नेताओं का जमीन का मोह छूटता नहीं

नेताओं का जमीन का मोह छूटता नहीं

भारत के नेताओं को जितना सत्ता का मोह है उतना दुनिया के संभवतः किसी देश के नेताओं को नहीं होता होगा। तभी भारत के नेता हर हाल में सत्ता में बने रहना चाहते हैं। यह बात एमएलए, एमपी और मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक पर समान रूप से लागू होती है। सत्ता के प्रति इस दिवानगी का मुख्य कारण ताकत और धन इकट्ठा करना होता है। यह अलग बात है कि नेता धन और ताकत की अपनी दिवानगी के ऊपर जनता की सेवा का मुलम्मा चढ़ाए रखते हैं। धन में भी एक कॉमन फैक्टर यह है कि सबको जमीन हासिल करनी है। चाहे जैसे हो, जमीन अपने नाम करानी है। अपने और परिजनों के नाम जितनी जमीन करा सकते हैं वह कराने के बाद ट्रस्ट और संस्था बना कर उसके नाम से जमीन इकट्ठा करनी है। हो सकता है कि जमीन सही तरीके से भी ली गई हो लेकिन सवाल है कि 40 साल या 50 साल कथित तौर पर जनता की सेवा करने और सर्वोच्च राजनीतिक पदों पर पहुंचने के बाद इतनी जमीन का करना क्या है?

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का ताजा मामला है, जिनके ऊपर कर्नाटक भाजपा ने आरोप लगाया है कि उनके परिवार के एक ट्रस्ट को पांच एकड़ जमीन दी गई है। कहा जा रहा है कि राजधानी बेंगलुरू के पास हाई टेक स्पेस डिफेंस एयरोस्पेस पार्क में एयरोस्पेस बिजनेस के लिए आरक्षित जमीन में से उनके परिवार के ट्रस्ट को जमीन दी गई। दूसरी ओर कांग्रेस का कहना है कि जमीन सही तरीके से ली गई है। सवाल है कि खुद खड़गे 1969 से किसी न किसी रूप में सत्ता का हिस्सा हैं और अब बेटे को भी मंत्री बना ही रखा है तो इधर उधर से इतनी जमीन इकट्ठा करने का क्या मतलब है? कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया भी जमीन के मामले में ही फंसे हैं। उनके ऊपर आरोप है कि उनकी पत्नी और कुछ अन्य लोगों ने जमीन के गलत दस्तावेज देकर मुआवजे के तौर पर मैसुर शहरी विकास प्राधिकरण की बेशकीमती जमीन हथिया ली। इसमें भी सिद्धरैया जमीन लेने से इनकार नहीं कर रहे हैं, बस इतना कह रहे हैं कि दस्तावेज सही हैं। फिर वही सवाल है कि क्यों?

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद और उनका पूरा परिवार जिस नए मामले में फंसा है वह  जमीन से ही जुड़ा है। आरोप हैं कि उन्होंने रेलवे में नौकरी के बदले जमीन ली। कहा जा रहा है कि रेलवे में तीसरे और चौथे दर्जे की नौकरी देने के लिए लोगों से उपहार के तौर पर जमीनें ली गई हैं। जमीन से जुड़े कई और मामलों से उनका और उनके परिवार का नाम जुड़ता रहा है। ऐसे ही झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जमीन के मामले में ही जेल काट कर आए हैं। उनके ऊपर गलत तरीके से रांची में जमीन हासिल करने का आरोप है तो मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए खनन का पट्टा अपने नाम कराने का भी आरोप है। हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा जमीन के मामलों में ही केंद्रीय एजेंसियों की जांच का निशाना बने हैं। गुड़गांव से लेकर पंचकूला तक मनमाने तरीके से जमीन बांटने का मामला चल रहा है। उन पर यह भी आरोप है कि कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को नियमों का उल्लंघन करके उन्होंने जमीन दी। राजीव गांधी ट्रस्ट को भी इसी तरह जमीन देने का आरोप है। वाड्रा को राजस्थान में भी जमीन दिए जाने का मामला है। सोनिया व राहुल गांधी के खिलाफ चल रहा नेशनल हेराल्ड का मामला भी अंततः जमीन और इमारत का ही है। महाराष्ट्र में आदर्श हाउसिंग घोटाला भी जमीन और संपत्ति के मनमाने कब्जे या बंटवारे का ही था। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा भी जमीन से जुड़े मामले में फंसे थे।

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