मंत्रिमंडल के गठन के बाद कम से कम बिहार, झारखंड और कुछ हद तक उत्तर प्रदेश के राजपूत ऐसा मान रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजपूतों से नाराज हैं और उनको सबक सिखाना चाहते हैं। इस बात की चर्चा लोकसभा चुनाव में टिकटों के बंटवारे के समय ही शुरू हो गई थी। उस समय कई राज्यों में राजपूत नेताओं की टिकट कटी। झारखंड से पिछली लोकसभा में दो राजपूत सांसद थे लेकिन इस बार दोनों की टिकट कट गई। इसी तरह उत्तर प्रदेश में भी जनरल वीके सिंह की टिकट कटी और उनकी जगह वैश्य उम्मीदवार दिया गया। उधर गुजरात में पुरुषोत्तम रूपाला ने राजपूतों को लेकर बेहद आपत्तिजनक बयान दिया, जिससे राजपूत भड़के। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में संजीव बालियान बनाम संगीत सोम का विवाद जाट बनाम राजपूत में तब्दील हुआ और इसका असर कई लोकसभा सीटों पर देखने को मिला। बालियान खुद चुनाव हार गए।
हालांकि इस बार भी मोदी सरकार में तीन राजपूत नेता कैबिनेट मंत्री हैं। राजनाथ सिंह नंबर दो मंत्री हैं और कहा जाता है कि हाथी के पांव में सबका पांव। उनके अलावा गजेंद्र सिंह शेखावत और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कैबिनेट मंत्री हैं। जितेंद्र सिंह स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री बनाए गए हैं और कीर्तिवर्धन सिंह को राज्यमंत्री बनाया गया है। लेकिन अनुराग ठाकुर को मंत्री नहीं बनाने और बिहार से किसी को मंत्री नहीं बनाए जाने की ज्यादा चर्चा हो रही है।
सबसे ज्यादा नाराजगी बिहार के राजपूतों में हैं। उनको लग रहा है कि एनडीए से छह सांसद होने के बावजूद किसी को मंत्री नहीं बनाया गया, जबकि तीन ही भूमिहार सांसद जीते हैं, जिनमें से दो को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। पिछली सरकार में बिहार की आरा सीट से जीते आरके सिंह मंत्री थे। बताया जा रहा है कि काराकाट लोकसभा सीट पर जिस तरह से राजपूत मतदाता भोजपुरी गायक पवन सिंह के पक्ष में एकजुट हुए और वहां से एनडीए उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा को हराने का जैसा मैसेज बना उसके असर में भाजपा आरा, बक्सर और सासाराम सीट पर हार गई। इसी के असर में भाजपा औरंगाबाद सीट भी हारी थी। इससे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के नाराज होने की खबर है। यह अलग बात है कि भूमिहारों ने भी जहानाबाद और पाटलिपुत्र सीट पर एनडीए के खिलाफ वोट करके जदयू और भाजपा उम्मीदवार को हरवाया।