कांग्रेस पार्टी मेघालय को लेकर बहुत उम्मीद में थी। इसी उम्मीद की वजह से मेघालय में राहुल गांधी की रैली कराई गई थी। पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में चुनाव हुए लेकिन राहुल सिर्फ एक दिन मेघालय में प्रचार करने गए। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को नगालैंड भेजा गया, जहां कांग्रेस के लिए कोई संभावना नहीं थी और वास्तविक नतीजों में भी दिखा है कि कांग्रेस वहां लड़ाई में नहीं थी। वह पहले भी जीरो पर थी और इस बार भी जीरो पर ही रही। कांग्रेस नेताओं को नगालैंड और त्रिपुरा का हस्र पता था। इसलिए सारा फोकस मेघालय पर था। वहां कांग्रेस को उम्मीद थी कि त्रिशंकु विधानसभा में उसकी जरूरत पड़ सकती है। कांग्रेस अच्छी जीत की उम्मीद कर रही थी और यह भी उम्मीद कर रही थी कि कोनरेड संगमा की एनपीपी सबसे बड़ी पार्टी रहेगी और भाजपा से उसके जैसे संबंध हैं उसे देखते हुए कोनरेड कांग्रेस पार्टी से बात करेंगे गठबंधन सरकार के लिए।
इसके लिए कांग्रेस ने कई बड़े नेताओं को मेघालय में लगाया था। पुड्डुचेरी के पूर्व मुख्यमंत्री वी नारायणसामी और मनीष चतरथ को वहां का जिम्मा दिया गया और पार्टी महासचिव मुकुल वासनिक भी गठबंधन की बातचीत के लिए नियुक्त किए गए थे। मेघालय को लेकर कांग्रेस की यह उम्मीद तो पूरी हुई कि त्रिशंकु विधानसभा बनी और एनपीपी सबसे बड़ी पार्टी बनी। लेकिन सरकार बनाने के लिए उसने कांग्रेस से संपर्क नहीं किया, बल्कि नतीजों से एक दिन पहले ही असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की कोनरेड संगमा से बात हो गई। ऊपर से संगमा की सीटें बढ़ गईं और उनको सरकार बनाने के लिए सिर्फ चार विधायकों की जरूरत रही। भाजपा दो से बढ़ कर पांच हो गई। इसलिए फिर पुराना गठबंधन बनाने में आसानी हो गई। कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस दोनों घाटे में रहे। पिछले चुनाव में कांग्रेस अकेले 21 सीट जीती थी, जिसमें से 14 विधायक एक बार टूट कर तृणमूल में चले गए थे। इस बार दोनों अलग अलग लड़े और सिर्फ 11 सीट जीते।