मोहब्बत की दुकान वरूण के लिए कब ?

मोहब्बत की दुकान वरूण के लिए कब ?

नफ़रत के बाज़ार में मोहब्बत की दुकानें खोलने निकले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की यह दुकान क्या अपने चचेरे भाई वरूण गांधी के लिए खुली रहेगी ? कांग्रेस और विपक्ष के बहुत से नेताओं के बीच आजकल यह चर्चा भी खूब हो रही है। नेता और आमजन भी यह सवाल कर रहे हैं कि 40 साल पहले किसी मेले में बिछड़े भाईयों की तरह ही ये दोनों भाई भी अलग हो लिए थे। और तभी से अब तक दोनों भाईयों के बीच नफ़रत की राजनीतिक और सामाजिक दीवार खिंची रही है। पर भाजपा की लगातार नौ साल से चली आ रही सत्ता से लगता है राहुल ऊब गए और उन्हें इस दौर में चारों तरफ़ नफ़रत और लोगों को बाँटने की राजनीति होते दिखने लगी तभी ऐसी दुकानें बंद करने और वहाँ मोहब्बत की दुकानें खोलने कांग्रेस नेता निकले हैं। देश- विदेश में मौजूदा सरकार की आलोचना और मोहब्बत का प्रचार कर रहे राहुल गांधी अपने घर की नफ़रत की दुकान बंद कर मोहब्बत की दुकान खोल पाएँगे और कब तक या फिर 2024 के लोकसभा चुनावों तक ही इनका यह अभियान चलना है।

नेता और आम लोगों के ज़ेहन में बस यही सवाल अटका हुआ है। नो डाउट कि भारत जोड़ो यात्रा के शुरू किए जाने के बाद से एक तो राहुल को अब पप्पू कहने वालों की संख्या कम होती दिखने लगी है और दूसरे कांग्रेस को राहुल अपने खेवनहार लगने लगे हैं। अब भला कोई यह कहे कि गुजरात लॉवी से पहले तक वरूण गांधी भाजपा में सहज थे लगातार अपनी और माँ मेनका की अनदेखी से वे नाराज़ हो गए और गुजरात लॉवी के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल बैठे और यहीं से उनका मन भी शायद मोहब्बत की दुकान की तरफ़ मुड़ने लगा। कमोवेश ऐसा ही भाजपा में भी दिखा। कहनेवाले तो अभी भी कहते हैं कि सिर्फ़ वरूण का ही पार्टी से मन नहीं उखड़ा है मोदी और शाह को भी वे खटकने लगे हैं। अब ऐसा गांधी टैग की बजह से या फिर कोई और बजह से यह तो तीनों नेता जानते होंगे। पर हाँ वरूण के पार्टी में असहज होने से बेचैन मोदी शाह भी बताए जाते हैं। यूपी में वरूण का दबदबा होने से यह ज़ाहिर भी है ख़ासतौर से अर्बन वोटों के बीच वरूण की खासी पेंठ बताई जाती है। अब राहुल गांधी की मोहब्बत की दुकान भी भाई वरूण गांधी के लिए कब खुलती है यह राहुल या फिर प्रियंका गांधी ही जानती होंगे पर चर्चा तो 26 जनवरी के आसपास श्रीनगर से ऐसी ही खबर राहुल गांधी से वरूण को मिलने की उम्मीद राजनीतिक हलकों में मानी जा रही है। तब तक बहन प्रियंका गांधी दोनों परिवारों के बीच मतभेद दूर करने की कोशिश में तो लगी ही हैं ।

Published by ​अनिल चतुर्वेदी

जनसत्ता में रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव। नया इंडिया में राजधानी दिल्ली और राजनीति पर नियमित लेखन

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें