प्रिगोझिनः पुतिन का भस्मासुर?

प्रिगोझिनः पुतिन का भस्मासुर?

दुनिया में कयास है कि व्लादिमीर पुतिन की सत्ता पर पकड़ कमजोर हो रही है। काश यह सच हो जाए और जल्द से जल्द। और इसकी वजह का जिम्मेवार शख्श कौन?  नाम है येवगेनी प्रिगोझिन।इसे पुतिन ने ही बनाया। लेकिन दुनिया यह जाने हुए नहीं थी। इसको दुनिया ने 24 घंटे में जाना। लोगों में अभी भी कौतुहल है कि यह  व्यक्ति पुतिन का भस्मासुर तो साबित नहीं होगा!

तो कौन है येवगेनी प्रिगोझिन? एक दुस्साहसी वह व्यक्ति जो अपने निर्माता के खिलाफ ही खड़ा हो गया – ठीक भस्मासुर की तरह।

प्रिगोझिन के जन्म के समय सोवियत संघ अस्तित्व में था। वे एक ऐसे संस्थान में काम करते थे जो ओलंपिक के लिए खिलाड़ी तैयार करता था। फिर न जाने क्या हुआ कि 18वर्ष की उम्र के आसपास वह चोरी करने लगा।  छोटी-मोटी चोरियों और लूट के आरोप में उसे 13 साल की सजा हुई। उस समय वह केवल 20 साल का था। कोई नहीं जानता कि जेल में प्रिगोझिन की जिंदगी कैसी थी? परंतु जो हम जानते हैं वह यह है कि जेल में रहने के दौरान प्रिगोझिन ने जो सीखा-जाना वह जेल से बाहर निकलने पर उसके बहुत काम आया। जेल में वह ऐसे हुनर से लैस हुए जो सोवियत संघ के पतन के बाद के रूस में प्रगति और समृद्धि की गारंटी थे।

जेल से छूटने के बाद प्रिगोझिन एक ‘बदला हुए आदमी’ था जो सेंट पीटर्सबर्ग में हॉट डाग बेचकर ईमानदारी से जीवनयापन करता था। जल्दी ही वह एक रेस्टोरेंट के मालिक बन गया।उसने अखबारों को अपने इंटरव्यू में बताया कि अपनी मेहनत की कमाई से उन्होंने रेस्टोरेंट हासिल किया है। फिर न जाने कैसे प्रिगोझिन पुतिन कापरिचित हुआ। उनका चहेता बना। सन् 2000 में पुतिन के रूस का राष्ट्रपति बनने के बाद प्रिगोझिन, क्रेमलिन में होने वाले राजकीय समारोहों का केटरर बना दिया गया। यहां तक कि उन्हें पुतिन का शेफ (रसोईया) कहा जाने लगा। राजकीय समारोहों के मुख्य केटरर के रूप में प्रिगोझिन को रूस के सबसे ताकतवर आदमी के नजदीक आने का मौका मिला। दुनिया के दूसरे बड़े नेताओं से भी उसकी नजदीकियां बढ़ने लगीं।

पुतिन के डिनर के दौरान व्यंजनों के बर्तनों के ढक्कन उठाते हुए उसकी कई फोटो उपलब्ध हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज डब्लू बुश के आसपास मंडराते हुए भी उसकी फोटो है। अपने शुरूआती दिनों में पुतिन राजकीय मेहमानों को प्रभावित करना चाहते थे और शानदार और सुस्वादु रूसी व्यंजन तैयार कर प्रिगोझिन इसमें उनकी मदद करता था। प्रिगोझिन को बड़े कार्यक्रम आयोजित करने में महारत हासिल थी। इस कारण वह एक ऐसी सरकार के बहुत नजदीक हो गया जो दिखावे में विश्वास रखती थी। कई बार तो प्रिगोझिन के इंतजामात इतने तड़क-भड़क भरे और आलीशान होते थे कि उन्हें देखकर अजीब सा लगता था। बहरहाल, पुतिन और प्रिगोझिन के रिश्ते प्रगाढ़ होते गए और पुतिन का प्रिगोझिन पर भरोसा बढ़ा। ध्यान रहे रूस की राजनीति में कोई किसी पर आसानी से भरोसा नहीं करता।

यह कुछ साल पहले तक की बात है। हाल में रूस में उसकी प्रसिद्धि का कारण दूसरा था।प्रिगोझिन ने टेलीग्राम और फेसबुक के रूसी संस्करण का उपयोग कर सैन्य संवाददाताओं और ब्लागरों का एक नेटवर्क तैयार किया जिसे वे अस्त्र बतौर इस्तेमाल करते थे। प्रिगोझिन धीरे-धीरे राष्ट्रवादियों का चहेता बन गया।

