
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार के अध्यादेश को मौका बनाया है। इससे पहले वे चूक गए थे या ऐसे कहें कि विपक्षी पार्टियों ने उनके अभियान पर ध्यान नहीं दिया था। उन्होंने देश के सात मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिख कर न्योता भेजा था और 18 मार्च को रात्रिभोज पर आमंत्रित किया था। केजरीवाल ने आठ गैर कांग्रेस और गैर भाजपा मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखी, जिन्हें उन्होंने ‘प्रोग्रेसिव चीफ मिनिस्टर्स ग्रुप ऑफ इंडिया’ या ‘जी-8’ कहा था। केजरीवाल ने बिहार, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, केरल, झारखंड और पंजाब के मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखी थी। आठवें मुख्यमंत्री वे खुद थे। लेकिन यह मीटिंग नहीं हो सकी और चिट्ठी वायरल हो गई। बाद में उनकी पार्टी ने कहा कि 18 मार्च का समय सबके लिए उपयुक्त नहीं था क्योंकि उस समय ज्यादातर राज्यों में बजट सत्र चल रहा था।
इसके साथ ही केजरीवाल की ओर से यह सफाई भी दी गई कि वे राजनीतिक मोर्चा बनाने का प्रयास नहीं कर रहे थे, बल्कि शासन संबंधी बातों पर विचार के लिए मुख्यमंत्रियों को बुलाया था। कारण जो भी हो उनका यह प्रयास बुरी तरह से विफल हुआ। अब उनको अध्यादेश के रूप में दूसरा मौका मिला है। उन्होंने इसे लपका और भागदौड़ शुरू कर दी है। दिल्ली में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव से मुलाकात के बाद वे 23 मई को कोलकाता पहुंचे और ममता बनर्जी से मिले। अगले दो दिन यानी 24 और 25 मई को वे मुंबई में रहेंगे, जहां उद्धव ठाकरे और शरद पवार से मिलेंगे। इसके बाद वे और भी विपक्षी पार्टियों से मिलेंगे और अध्यादेश को कानून बनने से रोकने के लिए संसद में उनकी मदद मांगेंगे। इसी बहाने वे अपने को विपक्ष का सबसे बड़ा नेता और भाजपा व नरेंद्र मोदी से लड़ने वाले योद्धा के तौर पर स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं।