गत 26 जनवरी को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने हिम्मत का काम किया। अमरीका और उसके मित्र देशों को आईना दिखाया। दक्षिण अफ्रीका ने इजराइल पर नरसंहार का आरोप लगाते अदालत में मामला दायर किया था। उसी पर प्रारंभिक फैसला सुनाते हुए न्यायालय के 17 में से 15 जजों (जो दुनिया भर के प्रतिष्ठित विधिवेत्ता हैं) ने कहा कि यह मुमकिन है कि इजराइल फिलिस्तीनियों का कत्लेआम कर रहा हो।
यह फैसला निश्चित तौर पर उन 23 लाख फिलिस्तीनियों की जीत है, जिनके अस्तित्व पर खतरा हर दिन गहराता जा रहा है। सवाल है फैसले का क्या मतलब है? पहला तो यह कि दक्षिण अफ्रीका की “तात्कालिक कदम उठाए जाने” की दरखास्त मंज़ूर हुई है और अदालत ने एक तरह का अस्थायी आदेश जारी कर दिया है। इसके तहत इजराइल को यह आदेश है कि वह ऐसे कदम उठाए जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि जब तक मामला लंबित है, तब तक आगे और नरसंहार न हो। मगर फैसले में युद्धबंदी की बात नहीं कही गई है, जैसी कि दक्षिण अफ्रीका को उम्मीद थी। यह इजराइल के लिए राहत की बात है। उसने नरसंहार के आरोप को गलत बताया है और प्रारंभिक फैसले की भर्त्सना की है।
इजराइल को इस तरह के ‘आदेशों’ से निपटना आता है। सन 1982 में संयुक्त राष्ट्रसंघ की जनरल असेंबली ने बेरूत (लेबनान) में स्थित साबरा और शातिला शरणार्थी शिविरों में नरसंहार के लिए इजराइल को ज़िम्मेदार ठहराया था। यह प्रस्ताव 123 बनाम शून्य वोटों से पारित हुआ था। अमेरिका ने मतदान में भाग नहीं लिया था। तीन दिन तक चले इस कत्लेआम के शिकार मुख्यतः बच्चे और महिलाएं थीं और इसे एरियल शेरॉन, जो आगे चलकर इजराइल के प्रधानमंत्री बने, की निगरानी में अंजाम दिया गया था। स्वयं इजराइल द्वारा नियुक्त एक स्वतंत्र आयोग ने कत्लेआम के लिए शेरॉन को दोषी ठहराया था। मगर किसी की जवाबदेही तय नहीं की गई।
यद्यपि 26 जनवरी का आदेश प्राथमिक है और अंतिम फैसला आते-आतेकई साल गुज़र जाएंगे मगर यह सही दिशा में पहला कदम है। यह शुभ है। आखिरकार, क्या यह कम है कि अंततः एक शीर्ष संस्था ने यह माना है कि इजराइल कुछ गलत कर रहा है। इस आदेश का राजनैतिक प्रभाव ज्यादा अहम है और उसमें ठीक-ठीक क्या लिखा है इससे विशेष अंतर नहीं पड़ता। अदालत ने स्वीकार किया है कि गाजा में बड़े पैमाने पर लोग कष्ट भोग रहे हैं और जोर दिया कि जो मानवीय संकट वहां है, उसे और गंभीर नहीं होने दिया जा सकता। इससे इजराइल-गाजा टकराव का राजनैतिक नैरेटिव बदलेगा। और राजनैतिक कार्यवाही के नए रास्ते खुल सकते हैं। फैसले के तुरंत बाद यूरोपीयन यूनियन ने कहा कि आईसीजे के निर्णय का “तुरंत, पूर्ण और प्रभावकारी कार्यान्वयन” होना चाहिए और यह भी कहा कि इस तरह के आदेश “दोनों पक्षों पर बंधनकारी होते हैं और उन्हें इनका पालन करना चाहिए।”
हालाँकि अमेरिका ने आदेश की निंदा की और कहा कि उसे “अब भी यह विश्वास है कि कत्लेआम के आरोप बेबुनियाद हैं” और यह भी कि न्यायालय ने यह नहीं कहा है कि वहां कत्लेआम हो रहा है और ना ही उसने युद्धबंदी की बात की है। यह अपेक्षित था क्योंकि अमेरिका काफी समय से इस कोशिश में लगा है कि वो इजराइल द्वारा किये जा रहे ज़ुल्मों को अनदेखा करे। इसके पीछे राजनैतिक और कूटनीतिक कारण हैं। मानवीय करुणा पर राष्ट्रीय हित हमेशा भारी पड़ते हैं।
इजराइल द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून के उल्लंघन पर प्रश्न उठाना तो दूर रहा, अमेरिका, इंग्लैंड और अन्य पश्चिमी देशों ने यूएनआरडब्ल्यूए (संयुक्त राष्ट्र संघ की फिलिस्तीन के लिए राहत और निर्माण एजेंसी) की फंडिंग बंद कर दी। और वह भी मात्र इसलिए कि ऐसा बताया जाता है कि एजेंसी के 13,000 कर्मियों में से 12 ने इजराइल के हमास पर 7 अक्टूबर 2023 के हमले में भाग लिया था। इस आरोप की जांच एजेंसी कर रही है।
बेंजामिन नेतन्याहू की बर्बरता पर चुप्पी साध कर और आईएसजे के फैसले का सम्मान न कर, अमेरिका अपनी विश्वसनीयता और सम्मान खो रहा है। पूरी दुनिया में इजराइली गुस्से का शिकार बन रहे हैं। और अब अमेरिकी भी बनेंगे। इजराइल को लगातार बिना शर्त अपना पूरा समर्थन देकर जो बाइडन और उनकी सरकार दुनिया को यह कहने का मौका दे रही हैं कि वे भी इजराइल द्वारा किये जा रहे नरसंहार के लिए दोषी हैं। बाइडन और ब्लिंकेन ने 2021 में सत्ता सम्हालते समय बड़े जोरशोर से वायदा किया था कि मानवाधिकारों को वे अमेरिकी विदेश नीति के केन्द्र में रखेंगे। बाइडन प्रशासन ने कहा था कि वो “ऐसी दुनिया के प्रति प्रतिबद्ध हैं जहाँ मानवाधिकारों की रक्षा होती है, मानवाधिकारों के रक्षकों का सम्मान होता है और जो मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं, उन्हें जवाब देना होता है”।
मगर अब यह साफ़ है कि उनका पाखंड वैश्विक स्तर का है। वे व्लादिमीर पुतिन को विलेन बताते हैं और यूक्रेन में मानवाधिकारों के लिए लड़ते हैं। मगर जब बात बीबी की आती हैं तो वे पलटी मार देते हैं। गाजा में उन्हें मानवाधिकारों का उल्लंघन नज़र नहीं आता। बाइडन पर पहले से ही पुष्पवर्षा नहीं हो रही है। और अगर अब भी अमेरिका गाजा और उसके लोगों को बर्बाद करने से इजराइल को नहीं रोकता है तो आने वाले कई दशकों तक अमेरिकी विदेश नीति पर लगा यह धब्बा धुल न सकेगा। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)