फ़िदा-हुसैन नहीं, न्याय-देवता की ज़रूरत
पूरे एक दशक अकांडतांडव में रत रहने वाले टीवी-सूत्रधारों और अख़बारी-क़लमकारों के परिस्थितिजन्य ताल-बदलू उपक्रम को उन का सच्चा हृदय परिवर्तन समझने वाले नासमझों को कोई समझाए कि सांसारिक लीलाएं इतनी बेलोच नहीं हुआ करती...