उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य बहुत भागदौड़ कर रहे हैं। एक हफ्ते के भीतर उन्होंने दूसरी बार दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद वे काफी समय तक दिल्ली में रहे और पार्टी के सभी नेताओं को उन्होंने अपने हिसाब से हार के कारण बताए। यह पता नहीं है कि उनको दिल्ली से किसी तरह के निर्देश मिला है या खुद ही अपनी मर्जी से हार के कथित कारणों का सार्वजनिक रूप से जिक्र करने लगे हैं। उन्होंने एक लाइन पकड़ी है और बार बार दोहरा रहे हैं कि सरकार से बड़ा संगठन होता है और कार्यकर्ता सबसे अहम होता है। उनके और कुछ अन्य लोगों की ओर से कहा जा रहा है कि नौकरशाही बेलगाम हो गई है और वह नेताओं व कार्यकर्ताओं की नहीं सुन रह है।
दिल्ली में जेपी नड्डा से मिलने से पहले वे उत्तर प्रदेश में भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद के साथ एक कार्यक्रम में थे, जहां मंच से सरकार को लेकर कई तरह की बातें कही गईं। संजय निषाद ने यहां तक कहा कि नौकरशाही में सपा और बसपा के समर्थक अधिकारी हैं, जो भाजपा और सहयोगी पार्टियों के नेताओं के काम नहीं करते हैं। अब सवाल है कि केशव प्रसाद मौर्य की इतनी भागदौड़ का क्या नतीजा निकलेगा? कहा जा रहा है कि उन्होंने पार्टी आलाकमान की मंशा भांप ली है और उनको लग रहा है कि आलाकमान लखनऊ में कमान बदलना चाहता है। इसलिए वे अपने को उपयुक्त दावेदार के तौर पर पेश कर रहे हैं। लेकिन इसके साथ ही उनको संगठन में बड़ी भूमिका दिए जाने की भी चर्चा है। कहा जा रहा है कि वे राष्ट्रीय अध्यक्ष हो सकते हैं। हालांकि अभी तुरंत कोई भी फैसला होने की संभावना नहीं दिख रही है।