पुतिन के निजी रसोईए से प्राईवेट सेना वेगनर के मुखिया बनने की प्रिगोझिनकी यात्रा और फिर उनके हालिया पतन के पीछे की कहानी के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। वेगनर ग्रुप आधिकारिक और कानूनी रूप से है ही नहीं। परंतु असल में तो वह है और उसने क्रीमिया से लेकर सीरिया और लीबिया से लेकर कांगो तक में भाड़े के सैनिक उपलब्ध करवाए हैं। ये भाड़े के सैनिक पूर्वी अफ्रीका और सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में स्थित देशों में भी लड़ाईयों में भाग ले चुके हैं और उन पर बलात्कार, लोगों को यंत्रणा देने और नागरिकों की जान लेने के आरोप भी हैं।‘टाईम्स’ की एक खबर के मुताबिक यूक्रेन के युद्ध की शुरूआत में वेगनर ग्रुप के 400 सैनिक कीव भेजे गए थे और उन्हें यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की की हत्या करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। यूक्रेन कई सालों से यह आरोप लगाता आ रहा है कि क्रेमलिन का नजदीकी यह निजी सैन्य संगठन पूर्वी यूक्रेन के विवादित इलाकों लुहान्स और डोनेट्स्क में लड़ता रहा है।

वेगनर ग्रुप की स्थापना दिमित्री युटकिन नामक रूसी राष्ट्रवादी ने की थी। दिमित्री नाजी विचारधारा में यकीन रखता था और उसने अपने शरीर पर नाजी प्रतीकों के गोदने गुदवा रखे थे। वह हिटलर का फैन था और उसने अपने समूह का नाम हिटलर के प्रिय और 19वीं सदी के जर्मन संगीतकार रिचर्ड वेगनर के नाम पर रखा था। प्रिगोझिन समूह के फाईनेंसर थे। इसमें मुख्यतः सजायाफ्ता अपराधियों को इस आश्वासन पर शामिल किया गया कि अगर उनका काम अच्छा रहा तो उन्हें माफ कर दिया जाएगा। वेगनर समूह के सदस्य नियमित रूसी सैनिकों से बेहतर लड़ाके साबित हुए। रूसी सेना भी इस समूह से जुड़ी रही है और उसे असलाह और ट्रांसपोर्ट हवाई जहाज उपलब्ध करवाती रही है। इस सब के चलते वेगनर समूह को पुतिन की प्राईवेट आर्मी कहा जाने लगा और यूक्रेन युद्ध में उसकी महती भूमिका थी।

युद्ध के दौरान प्रिगोझिन और रूसी सेना के कमांडरों के बीच मतभेद बढ़ने लगे। प्रिगोझिन ने अपने वीडियो भाषणों में रक्षामंत्री सर्गेई शोइगु और चीफ ऑफ जनरल स्टाफ वलेरी गेरासिमोव को नाकारा और डरपोक बताया और आरोप लगाया कि वे जानबूझकर वेगनर समूह को हथियार और गोला-बारूद उपलब्ध नहीं करवा रहे हैं। परंतु वेगनर ने कभी सीधे पुतिन की आलोचना नहीं की। सेना और वेगनर ग्रुप में तनाव तब और बढ़ा जब वेगनर ने बखमुत शहर पर कब्जे का दावा किया। बाद में भाड़े के सैनिक मोर्चे से पीछे हट गए क्योंकि सेना ने उन्हें अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश की।

फिर शायद येवगेनी प्रिगोझिन को लगा कि बहुत हो गया और उन्होंने विद्रोह का झंडा उठा लिया। जून की 24 तारीख को उन्होंने साफ कर दिया कि उनके इरादे क्या हैं और उनके पास किस तरह की ताकत है। यह कहना मुश्किल है कि अगर प्रिगोझिन का विद्रोह सफल हो जाता तो वे क्या करते। उन्होंने 24 घंटे के भीतर आत्मसमर्पण कर दिया और ऐसा कहा जा रहा है कि यदि वे जिंदा हैं तो केवल इसलिए क्योंकि उनकी किस्मत अच्छी है। दूसरी ओर कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि जितनी आसानी से वो मास्को की ओर बढ़ रहे थे उससे ऐसा लगता है कि पीछे हटने से पहले उन्होंने अपनी कुछ शर्तें मनवाईं होंगीं जिनमें सेना के नेतृत्व में बदलाव भी शामिल हो सकता है। जो भी हो, प्रिगोझिन और वेगनर ग्रुप ने यह तो साबित कर ही दिया है कि पुतिन कमजोर पड़ गए हैं और अपने सिपहसालारों के बीच विवादों को निपटाना उनके लिए मुश्किल होता जा रहा है।

सवाल है क्या इस नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी नहीं है कि पुतिन की सत्ता का अंत निकट है? और वेगनर समूह का क्या? प्रिगोझिन और कितने दिन जिंदा रहने की उम्मीद कर सकते हैं? यदि प्रिगोझिन की हत्या हो जाती है तो क्या उनके समर्थक मास्को की सड़कों पर इतना तांडव करेंगे कि पुतिन के लिए राष्ट्रपति बना रहना मुश्किल हो जाएगा? इन सवालों के जवाब मुश्किल हैं परन्तु यह पक्का है कि पुतिन और रूस दोनों के लिए यह दौर अनिश्चितता और अस्थिरता का है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

Published by श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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