संसद के मानसून सत्र में शक्ति परीक्षण का कोई मौका नहीं आया। सरकार ने वक्फ बोर्ड के कानूनों में संशोधन का एक विवादित बिल पेश किया था लेकिन उसे संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी में भेज दिया गया। इसलिए लोकसभा या राज्यसभा में कोई शक्ति परीक्षण नहीं हुआ। अगर होता तब पता चलता कि वाईएसआर कांग्रेस किस तरफ है। अभी उसकी स्थिति स्पष्ट नहीं है। वह न तो विपक्षी गठबंधन के साथ है और न सत्तापक्ष के गठबंधन यानी एनडीए के साथ है। पिछले पांच साल यानी 2019 से 2024 तक जगन मोहन रेड्डी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और रणनीतिक रूप से केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के थे। उन्होंने हर मसले पर संसद में सरकार का साथ दिया था। लेकिन टीडीपी के साथ भाजपा का तालमेल होने के बाद स्थिति बदल गई है।
पहले बीजू जनता दल के नवीन पटनायक भी मोदी सरकार के साथ थे। लेकिन अब वे खुल कर विपक्ष में हैं। लेकिन जगन मोहन की स्थिति स्पष्ट नहीं है। उन्होंने एक बार मोदी सरकार को चेतावनी देते हुए कहा था कि उनके पास राज्यसभा में 11 और लोकसभा में चार सांसद हैं यानी 15 सांसदों की उनकी ताकत है। लेकिन सरकार ने ऐसा लगता है कि इस पर ध्यान नहीं दिया। तभी वे राज्य में अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर हुई हिंसा के खिलाफ दिल्ली में प्रदर्शन करने पहुंचे तो अखिलेश यादव सहित लेफ्ट के और विपक्षी गठबंधन के कई नेता उसमें शामिल हुए। हालांकि कांग्रेस दूर ही रही लेकिन ऐसा लग रहा है कि विपक्षी गठबंधन के अंदर जो एक दबाव समूह है वह जगन को साथ जोड़ने के पक्ष में है। अगले कुछ दिन में इसकी राजनीति स्पष्ट होगी।