस चिंता में है कि अगर इस साल होने वाले चार राज्यों के चुनाव में प्रदर्शन खराब हुआ तो आगे क्या होगा?
अक्टूबर में चार राज्यों के चुनाव संभव हैं। महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल चार नवंबर को पूरा हो रहा है। सो, उससे पहले वहां विधानसभा गठित होनी है। पहले सारे चुनाव अलग अलग होते थे क्योंकि एक राज्य की जीत का मैसेज दूसरी जगह बनवाना होता था। इस बार जीत की संभावना कम दिख रही है तो एक साथ चुनाव होने की चर्चा है। जम्मू कश्मीर के चुनाव का मसला अलग है लेकिन बाकी तीन राज्यों महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में चुनाव भाजपा के लिए बहुत अहम हैं। इन तीनों राज्यों में केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा के मुख्य चुनाव रणनीतिकार अमित शाह का कम से कम एक एक दौरा हो गया है। चुनाव प्रभारियों ने तो अपने को झोंका ही है। यह देख कर हैरानी होती है कि तीनों राज्यों में भाजपा हिंदू-मुस्लिम के नैरेटिव पर ही चुनाव लड़ने और जीतने की उम्मीद किए हुए है।
तीनों राज्यों में अमित शाह ने जो भाषण दिए हैं उससे तय हो गया है कि भाजपा के पास अब कोई विजन या कोई एजेंडा नहीं बचा है। लोकसभा चुनाव में उसके सारे पत्ते पिट गए हैं और इसलिए उसे सबसे पुराने हिंदू मुस्लिम के एजेंडे पर चुनाव लड़ना है। तीन राज्यों के चुनाव अभियान की शुरुआत अमित शाह ने हरियाणा से की थी। वे 16 जुलाई को हरियाणा के दौरे पर गए और वहां के लोगों को यह भय दिखाया कि कांग्रेस सत्ता में आई तो वह पिछड़ी जातियों का आरक्षण छीन कर मुसलमानों को दे देगी। शाह ने कहा कि कांग्रेस ने कर्नाटक में यह काम किया है और हरियाणा में भी यही काम करेगी। गृह मंत्री ने अपने भाषण में हरियाणा के लोगों से कहा- मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि हम हरियाणा में मुस्लिम आरक्षण नहीं होने देंगे। उन्होंने कांग्रेस नेता और दो बार मुख्यमंत्री रह चुके भूपेंद्र हुड्डा को चुनौती देते हुए कहा- मैं एक एक पाई का हिसाब लेकर आया हूं, आंकड़ों के साथ मैदान में आएं।
इसके बाद अमित शाह 20 जुलाई को झारखंड गए वहां उन्होंने बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठाया और कहा कि राज्य की जनसंख्या संरचना बढ़ रही है। केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि उनकी पार्टी इस मसले पर श्वेत पत्र लाएगी। अमित शाह ने ‘लव जिहाद’ और ‘लैंड जिहाद’ का कई बार जिक्र किया। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश से मुस्लिम घुसपैठिए आ रहे हैं और आदिवासी महिलाओं से शादी करके जनसंख्या संरचना बदल रहे हैं तो जमीनें भी कब्जा कर रहे हैं। उनसे पहले चुनाव के सह प्रभारी हिमंत बिस्व सरमा कई बार यह बात कह चुके हैं। इस तरह अमित शाह ने झारखंड भाजपा के नेताओं को गुरुमंत्र दिया कि घुसपैठ, ‘लव जिहाद’ और ‘लैंड जिहाद’ के मुद्दे पर चुनाव लड़ना है। ऐसा नहीं है कि भाजपा ने लोकसभा चुनाव में यह मुद्दा नहीं उठाया था। तब भी इसका खूब प्रचार हुआ था और कोई लाभ नहीं हुआ। फिर भी किसी दूसरे ठोस, सकारात्मक मुद्दे नहीं होने की वजह से भाजपा इसी मुद्दे पर चुनाव लड़ने की तैयारी में दिख रही है। गुरुवार को संसद में बजट पर चर्चा के दौरान भाजपा के गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे ने भी यह मुद्दा उठाया और कहा कि संथालपरगना में आदिवासियों की आबादी 10 फीसदी घट गई है। उन्होंने भी बांग्लादेश घुसपैठ का मुद्दा उठाया। सवाल है कि घुसपैठ रोकने की जिम्मेदारी किसकी है? सीमा सुरक्षा बल सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन आता है और पिछले 10 साल से भाजपा की केंद्र में सरकार है।