भारत की खुफियागिरी फेल

भारत की खुफियागिरी फेल

दक्षिण एशिया के देशों में हाल के दिनों में बड़ी उलटफेर हुई है। कहीं चुनाव प्रक्रिया के जरिए सत्ता बदली तो कहीं राजनीतिक जोड़ तोड़ के जरिए सत्ता बदल गई तो कहीं आंदोलन के जरिए तख्तापलट हुआ। लेकिन हैरानी की बात है कि किसी भी मामले में भारत की खुफिया एजेंसियां और कूटनीतिक चैनल या तो घटनाक्रम से अनजान रहे या जानते हुए भी कुछ नहीं कर पाए। यह बड़ी विफलता है। बड़ी विफलता इस नाते भी है कि अजित डोवाल देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार यानी एनएसए हैं और अगर सोशल मीडिया की मानें तो वे भारत के जेम्स बॉन्ड हैं।

वे खुफिया व सामरिक एजेंसियों से सीधे रिपोर्ट लेते हैं और कूटनीतिक मामलों में भी दखल रहते हैं। फिर भी ऐसा हुआ कि खुफिया एजेंसियां और कूटनीतिक चैनल दोनों लगभग सभी मामलों में फेल रहे।

ताजा मामला बांग्लादेश में तख्तापलट का है। साल के शुरू में हुए चुनावों का जिस तरह से विपक्ष ने बहिष्कार किया था और अमेरिका ने नतीजों पर सवाल उठाए थे उस समय भारत को समझ जाना चाहिए था कि वहां क्या हो रहा है। उसके बाद छह महीने तक हालात बिगड़ते गए। भारत ने पता नहीं परदे के पीछे से शेख हसीना वाजेद की कोई मदद की या नहीं लेकिन प्रत्यक्ष रूप से ऐसा दिख रहा है कि भारत को अंदाजा ही नहीं था कि वहां हालात इतने बिगड़ जाएंगे कि हसीना को भागना पड़ेगा। हकीकत यह है कि खुद हसीना भी गाफिल रहीं। बाद में हालात ऐसे हो गए कि सेना ने उनको सिर्फ 45 मिनट का समय दिया देश छोड़ने के लिए। वे राष्ट्रीय चैनल से देश को संबोधित करना चाहती थीं लेकिन सेना ने उनको इसकी अनुमति नहीं दी। सोचें, आधुनिक संचार साधनों, निगरानी के उपकरणों और खुफिया एजेंसियों की जमीनी मौजूदगी के बावजूद वास्तविक हालात का अंदाजा भारत को नहीं हुआ।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें