अधिकारियों पर दिल्ली सरकार के नियंत्रण के मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले की स्याही सूखने भी नहीं पाई थी कि दिल्ली सरकार ने सेवा सचिव आशीष मोरे को हटा दिया। दिल्ली सरकार के उस फैसले को अभी उप राज्यपाल की मंजूरी नहीं मिली है और मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है लेकिन इस बीच दिल्ली सरकार ने उसी विभाग के विशेष सचिव वाईवीवीजे राजशेखर को हटा दिया। राजशेखर दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार के ऊपर लगे तमाम बड़े आरोपों की जांच कर रहे थे। यहां तक कि छह, फ्लैग स्टाफ रोड पर मुख्यमंत्री का आलीशान बंगला तैयार करने में 45 करोड़ रुपए खर्च किए जाने के मामले की जांच भी उनके पास ही थी।
तभी सवाल है कि उनके तबादले की ऐसी हड़बड़ी क्या थी? अगर दिल्ली सरकार को यह चिंता है कि राजशेखर की जांच सरकार के खिलाफ और पक्षपातपूर्ण होगी तो फिर दूसरे अधिकारी की जांच सरकार के पक्ष में पक्षपातपूर्ण क्यों नहीं हो सकती है? ऊपर सरकार ने राजशेखर पर आरोप लगाया है कि वे ‘वसूली का रैकेट’ चला रहे थे। यह बहुत गंभीर अपराध है। ऐसे अपराध में सिर्फ तबादला कोई सजा नहीं होती है। सरकार को इस आरोप की गंभीरता से जांच करानी चाहिए। आम आदमी पार्टी विपक्ष में नहीं है, जो उसके नेता आरोप लगाएंगे। मंत्री का काम आरोप लगाना नहीं होता है।
दिल्ली में यह नियम पहले से था कि सिविल सर्विसेज बोर्ड की बैठक में अधिकारियों को बदलने का फैसला होगा। लेकिन उस बोर्ड की बैठक बाद में हो रही है और अधिकारी पहले बदल दिए गए। शराब घोटाले, आलीशान घर बनाने पर खर्च, विज्ञापन में गड़बड़ी आदि की जांच कर रहे अधिकारी को हटा कर सरकार ने गलत नजीर पेश की है। ऐसा लग रहा है कि फैसले के बाद मुख्यमंत्री ने दिल्ली के अधिकारियों को जो धमकी दी थी उस पर अमल हो रहा है।